हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था – १९

सूक्ष्म रक्त-अभिसरण में रक्त के अन्न तथा अन्य घटकों का पेशियों के साथ आदान-प्रदान कैसे होता है, हम इसका अध्ययन कर रहे हैं।

रक्त के द्राव को प्लाझ्मा और इंटरस्टिशिअम के द्राव को इंटरस्टिशिअल द्राव कहते हैं। प्लाझ्मा का वॉल्युम और इंटरस्टिशिअल द्राव का वॉल्युम उसमें उपस्थित प्रथिनों के नियंत्रण में होता है। केशवाहनियों में रक्त का दबाव, प्लाझ्मा और उसके विद्राव्य घटकों को केशवाहनियों के बाहर इंटरस्टिशिअम में धकेलता है। यानी इसका प्रवास केशवाहिनियों के भीतर से केशवाहिनियों के बाहर होता है। रक्त की प्रथिने, जिन्हें प्लाझ्मा प्रथिनें कहा जाता है, वे अपने ऑस्मॉटिक दबाव के कारण(इसे कोलॉइड ऑस्मॉटिक दाबाव कहते हैं) प्लाझ्मा एवं अन्य घटकों को इंटरस्टिशिअल द्राव में से केशवाहनियों में धकेलती हैं। केशवाहनियों में ये दोनों शक्तियाँ एक-दूसरे के विरोध में काम करती हैं। अब हम यह देखेंगे कि प्लाझ्मा वॉल्युम और इंटरस्टिशिअल द्राव के वॉल्युम का संतुलन कैसे रखा जाता है।

प्लाझ्माचार प्रमुख चीजें अथवा शक्तियाँ, इस संतुलन को बनाये रखने में मदत करती हैं। रक्त का द्रव तथा विद्राव्य घटक केशवाहिनी से इंटरस्टिशिअम में जायेगा या इंटरस्टिशिअम में से केशवाहिनी में जायेगा यह बात ये शक्तियाँ तय करती हैं। इन शक्तियों को ‘स्टर्लिंग फोर्सेस’ (Sterling Forces) कहते हैं। स्टर्लिंग नाम के वैज्ञानिक ने इसकी खोज की थी, अत: उसको यह नाम दिया गया है। ये स्टर्लिंग फोर्सेस इस प्रकार हैं –

१) केशवाहिनी में दबाव : केशवाहिनी से रक्त का प्रवास बाहर होता है।

२) इंटरस्टिशिअल द्राव का दबाव : यदि यह दबाव केशवाहिनी के दबाव की तुलना में ज्यादा हुआ तो द्राव केशवाहिनी में प्रवेश करता है तथा यदि दबाव कम हुआ तो केशवाहिनी से द्राव बाहर निकलता है।

३) प्लाझ्मा कोलॉइड ऑस्मॉटिक प्रेशर : केशवाहिनी में द्राव खींच लिया जाता हैं।

४) इंटरस्टिशिअल द्राव का कोलॉइड ऑस्मॉटिक प्रेशर : केशवाहिनी से द्राव बाहर निकालता है।

अब हम इन प्रत्येक फोर्स (शक्ति) की सविस्तार जानकारी प्राप्त करेंगे।

केशवाहिनियों में दबाव :- केशवाहिनी के आरटरी के पासवाले सिरे पर यह दबाव ४० mmHg होता है तथा वेन्युल्स के पासवाले सिरे पर १० mmHg होता  है। केशवाहिनी के मध्य में यह दबाव २५ mmHg होता है। परंतु केशवाहिनी आदान-प्रदान के लिये जो उपयुक्त दबाव होता है, वो १७ mmHg होता है। इसे फंक्शनल दबाव कहते हैं।

इंटरस्टिशिअल द्राव का दबाव :- विभिन्न अवयवों में यह दबाव भिन्न-भिन्न होता है। सर्वसाधारणत: यह दबाव negative यानी ऋण होता है। हमारे शरीर की त्वचा के नीचे के पेशी अथवा अवयव के वलय का आवरण शिथिल होता है। हमारी त्वचा के बाहर की ओर वातावरण होता है अथवा हवा होती है। त्वचा पर हवा का दबाव साधारणत: शून्य (० mmHg) होता है। त्वचा के नीचे पेशी में द्राव का दबाव, हवा के दबाव से कम होता है। यह दबाव लगभग -३ mmHg (ऋण तीन)होता है।

हमारे शरीर के कुछ अवयवों पर घट्ट आवरण होता है। उदा. मस्तिष्क, मूत्रपिंड, स्नायु, आँखें इत्यादि। मस्तिष्क के चारों ओर जो आवरण होता है उसमें द्राव होता है। इस द्राव को सिरेब्रोस्पायनल (cerebrospinal) द्राव कहते हैं। इस द्राव का दबाव +१० mmHg होता है। मस्तिष्क की पेशियों में द्राव का दबाव +४ से +६ mmHg होता है। मूत्रपिंड में  – मूत्रपिंड के आवरण पर दबाव +१३ mmHg तथा मूत्रपिंड पेशी में इंटरस्टिशिअल दबाव +६ mmHg होता है। उपरोक्त सभी विवेचनों के आधार पर एक सर्वसाधारण सिद्धांत सभी वैज्ञानिकों ने मान्य किया कि किसी भी अवयव के इंटरस्टिशिअल द्राव का दबाव उस अवयव के बाह्य वातावरण से हमेशा कम होता है।

