श्रवणइन्द्रियों का कार्य – भाग ३

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आज हम हमारे अंतःकर्ण के कार्यों का अध्ययन करेंगे। अंतःकर्ण में ही संवेदनशील पेशी व संवेदनशील तंतु होते हैं जो ध्वनिलहरों के कंपनों का रुपांतर संवेदन अथवा अनुभूति में करते हैं। इन संवेदन लहरों का वहन संवेदनशील तंतुओं से होकर मस्तिष्क में होता है। मस्तिष्क में एक अलग श्रवण क्षेत्र (ऑडिटरी एरिया) होता है। वहॉं पर इन ध्वनि लहरों का विश्‍लेषण व पृथक्करण किया जाता है। इन चीजों को हम थोड़ा सरल ढंग से समझते हैं।

हमने देखा कि अंतःकर्ण के तीन भाग होते हैं। प्रत्येक भाग का बाह्यकवच हड्डियों का तथा अंदर का भाग पतले परदे का होता है। इसका प्रत्येक भाग कुछ विशिष्ट कार्य करता है।

१) कॉकलीया

कान की रचना का अध्ययन करते समय हमने इसकी संक्षिप्त जानकारी प्राप्त की थी। अब हम इस कार्य की दृष्टि से इसकी सविस्तार जानकारी हासिल करेंगे कॉंकलिया में तीन नलिका आपस में जुडी रहती हैं। उनके नाम हैं १) स्काला क्यूटीक्यूती २) स्काला मीडिया तथा ३) स्काला टिपॅनी।

इन नलिकाओं को एक दूसरे से अलग करनेवाले परदे होते हैं तथा इन सबमं एंडोलिम्फ नामक द्रवपदार्थ होता है। मध्यकर्ण की अंतिम अस्थी स्टेपीझ में से आनेवाली ध्वनिलहरें स्काली वेस्टिब्यूल में कंपन निर्माण करती हैं। ये कंपन आगे चलकर स्काला मीडिया में पहुँचते हैं तथा वहॉं से उनका वहन स्कालाटिपॅती में होता है। स्काला टिपॅनी में जो भीतरी स्तर होता है उसे वॅसिलर स्तर कहते हैं। इस स्तर पर संवेदनशील पेशीयां होती हैं। पेशियों के इस समूह को कॉर्टीचा अवयव कहा जाता है। इसमें जो संवदेशनशील पेशियॉं होती हैं उन्हें केशीयपेशी कहते हैं। यही पेशियॉं श्रवणसंवेदना को मस्तिष्क तक पहुँचानेवाली पेशियॉं होती हैं। (ऑडिटोरी – सेन्सरी एंड ऑर्गन )

वॅसिलर स्तर ध्वनिलहरों के कंपनों का वहन कॉर्टीचा अवयव तक कैसे करता है, अब हम यह देखेंगे। इस स्तर की जो पेशियॉं होती हैं उनपर पतले से तंतु होते हैं। ये तंतु पेशियों पर अचल तथा किनारों पर चल होते हैं । फलस्वरुप प्रत्येक कंपन के साथ इनकी आगे-पीछे हलचल होती रहती हैं। वॅसिलर स्तर के आरंभिक भाग के तंतुओं की लंबाई ०.०४ मिमि होती हैं तथा अंतिम भाग (कॉर्टीचा अवयव के पास) इनकी लंबाई ०.५ मिमि होती हैं। इसीप्रकार ऊंचाई के साथ इन तंतुओं का मोटापन भी कम होते जाता है। इसका लाभ कैसे होता है? तीव्र आवर्तनों के लहरों का वहन आरंभिक तंतुओं में से होते हुए अत्यंत वेगपूर्वक होता हुआ फिर यही वहन आगेचलकर धीमी गतीसे होता है। इसी दरमियान ये लहरें एक दूसरे से अलग होती है और कॉर्टी के अवयवों में से केशपेशींओं की व्यवस्थित रुप से जॅाच कर सकती हैं। साथ ही साथ ऊँचाई के साथ इन तंतुओं आवर्तन वाली लहरों का वहन शुरुवात के तंतुओं द्वारा होता है। जिसका वेग ज्यादा होता है तथा अगले हिस्से में यह वहन धीमी गति से होता है। इसी दरम्यान ये लहरें एक-दूसरे से अलग होती हैं तथा कॉर्टीचा अवयव के केशपेशिओं की ठीक से गणना की जा सकती हैं। यदि ऐसा नहीं होता है तो निश्‍चित ही यदि तीव्र आर्वतनों वाली ये ध्वनिलहरें एकत्रित ही रहती तो संवेदनशील पेशियॉं उन्हें अलग अलग नहीं पहचान सकती थी। फलस्वरुप आनेवाली आवाज का उचित ज्ञान हमें नहीं हो सकता है।

