रक्त एवं रक्तघटक – ६४

हम रक्त और रक्तघटक मालिका के अंतिम चरण में पहुँच चुके हैं। इसमें हम रक्त से संबंधित चीजों का अध्ययन करेंगें।

हमारी बीमारी के दौरान हमारे रक्त की जाँच कराने की आवश्यकता कभी ना कभी पड़ती ही है। वहाँ पर उपस्थित व्यक्ति हमारा रक्त निकालने से पहले टेबल पर काँच की कुछ शीशियाँ अथवा काँच की नलियां रखता है। उसके बाद हमारा रक्त निकालकर टेबल पर रखी विभिन्न शीशियों में भरता है। कुछ शीशियों अथवा काँच नलिकाओं में रक्त जम जाता है तथा कुछ शीशियों में रक्त उसी तरह पतला रहता है। रक्त की विभिन्न जाँचे रक्त के विभिन्न घटकों पर की जाती हैं। रक्त की हिमोग्लोबिन, लाल-सफ़ेद पेशियाँ तथा शक्कर इत्यादि की जाँच ना जमे हुए रक्त पर ही की जा सकती है। रक्त की प्रथिनों, कॅल्शिअम, बिलिरूबीन इत्यादि घटकों की जाँच रक्त के ‘सिरम’ पर की जाते है। रक्त से सिरम प्राप्त करने के लिये रक्त को जमाना पड़ता है। रक्त की क्लॉटिंग कैसे होती है और रक्त के क्लॉट में से द्राव किस तरह अलग होता है, इसके बारे में हमने पिछले कुछ लेखों में देखा है। रक्त में से सभी रक्तपेशियों और प्रोकोआग्युलंट्स को निकाल दिया जाए तो शेष द्राव को सिरम कहते हैं। उपरोक्त वर्णित शीशियों में से जिन शीशियों का रक्त जम जाता है, उन्हें कुछ घंटों तक वैसा ही रखने पर उसमें से सिरम अलग हो जाता हैं। फ़िर उस सिरम पर विभिन्न प्रकार की जाँचे की जा सकती है।

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यदि काँच की शीशियों में रक्त रखा जाये तो वह कुछ मिनिटों में ही जम जाता है। किसी भी सादे काँच का पृष्ठभाग पूर्ण रूपेण स्मूथ नहीं होता है। रक्त की प्लॅटलेट पेशियां जब इस पृष्ठभाग के संपर्क में आती हैं तो उनका गोला बनने लगता है। इसी से क्लॉटिंग अथवा रक्त के जमने की प्रक्रिया शुरु होती है। जब रक्त के सिरम को अलग करना होता है तो रक्त को सादी काँच की शीशियों में रखा जाता है। शरीर से निकाले गये रक्त को उसी तरह पतला बनाये रखने के लिए विशेष प्रयत्न करने पड़ते हैं। रक्त को पतला बनाये रखने के लिए कौन से पदार्थ की मदत ली जाती है, अब हम इसकी जानकारी लेंगें।

१) सिलिकोनाईड काँच का उपयोग करना : काँच नली अथवा काँच की शीशियों का अंदरुनी स्तर सिलिकॉन का होता है, ऐसी शीशियों में रखा रक्त कम से कम एक घंटे तक तो नहीं जमता।

२) हिपॅरिन : यह अपने शरीर के रक्त में रहनेवाला अ‍ॅँटिकोआग्युलंट घटक है। इसका उपयोग शरीर के बाहर भी किया जाता है। काँच नली में थोड़ीसी हिपॅरिन लेकर उसमें रक्त जमा करने पर वो नहीं जमता। हृदय की शस्त्रक्रिया करते समय शरीर के रक्त को हार्ट लंग यंत्र से ले जाना पड़ता है। वहाँ पर रक्त को ना जमने देने के लिए हिपॅरिन को उपयोग में लाया जाता है। मूत्रपिंड के खराब हो जाने पर मरीज को ‘हिमोडायलेसीस’ पर रखते हैं। इस डायलेसिस के दौरान यंत्र में रक्त ना जमें इसके लिए हिपॅरिन का उपयोग किया जाता है।

३) रक्त के कॅल्शिअम को नष्ट करनेवाले घटक : रक्त के जमने की प्रक्रिया में कॅल्शिअम के अणु की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। कॅल्शिअम अणु की अनुपस्थिति में रक्त नहीं जमता। रक्त के कॅल्शिअम अणुओं को नष्ट करनेवाले घटक रक्त को पतला रखते हैं। रक्त की जाँच के लिए ऐसे घटकों का उपयोग किया जाता है। ये घटक इस प्रकार हैं –

अ) ऑक्झलेट : किसी भी ऑक्झलेट की थोड़ी मात्रा, पावडर अथवा द्रव, काँच नली में लेकर उसमें जाँचनेवाला रक्त लिया जाता है। शरीर के अंदर रक्त को पतला रखने के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जाता है।