रक्ताभिसरण संस्था की तरह ही हमारे शरीर में लिंफॅटिक संस्था होती है। यह संस्था शरीर में साफसफाई का काम करती है। आगे चलकर हम इसकी सविस्तर जानकारी लेनेवाले ही है। यहाँ पर इसका महत्त्व इतना ही है कि इंटरस्टिशिअल द्राव का दबाव ऋण बनाये रखने में लिंफॅटिक संस्था मदत करती है।

प्लाझ्मा कोलॉइड ऑस्मॉटिक प्रेशर :- हमारे शरीर की पेशियों पर पेशी आवरण अथवा केशवाहिनी का आवरण हमेशा सेमी-परमिएबल (semipermeable) होता है। यानी इसमें से कुछ घटक अंदर-बाहर आ-जा सकते हैं तथा कुछ घटकों की गतिविधियों को रोका जाता है। द्राव के जो घटक आवरण के पार नहीं जा सकते, वे घटक इस ऑस्मॉटिक दबाव का निर्माण करते हैं। रक्त में उपस्थित प्रथिनें केशवाहिनियों के आवरण में स्थित पोअर्स में से आसानी से बाहर नहीं निकलती। इसीलिये वे कोलॉइड ऑस्मॉटिक प्रेशर निर्माण करती है। हमारे रक्त में तीन प्रमुख प्रथिने होती हैं। उनके नाम हैं – अ‍ॅल्ब्रुमिन, ग्लोब्युलिन और फाइब्रीनोजेन। केशवाहिनियों में कोलॉइड ऑस्मॉटिक दबाव साधारणत: २८ mmHg होता है। इसमें से २२ mmHg दबाव सिर्फ अल्ब्युमिन प्रथिन के कारण होता है।

इंटरस्टिशिअल द्राव में ऑस्मॉटिक दबाव :- इंटस्टिशिअल द्राव में उपरोक्त प्रथिने होती हैं। क्योंकि केशवाहिनी के कुछ पोअर्स थोड़े-थोड़े होते हैं और इनमें से थोड़ी मात्रा में रक्त को प्रथिने बाहर निकलती हैं। यहाँ पर इन प्रथिनों का प्रमाण, रक्त में प्रथिनों की मात्रा का ४०% होता है। फलस्वरुप निर्माण होनेवाला दाब ८ mmHg होता है।

इन सभी फोर्सेस के कारण सूक्ष्मरक्ताभिसरण में प्रत्यक्ष आदान-प्रदान कैसे होता है, यह अब हम देखेंगे।

केशवाहिनियों के आरटिरिअल सिरे पर रक्त का द्राव और अन्य घटक बाहर निकलते हैं अथवा ङ्गिल्टर होता है। वहीं वेन्युल्स के ओर के सिरे पर द्राव व अन्य पदार्थ पुन: केशवाहिनियों में शोषित हो जाते हैं।

केशनाहिनी का → आरटरीज की → वेन्युल्स के → ओर का सिरा → ओर का सिरा

– केशवाहिनी में दबाव ३० mmHg  १० mmHg

– इंटरस्टिशियल द्राव   ३ mmHg     ३ mmHg
का ऋणदाब

– इंटरस्टिशियल द्राव
का कोलॉइड

ऑस्फॉटिक प्रेशर     ८ mmHg    ८ mmHg
——————————————
द्राव को बाहर           ४१ mmHg     २१ mmHg
निकालने वाले फोस

प्लाझ्मा कोलॉइड    २८ mmHg       २८ mmHg

ऑस्मॉटिक दाब
द्राव को केशवाहिनी में वापस लेनेवाला फोर्स

                                ४१        २८

                               -२१        -२८
द्राव बाहर निकालने  —-        —-
वाला नेटफोर्स      १३ mmHg    ०७ mmHg

उपरोक्त तालिका से यह बात ध्यान में आती हैकि केशवाहिनी के आरटिरिअल सिरे पर द्राव को बाहर निकालने वाला फोर्स, द्राव को वापस शोषित करनेवाले फोर्स की तुलना में १३ mmHg ज्यादा होता है। इसीलिये यहाँ पर रक्त के घटक बाहर निकाले जाते हैं। केशवाहिनी के वेन्युल्स सिरे पर इन घटकों को वापस अंदर खींचने वाला फोर्स घटकों को बाहर निकालने वाले फोर्स की तुलना में ७ mmHg ज्यादा होता है।

केशवाहिनी के आरटिरिअल सिरे से बाहर निकलने वाले द्राव का लगभग ९०% द्राव वेनस सिर पर पुन: केशवाहिनी में खींच लिया जाता है। शेष १०% द्राव लिफॅटिक वाहिनियों में शोषित किया जाता है।

अगले लेख में हम लिंफॅटिक संस्था के सूक्ष्म रक्ताभिसरण से रहनेवाले संबंध का अध्ययन करेंगे।

(क्रमश:)

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