नेताजी-१६३

नेताजी-१६३

रोम में भारतीय युद्धबन्दियों के साथ बातचीत करने की इजाज़त प्राप्त करना, इसके अलावा और कुछ भी सुभाषबाबू के हाथ नहीं लगा। इक्बाल सिदेई में उन्हें जो आशा की किरण नज़र आ रही थी, वह भी व्यर्थ ही साबित हुई। सिदेई सुभाषबाबू की बढ़ाई व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए कर रहा था। उसपर धुन सवार थी […]

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परमहंस-१०४

परमहंस-१०४

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख एक बार रामकृष्णजी दोपहर के खाने के बाद, दक्षिणेश्‍वरस्थित अपने कमरे में इकट्ठा हुए भक्तगणों से बातें कर रहे थे। विषय था – ‘ईश्‍वरप्राप्ति’। उनसे मिलने विभिन्न स्तरों में से और पार्श्‍वभूमियों में से लोग चले आते थे। उस दिन बंगाल के सुविख्यात ‘बौल’ इस आध्यात्मिक लोकसंगीत के कुछ गायक-वादक […]

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समय की करवट (भाग ६६) – सुएझ : परदे के पीछे की गतिविधियाँ

समय की करवट (भाग ६६) – सुएझ : परदे के पीछे की गतिविधियाँ

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-१६२

नेताजी-१६२

२८ मई १९४१ को सुभाषबाबू पॅरिस गये। पॅरिस में ए.सी.एन. नंबियार जैसे हरफनमौला एवं युरोपीय राजनीति की नस नस से वाक़िब रहनेवाले व्यक्ति को अपने कार्य में जोड़कर सुभाषबाबू १४ जून १९४१ को रोम पहुँच गये। लेकिन आन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में खाने के दाँत अलग और दिखाने के दाँत अलग रहते हैं, इस बात का अनुभव […]

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परमहंस-१०३

परमहंस-१०३

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख आधारचंद्रजी सेन के घर आयोजित किये सत्संग में रामकृष्णजी बात कर रहे थे और इस विवेचन के दौरान बंकिमचंद्रजी द्वारा और अन्य भक्तों द्वारा पूछे जानेवाले प्रश्‍नों के अनुसार भक्तिमार्ग का श्रेष्ठत्व, साथ ही मानवी जीवन में होनेवाली ईश्‍वर की अपरिमित आवश्यकता इनके बारे में निम्न आशय का विवेचन कर […]

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क्रान्तिगाथा-६७

क्रान्तिगाथा-६७

जनरल डायर के आदेश के अनुसार लगभग दस मिनट तक जालियनवाला बाग में उपस्थित जनसमुदाय पर अंधाधुंध गोलियाँ चलायी जा रही थी और वहाँ पर उस वक्त उपस्थित बेगुनाह मासूस बच्चे, महिलाएँ, पुरुष, बडे बूढे सभी अचानक उनपर हुए इस हमले से अपनी जान बचाने के लिए यहाँ वहाँ भाग रहे थे। लेकिन जैसा कि […]

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नेताजी-१६१

नेताजी-१६१

जर्मनी द्वारा कैद किये गये भारतीय युद्धबन्दियों के मन्तव्य को जानने के लिए डॉ. धवन तथा डॉ. मेल्चर्स को नियुक्त किया गया था। पहले दल के साथ बातचीत करते हुए डॉ. धवन के ध्यान में यह बात आ गयी कि उनमें प्रमुख रूप से जाट, सिख और पठानों का समावेश था। उनके साथ क़रीबी सम्बन्ध […]

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परमहंस-१०२

परमहंस-१०२

एक बार रामकृष्णजी के निकटवर्ती शिष्य आधारचंद्र सेन के घर सत्संग आयोजित किया गया था। कोलकाता में डेप्युटी मॅजिस्ट्रेट (उप-दंडाधिकारी) होनेवाले आधारचंद्रजी ने हमेशा के लोगों के साथ ही कई नये लोगों को भी आमंत्रित किया था, ताकि उनका भी रामकृष्णजी से परिचय हों। उनमें से कई लोग महज़ कौतुहल से, तो कोई रामकृष्णजी को […]

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समय की करवट (भाग ६५) – ‘सुएझ नहर’ का इस्रायली पहलू

समय की करवट (भाग ६५) – ‘सुएझ नहर’ का इस्रायली पहलू

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं। इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे […]

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नेताजी-१६०

नेताजी-१६०

युद्ध में केवल स्वयं के ही हितसम्बन्धों को सुरक्षित रखना चाहनेवाले और भारत की ओर ब्रिटन के ही नज़रिये से देखनेवाले हिटलर से किसी ठोस सहायता की अपेक्षा रखना बेक़ार है, यह हालाँकि सुभाषबाबू जान तो गये थे, लेकिन जर्मन विदेश मन्त्री रिबेनट्रॉप के साथ हुई मुलाक़ात के बाद चित्र बदलने लगा था। भारतीय स्वतन्त्रता […]

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