हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था – १८

हम सूक्ष्म रक्त-अभिसरण का अध्ययन कर रहे हैं। केशवाहिनियों से होनेवाला रक्तप्रवाह यह इसका मुख्य भाग है। केशवाहिनियों में रक्त हमेशा नहीं बहता है बल्कि थोड़ी-थोड़ी देर बाद बहता है। कुछ सेकंडों तक या मिनटों तक रक्त बहता है, फ़िर कुछ सेकंडों या मिनटों तक रक्तप्रवाह रुका रहता है। फ़िर इसी तरह रक्तप्रवाह शुरु होता है। इसे on and off Phenomenon कहते हैं। इसीका दूसरा नाम है वासोमोशन (vasomotion)। मेटाआर्टिरिओल्स में स्नायुओं का थोड़ी-थोड़ी देर में होनेवाला आकुंचन इसके लिये कारणीभूत होता है। जब पेशी में प्राणवायु की मात्रा का हो जाती हैं तो ये स्नायु प्रसरित होते हैं और अन्य घटकों की आपूर्ति होती है। यह आपूर्ति कैसे होती है, हम अब यह देखेंगें।

अन्नकण व अन्य घटकों की रक्त एवं इंटरस्टिशिअल द्राव के बीच आदान-प्रदान :- शरीर की पेशियों के बीच में रिक्तस्थान होता है। इस स्थान को ‘इंटरस्टिशिअम’ कहते हैं। हमारे शरीर का लगभग १/६ भाग इन इंटरस्टिशिअम से व्याप्त रहता है। इस जगह में जो द्राव होता है उसे इंटरस्टिशिअल द्राव कहते हैं। रक्त में जो द्राव होता है उसे प्लाझ्मा कहते हैं। इंटरस्टिशिअल द्राव के साथ विविध घटकों का आदान-प्रदान मुख्यत: डिफ्युजन पद्धति से होता है।

केशवाहिनियों की बाह्य परतों से पानी तथा अन्य कणों का आदान-प्रदान लगातर शुरु रहता है। इससे पहले भी हमने देखा कि शरीर की पेशियों का बाह्य आवरण स्निग्ध (lipid) पदार्थों का बना होता है। इसीलिए अंशत: स्निग्ध विद्राव्य घटक इस बाह्य आवरण से आ-जा सकेंगें यही नियम यहाँ भी लागू होता है। साथ ही पानी में विद्राव्य घटक इस आवरण से बाहर नहीं जा सकते। इसीलिये इस आवरण में बीच-बीच में छोटे-छोटे पोअर्स होते हैं। जिन में से होकर पानी और पानी में घुलनशील अन्य अणु अंदर-बाहर आते जाते रहते हैं। यह नियम भी यहाँ लागू होता है।

प्राणवायु, कार्बन डाय ऑक्साईड इत्यादि घटक अंशत: स्निग्ध विद्राव्य है। इसीलिए यह केशवाहनियों के आवरण से सीधे अंदर-बाहर डिफ्युज होते हैं। फ़लस्वरूप अंशत: स्निग्ध विद्राव्य न होने वाले सोडिअम, ग्लुकोज इत्यादि घटकों की तुलना में इसका आदान-प्रदान तेज़ गति से होता है।

पानी और पानी के अन्य विद्राव्य घटक – सोडिअम, क्लोरीन, ग्लुकोज, पोटॅशिअम इ. का आदान-प्रदान भी परतों में स्थित पोअर्स द्वारा होता है। इस आदान-प्रदान को पानी की आण्विक गति (Thermal Molecular Motion)मदत करती है।

रक्त और इंटरस्टिशिअल द्राव में विविध अणुओं का होनेवाला आदान-प्रदान उन-उन अणुओं के आकार पर तय होता है। केशवाहिनियों के पोअर्स का व्यास साधारणत: ६ से ७ नॅनो मीटर्स होता है। पानी के एक अणु के आकार की तुलना में यह व्यास बीस गुना ज्यादा होता है। इसीलिये पानी आसानी से इसमें से आता-जाता रहता है। प्लाझ्मा प्रथिन के अणू पोअर्स के व्यास के बराबर या आकार में कुछ बड़े होते हैं। इसीलिये इनका आदान-प्रदान अल्प मात्रा में होता है। अन्य सभी घटकों के अणुओं का आकार पानी एवं प्रथिनों के आकार के बीच का होता है। संक्षेप में अणु के आकार के आधार पर उसका आदान-प्रदान तय होता है। विभिन्न अवयवों में यह आदान-प्रदान विभिन्न गतियों से होता है, यह हमने पिछले लेख में देखा ही है।

सूक्ष्म रक्ताभिसरण में प्रत्येक घटक में होनेवाला आदान-प्रदान और इस क्रिया की गति उस घटक के प्रमाण के आधार पर तय होती है। तात्पर्य यह है कि केशवाहनियों के आवरण के दोनों ओर मौजूद रहनेवाले उन-उन घटकों की मात्राओं में अंतर यह गति तय करती है। उदा. प्राणवायु की रक्त में रहनेवाली मात्रा इंटरस्टिशिअल द्राव में रहनेवाली मात्रा की तुलना में कई गुना ज्यादा होती है। फ़लस्वरुप प्राणवायु का वहन रक्त से इंटरस्टिशिअल द्राव की ओर होता है। कार्बनडाय ऑक्साइड की मात्रा इंटरस्टिशिअल द्राव में रक्त की अपेक्षा ज्यादा होती है, इसीलिये कार्बनडाय ऑक्साइड का वहन इंटरस्टिशिअल द्राव से रक्त की ओर होता है।

दो पेशियों के बीच में जो रिक्त स्थान होता है उसे इंटरस्टिशिअम कहते हैं। इस इंटरस्टिशिअम में कोलॅजेन और प्रोटिओग्लायकोन नामक पदार्थ के तंतु होते हैं। यह भाग पूरी तरह ‘जेली’ जैसा होता है और इसमें मुक्त द्राव सिर्फ़ इसका एक प्रतिशत होता है। रक्त के ज्यादा तर घटक इस ‘जेली’ से ही डिफ्युजन द्वारा पेशी में आते हैं। शरीर के कुछ विकारों में केशवाहनियों में से बड़ी मात्रा में द्राव बाहर निकल जाता है। ऐसी स्थिति में इस इंटरस्टिशिअम में मुक्त द्राव की नलिका फ़ूल जाती है और शरीर के उस भाग में सूजन आ जाती है।

(क्रमश:)

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