कान के इन अवयवों के विभिन्न कार्यों का भला हमें क्या फायदा होता है ? तो इसका फायदा यह है कि बिल्कुल सूक्ष्म कुजबुजाहट से लेकर अत्यंत ऊँची आवाज तक (शोर शराबे तक) अपने कान विविध तीव्रतावाली आवाजें सुन सकते हैं। आवाज की तीव्रता हम डेसिबल युनिट्स में मापते हैं। अब तक हमने देखा कि आवाज सुनने की क्रिया कैसे होती हैं। अब हम देखेंगे कि आवाज न सुनने की क्रिया अर्थात बहरेपन की क्रिया कैसे होती है ?

बहरापन दो तरह का होता है –

१) संवेदन तंतु के कारण होनेवाला बहरापन – जब किन्हीं कारणों से कॉकलीया अथवा श्रवणमज्जा (ऑडिटेारी नर्व्ह) क्षतिग्रस्त हो जाती है तब इस प्रकार का बहरापन आ जाता है। यह बहरापन ठीक किया जा सकता है। बाह्यकर्ण नलिका का मार्ग खुला करके पहला कारण दूर किया जा सकता है तथा श्रवणयंत्र का उपयोग करके दूसरे प्रकार का बहरापन दूर किया जा सकता है।

बहरापन किस प्रकार का है इसका निर्णय डॉक्टर लोग ऑडिओ मेट्री तथा ऑडियोग्राम की सहायता से करते हैं।

कॉकलिया के द्वारा श्रवणकार्य कैसे किया जाता है, यह हमने देखा। परंतु अपना अंतःकर्ण सिर्फ इतना ही कार्य नहीं करता।

इसकी बेस्टिव्ब्यूल व तीन अर्धवर्तुलाकार नलिकायें क्या कार्य करती हैं, अब हम यह देखेंगे –

बेस्टिव्यूल अवयव के कार्य –
१) शरीर का संतुलन बनाये रखना।
२) किसी भी वस्तु पर नजर स्थिर करना।

इन कार्यों के लिये वेस्टिव्यूल के दो अलग अलग भाग होते हैं –

१) चल लँबिरिंथ (कायनेटिक लँबिरिंथ ) – यह भाग मस्तिष्क की प्रत्येक कृति पर नजर रखता है। मस्तिष्क की कृति के अनुसार इस भाग के इंडोलि का प्रवाह बदलता है। इस कार्य के लिये अर्धवर्तुलाकार नलिकायें उपयोगी साबित होती हैं। ये तीनों नलिकायें एक दूसरे से समकोण बनाये रखती हैं।

२) अचल लॉविरीध ( स्टॅटिक लँबिरिंथ ) यह भाग गुरुत्वाकर्षण शक्ति (हमारे शरीर में कार्यरत) तथा उसकी तुलना में आँखों की स्थिति का अंदाज रखता है। अपना संतुलन बनाये रखने के लिये शरीर के गुरुत्वमध्य के खास मस्तिष्क को यथासंभव स्थिर रखने में सहायता करता है।

इससे हम जान सकते हैं कि जब हमें बारबार चक्कर आने लगता हैं तो डॉक्टर हमें कानों की जॉंच कराने की सलाह क्यों देते हैं। क्योंकि इस वेस्टिव्यूलर अवयव में खराबी आ जाने पर उसके कार्यों में बाधा उत्पन्न होने लगती है। फलस्वरुप संतुलन बनाये रखने की क्रिया बाधित हो जाती है जिसके कारण या तो हमें चक्कर आने लगता हैं अथवा बार-बार हमारा संतुलन बिगडने लगता है और जान पडता हैं,कि हम अब गिर जायेंगे।

कानों का अध्ययन करते समय हमने उनकी रचना, उनके कार्यों बहरापन क्या है और वह कैसे आता है, उसके निदान के क्या उपाय है तथा शरीर के संतुलन को बनाये रखने में कानों के सहभाग को भी हमने देखा। अब हम अगले लेख में दूसरी ज्ञानेंद्रियों के बारे में ज्ञान अर्जित करेंगे।

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