ब) साईटेट्स : सोडियम, पोटॅशिअम, साईट्रेट इत्यादि पदार्थों का उपयोग रक्त को पतला रखने के लिए किया जाता है। साईट्रेट के संयुगों का उपयोग भी कभी-कभी शरीर के रक्त को पतला रखने के लिए किया जाता है। यह उपयोग अत्यंत अल्प मात्रा में किया जाता है। इसके अतिरिक्त EDTA नामक रसायन का भी उपयोग रक्त की जाँचों में रक्त को पतला रखने के लिए किया जाता है।

कभी-कभी शरीर के रक्त को हरदम की अपेक्षा थोड़ा पतला रखने की आवश्यकता होती है। यदि शरीर के अवयवों में रक्तस्त्राव होने के कारण रक्त की गांठ बन गयी हो तो उसे पिघलाने के लिए हिपॅरिन का उपयोग किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति के रक्त में कहीं पर भी थ्रोंबोसिस तैयार हो रहे हो तो ऐसी परिस्थिती में भी रक्त को पतला रखना पड़ता है। कुछ व्यक्तियों के हृदय के वाल्व बदलने पड़ते हैं। नया वाल्व यदि धातु का बना हो तो उस पर रक्त के जमने की संभावना होती हैं। ऐसे मरीज को कायमस्वरूपी रक्त पतला रखने की आवश्यकता होती है। ऐसे मरीज के रक्त को पतला रखने के लिए हिपॅरिन का उपयोग किया जा सकता है। परन्तु हिपॅरिन इंजेक्शन के रूप में उपलब्ध है। इसका पर्याय ढूँढ़ा गया तो पता चला कि कौमरिन नामक रसायन रक्त को पतला रखता है। यह रसायन अथवा औषधि यकृत की पेशियों पर कार्य करती हैं। रक्त को जमानेवाले घटक यकृत पेशी में बनते हैं। कौमरिन औषधि इन घटकों की निर्मिति रोक देती है। रक्त को जमानेवाले घटकों की निर्मिति के लिए विटामिन K की उपलब्धता को नष्ट करने का कार्य कौमरिन औषधि करती है।

कौमरिन नामक औषधि जब तक मरीज को दी जाती है तब तक उसका रक्त हमेशा की तुलना में पतला रहता है। औषधि बंद करने के तीन दिनों में ही रक्त का जमना पूर्ववत हो जाता है। रक्त के जमने की क्रिया व्यवस्थित है या नहीं, यह देखने के लिए विभिन्न प्रकार की जाँचे उपलब्ध हैं।

१) ब्लिडिंग टाईम (Bleeding Time) : हमारे हाथ की उंगली पर एक छोटा सा छेद करके उस छेद से कितनी देर तक रक्त बहता रहता है, यह देखा जाता है। सामान्यत: यह रक्त कम से कम १ से ड़ेढ़ मिनट तथा ज्यादा से ज्यादा ६ मिनट तक ही बहता है। रक्त को जमने देनेवाले घटकों में भी प्लॅटलेट पेशियों की कमी हो जाने पर रक्त पहले की तुलना में ज्यादा समय तक बहता रह सकता है।

२) क्लॉटिंग टाईम (Clotting Time) : छोटी काँचनली में रक्त लेकर यह जाँच की जाती है कि वह कितनी देर में जमा। सामान्यत: ६ से १० मिनिटों में रक्त जम जाता है। रक्त को जमानेवाले घटक यदि कार्य ना हो तो यह समय सीमा बढ़ जाती है।

रक्त को जमानेवाले प्रत्येक घटकों की रक्त में मात्रा ढूंढ़ना, अब संभव हो गया है। इसीलिए उपरोक्त जाँचों के बजाय आजकल आधुनिक जाँचों का उपयोग किया जाता है। इनमें से महत्त्वपूर्ण जाँच प्रोथ्रोंबिन टाईम अथवा P.T. जाँच हैं। यह जाँच रक्त में प्रोथोंबिन की मात्रा बताती है। प्रोथोंबिन का रूपांतरण थ्रोंबिन में होकर रक्त के जमने में जो समय लगता है, उसे प्रोथोंबिन टाईम कहते हैं। नॉर्मल प्रोथोंबिन टाईम १२ सेकेंड़ होता है।

अब तक हमने हमारे रक्त और रक्तघटकों की जानकारी प्राप्त की। अब यह जानकारी पूरी हो गयी। अगले लेखों में हम शरीर के अन्य अवयवों की जानकारी प्राप्त करेंगे, इसकी शुरुआत हम श्‍वसनसंस्था (रेस्पिरेटरी सिस्टिम) से करेंगे।
(क्रमश:-)

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