क्रान्तिगाथा-६४

प्रथम विश्‍वयुद्ध समाप्त हो गया। इस विश्‍वयुद्ध में अँग्रेज़ सरकार उलझी हुई होने के कारण यहाँ पर भारतीय क्रांतिवीरों की अंग्रेज़ सरकार विरोधी गतिविधियाँ ज़ोर शोर से शुरू हो ही चुकी थी। भारत के बाहर निवास करनेवाले भारतीय, जो शिक्षा या व्यवसाय के कारण वहाँ पर रह रहे थे, वे वहाँ से अपनी मातृभूमि के लिए कार्य कर रहे थे।

इन सबको अँग्रेज़ कहीं पर तो रोकना चाह रहे ही थे। इससे पहले भी अँग्रेज़ों ने कई कायदे-कानून बना कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को कुचल देने की कोशिशें की ही थीं।

अँग्रेज़ सरकार भारतीय जनता पर जुल़्म ढा रही थी और इसके लिए खुद ही बनाये कानूनों का सहारा ले रही थी। सारांश, संवैधानिक मार्ग से अँग्रेज़ भारतीयों पर अत्याचार कर रहे थे।

भारतीयों के द्वारा अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए किये जा रहे संग्राम को रौंद देने के लिए, उसे कुचल देने के लिए अँग्रेज़ों को फिर एक बार और एक कानून बनाने की जरूरत महसूस हुई। ये विभिन्न कानून बनाने के पीछे अँग्रेज़ों का उद्देश यही था कि वे जो कुछ भी कर रहे थे, उसे कानून के दायरे में बिठाकर किया जाये।

भारत में अँग्रेज़ों के द्वारा बनाये गये जो प्रांत थे, उनमें से किसी न किसी प्रांत में क्रांतिवीर सक्रिय हो रहे ही थे, मग़र फिर भी खास तौर पर अँग्रेज़ों की नज़र पंजाब और बंगाल पर थी।

१९१८ में अँग्रेज़ सरकार द्वारा एक कमिटी की स्थापना की गयी। इस कमिटी के अध्यक्ष के रूप में रौलेट नामक ब्रिटिश जज को नियुक्त किया गया। क्योंकि कोई कानून बनाना हो तो उसे कानून के जानकारों के अलावा और कौन भला अच्छी तरह बना सकता है!

तो इस रौलेट नामक ब्रिटिश जज की अध्यक्षतावाली कमिटी के सामने, भारतीय क्रांतिवीरों को भारत के बाहरी देशों से भी मदद दिये जाने के सबूत पेश किये गये और फिर उन सबूतों के आधार पर इस कमिटी ने भारत के लिए और एक नये कानून का निर्माण किया।

रौलेट नामक जज की अध्यक्षता में स्थापित यह कमिटी जानी गयी – ‘रौलेट कमिटी’ इस नाम से।

क्रान्तिगाथा, इतिहास, ग़िरफ्तार, मुक़दमे, क़ानून, भारत, अँग्रेज़इस कमिटी के द्वारा भारत के लिए जो कानून बनाया गया, वह कानून भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में ‘रौलेट कानून’ या ‘रौलेट अ‍ॅक्ट’ इस नाम से जाना जाता है।

इस कमिटी के सदस्यों में भारत में स्थित उच्चपदस्थ अँग्रेज़ अफसर ही थे। कमिटी के अध्यक्ष तो अँग्रेज़ ही थे और कमिटी के ५ सदस्यों में से एक सदस्य के अलावा अन्य ४ सदस्य भी अँग्रेज़ ही थे। शायद भारतीयों के आगे दिखावा करने के लिए, जो एक भारतीय उच्चपदस्थ अँग्रेज़ सरकार की सेवा में था, उसे इस कमिटी के सदस्य के रूप में चुना गया था।

हमें यहाँ पर एक महत्त्वपूर्ण बात पर गौर करना चाहिए कि अँग्रेज़ों का शासन जब भारत में स्थापित हुआ, उसके बाद कई भारतीय अँग्रेज़ सरकार की नौकरी करने लगे थे। सेना में और क्लर्क की तौर पर हमेशा ही भारतीयों को नियुक्त करने के लिए अँग्रेज़ों ने प्राथमिकता दी थी। मगर उनमें से कुछ भारतीय पढकर उच्च-विद्या-विभूषित बन गये, कानून या किसी अन्य क्षेत्र की बड़ी डीग्री उन्होंने हासिल कर ली; और इसलिए कुछ समय के लिए अँग्रेज़ों को अपने फ़ायदे के लिए बनाये गये नियमों को शिथिल करना पडा और अपनी सरकार में कुछ उच्च पदों पर भारतीयों की नियुक्ति करनी ही पडी।

मगर फिर भी यहाँ पर एक महत्त्वपूर्ण बात पर ध्यान देना आवश्यक है। जो भारतीय अँग्रेज़ सरकार की सेवा में थे, वे बहुत ही इमानदारी से अँग्रेज़ सरकार की नौकरी कर रहे थे। संक्षेप में, वे नमकहलाल थे और अपने पद और अधिकार का इस्तेमाल अँग्रेज़ों के नियम-कानूनों के अनुसार स्वयं के देशवासियों के विरोध में कर रहे थे। अर्थात् उनका ब्रिटिश सरकार में नौकरी करना यह कभी भी भारतीयों के लिए फायदेमंद साबित नहीं हो रहा था।

रौलेट कमिटी के सभी सदस्य-अध्यक्ष सहित सभी अँग्रेज़ सरकार के उच्च पदस्थ, तज्ञ और अँग्रेज़ों के कायदे, कानूनों और नियमों को भली भाँति जाननेवाले और अँग्रेज़ों के फायदे की ही सोचनेवाले थे और अँग्रेज़ों के हित की रक्षा करनेवाले थे।

तो फिर इस ‘रौलेट कमिटी’ द्वारा बनाये गये रौलेट अ‍ॅक्ट में ऐसा क्या था?

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