समय की करवट (भाग ६३) – ….और सुएज़ नहर जलने लगी!

समय की करवट (भाग ६३) – ….और सुएज़ नहर जलने लगी!

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-१५६

नेताजी-१५६

हिटलर की ख़ास मर्ज़ी रहनेवाले उनके सहकर्मी विलियम केपलर के कहने पर सुभाषबाबू ने, जर्मन सरकार से उन्हें क्या अपेक्षाएँ हैं, इस विषय में एक १४-पन्नोंवाला निवेदन लिखित स्वरूप में उन्हें दिया। उसमें – ‘इस द्वितीय महायुद्ध में इंग्लैंड़ की निर्णायक हार होना, यह जर्मनी एवं भारत का समान उद्दिष्ट रहने के कारण इन दोनों […]

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परमहंस-९७

परमहंस-९७

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख उस दौर में कोलकाता और परिसर में, निर्गुण निराकार ब्रह्म की उपासना का प्रतिपादन करनेवाले विभिन्न संप्रदाय बढ़ने लगे थे। लेकिन रामकृष्णजी, कम से कम भक्तिमार्ग के प्राथमिक पड़ाव पर तो ईश्‍वर के सगुण साकार रूपों को ही भजने के लिए कहते थे। ‘ये ईश्‍वर ज्ञानमार्ग से समझ पाने में, […]

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क्रान्तिगाथा-६४

क्रान्तिगाथा-६४

प्रथम विश्‍वयुद्ध समाप्त हो गया। इस विश्‍वयुद्ध में अँग्रेज़ सरकार उलझी हुई होने के कारण यहाँ पर भारतीय क्रांतिवीरों की अंग्रेज़ सरकार विरोधी गतिविधियाँ ज़ोर शोर से शुरू हो ही चुकी थी। भारत के बाहर निवास करनेवाले भारतीय, जो शिक्षा या व्यवसाय के कारण वहाँ पर रह रहे थे, वे वहाँ से अपनी मातृभूमि के […]

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नेताजी- १५५

नेताजी- १५५

पिछली द़फ़ा जब सुभाषबाबू बर्लिन आये थे, उस समय का बर्लिन और इस समय का बर्लिन इनके वातावरण में भी फ़र्क़ था। उस समय का, जीवन का आनन्द मनमुक्त रूप से लेनेवाले बर्लिन की जगह अब युद्ध की छाया से ग्रस्त और त्रस्त बर्लिन ने ले ली थी। अब सुभाषबाबू जहाँ भी देखते, उन्हें हिटलर […]

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परमहंस-९६

परमहंस-९६

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख ‘आज के कलियुग के दौर में शिष्यों को चाहिए कि वे गुरु को भी (यहाँ तक कि उनके स्वयं के शिष्य भी उन्हें) अच्छी तरह परख लें’ इस बात को रामकृष्ण शिष्यों के मन पर अंकित करते थे। लेकिन एक बार जब गुरु पर, उसकी प्रामाणिकता पर यक़ीन हो गया, […]

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समय की करवट (भाग ६२) – वॉर्सा पॅक्ट, हंगेरी और आगे….

समय की करवट (भाग ६२) – वॉर्सा पॅक्ट, हंगेरी और आगे….

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-१५४

नेताजी-१५४

सुभाषबाबू को मॉस्को से बर्लिन ले आनेवाले विशेष हवाई जहाज़ का इन्तज़ाम हो जाने के बाद ३ अप्रैल को सुभाषबाबू बर्लिन पहुँचे। तक़रीबन २ महीने ११ दिनों की भागदौड़ करके रोमहर्षक एवं हैरत अंगेज़ घटनाओं से भरा प्रवास करते हुए, आशा-निराशा का झूला झूलते हुए, एक दुर्दम्य लगन के बल पर और अपनी ध्येयपूर्ति के […]

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परमहंस-९५

परमहंस-९५

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख रामकृष्णजी अपने शिष्यों को हमेशा ही ईश्‍वरप्राप्ति हेतु प्रयास करने के लिए कहते थे, ‘‘जब तक तुम ईश्‍वरप्राप्ति के लिए प्रयास शुरू नहीं करते, तब तक तुम इस भौतिक विश्‍व में, उसके सुखोपभोगों में मश्गूल होकर रहते हो। तुम्हारी वास्तविक पहचान के बारे में, मानवजन्म लेने के बाद तुम्हारा क्या […]

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क्रान्तिगाथा-६३

क्रान्तिगाथा-६३

गुजरात का खेडा जिला। सूखे के कारण खेतों में फसल ही नहीं हुई थी। सरकारी नियम के अनुसार यदि निर्धारित किये हुए से फसल कम हो जाती है तो लगान में छूट या माफी दी जा सकती थी। खेडा जिले के किसानों के खेतों में सूखे के कारण फसल इतनी कम हुई थी की सरकारी […]

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