रक्त एवं रक्तघटक – ४३

हम रक्त पेशियों की निर्मिति से संबंधित अध्ययन कर रहे हैं। गर्भावस्था में रक्तपेशी की निर्मिति तीसरे सप्ताह से शुरु हो जाती है। यह निर्मिति रक्तवाहिनियों में होती है। शुरुआत में लाल रक्तपेशियां आकार में बड़ी तथा अंदर केन्द्रकयुक्त होती हैं। इन्हें मेगॅब्लास्ट पेशी कहते हैं। आगे चलकर इनका रूपांतर एरिथ्राब्लास्ट व उसके बाद केन्द्रकविहीन लाल पेशियों में होता है। साधारणत: यह चौथे महीने तक होता है। आगे चलकर नौवें महीने तक ये ही रक्तपेशियां गर्भ के रक्त में रहती हैं। इनमें फ़िटल हिमोग्लोबिन होती हैं। बच्चे के जन्म से कुछ दिन पहले इन लाल रक्तपेशियों का रूपांतर प्रौढ लाल रक्त पेशियों में होता हैं। शुरुआत की रक्तपेशीयां एक ही मूल ‘स्टेम’ पेशी से बनती हैं। इस पेशी से सभी हीमल एवं लिंफ़ॉइड पेशी तैयार होती हैं। इस पेशी को ‘टोटिपोटेंट’ स्टेम पेशी कहते हैं। टोटिपोटेंट स्टेम पेशी से विभिन्न रक्तपेशियों के बनने में समय लगता है। इसीलिये गर्भ में ही चौथे-पांचवे महीनें से टोटिपोटेंट स्टेम पेशी का स्थान प्लुरिपोटेंट पेशी ले लेती हैं। प्लुरी का अर्थ है अनेक अथवा विविध। इस पेशी से रक्त की प्रत्येक पेशी की स्टेम पेशी बनती है और उन-उन स्टेम पेशियों से रक्त की विविध पेशियां बनती हैं।

लाल पेशी :
पहली स्टेम पेशी से रक्त की पहली लाल पेशी के बनने तक यह पेशी अनेक अवस्थाओं से गुजरती है। इस प्रक्रिया को नार्मोप्लास्टीक सिरीज कहते हैं। अस्थिमज्जा में अंतिम स्थिति को रेटिक्युलोसाईट कहते हैं। स्टेम पेशी से रेटिक्युलोसाइट पेशी बनने में पाँच से नौ दिन लगते हैं। इस के बाद ये रेटिक्युलोसाइट पेशी दो दिनों तक अस्थिमज्जा में ही रहती है। आगे दो दिनों तक इस पेशी का निवास प्लीहा में होता है। उस के बाद ये पेशी प्रवेश में करती हैं।

सफ़ेद पेशी :
न्युट्रोफिल्स, इओसिनाफिल्स या मोनोसाइट्स या हीमल समूह की पेशी को तैयार होने में साधारणत: सात दिन लगते हैं। अगले चार से पाँच दिनों तक ये पेशी अस्थिमज्जा में ही रहती है। शरीर की आवश्यकतानुसार सफ़ेद पेशियां रक्त में मिश्रित की जाती हैं।

प्लॅटलेट्स :
प्लॅटलेटस पूर्ण पेशी ना होकर एक पेशी के छोटे-छोटे टुकड़े होते हैं। ये सिरीज की पहली पेशी होती है। मेगॅकॅरिओब्लास्ट से मेगॅकॅरिओसाइट पेशी बनती है। इस पेशी का केन्द्रक धीरे-धीरे नष्ट होता है व पेशीद्राव अब अनेक टुकड़ों में बट जाता है। पेशीद्राव के इन टुकड़ों को ही प्लॅटलेटस् कहते हैं।

हिमोपायोसिस का नियमन :
रक्तपेशियों के निर्माण के समय उन पर शरीर का नियंत्रण किस प्रकार रहता है, यह अभी तक निश्‍चित रूप से ज्ञात नहीं है। लाल पेशियों पर नियंत्रण रखनेवाले हार्मोन शरीर में होते हैं। इसे एरिओपायोटिन कहते हैं। इसकी निर्मिति मूत्रपिंड में होती है। इस हार्मोन की रक्त में मात्रा प्राणवायु की मात्रा के अनुसार तय होती है। रक्त में प्राणवायु की मात्रा कम हो जाने पर रक्त में इस हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है व ये हार्मोन लाल पेशियों की निर्मिति में वृद्धि करते हैं। इस के अलावा अन्य अनेक हार्मोन्स एवं रासायनिक घटक लाल पेशी की निर्मिति पर असर ड़ालते हैं।

दिन और रात के समय इन रक्तपेशियों की संख्या में बदलाव होता रहता है। दिन में इनकी संख्या ज्यादा होती है तथा रात के समय जब मनुष्य नींद में होता है तो इनकी संख्या कम हो जाती है। इसे डायुरनल व्हेरिएशन कहते हैं। जीवाणु या विषाणुओं की बाधा, रक्तस्त्राव, अन्य बीमारियां, विषारी रसायन व क्ष-किरण भी रक्तपेशियों की निर्मिति पर असर डालते हैं।

शरीर के बचाव एवं प्रतिकार सिस्टिम में लिंफ़ोसाइट्स के साथ मिलकर मोनोन्युक्लीअर फ़ॅगोसाइट्स कार्य करते हैं। इस में दो तरह की पेशियां होती हैं –

१)मॅक्रोफेज पेशी२) अँटिजेन की आपूर्ति करनेवाली पेशी। इन में से मॅक्रोफेज पेशी के तीन प्रमुख कार्य होते हैं –
अ) शरीर की रक्षा – प्रत्येक अवयव में ये पेशियां होती हैं। किसी भी अवयव में जीवाणुओं या अन्य विषारी घटकों का प्रवेश होने पर ये पेशी सर्वप्रथम उन पर आक्रमण करके उन्हें निष्क्रिय करती है।
ब) जीवाणुओं के साथ लड़ने में पेशी का जो नुकसान होता है उससे सभी प्रकार की मरम्मत का काम ये पेशी ही करती है और नयी पेशी के बनने में सहायता करती है।
क) सभी पेशियों के नॉर्मल कार्यों को शुरू रखने में सहायता करती है।
(क्रमश:)

Leave a Reply

Your email address will not be published.