अल्बर्ट आइन्स्टाइन १८७९-१९५५

‘‘गणिति भौतिकशास्त्र का संवर्धन व फोटो – इलेक्ट्रिक परिणामों के विषय में नियम खोजने हेतु नोबेल पुरस्कार’’ (सन १९२१)

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अल्बर्ट आइन्स्टाइन

१४ मार्च १८७९ के दिन जर्मनी के गटेनबर्ग प्रांत के उल्म गांव में एक यवन घराने में अल्बर्ट आइन्स्टाइन का जन्म हुआ। उनके पिताजी अपने भाई की सहायता से विद्युत रासायनिक कारखाना चलाते थे। माँ एक कलाकार थी और उन्हें संगीत की विशेष चाह थी। आल्बर्ट को भी संगीत की चाह थी और अंत तक विज्ञान के साथ साथ उनकी यह चाह बनी रही। अल्बर्ट जब छे साल के थे तब उनका परिवार म्युनिक स्थलांतरित हो गए। अल्बर्ट की स्कूली शिक्षा म्युनिक के कैथलिक स्कूल में हुई।

दस साल की उम्र में उन्हें म्युनिक के लुटपोल्ड स्कूल में दाखिल किया गया। अल्बर्ट को लैटिन व ग्रीक भाषाओं के व्याकरण का अध्ययन नहीं भाया। मगर गणित में उनको खासी रूचि थी। उनके चाचा ने गणित में उनकी रूचि बढाई थी। उनके चाचा ने उन्हें बीजगणित और भूमीति की पहचान कराई। इस विषय में गति को जानकर गणित में उनकी रूचि निर्माण हुई। विज्ञान विषय पर आसान भाषा में लिखी हुई किताबें पढकर उनकी इस विषय में रूचि अधिक बढी। उनकी स्कूली शिक्षा जिस तरह से चल रही थी यदि वैसे ही चलती रहती तो १८ वर्ष की आयु में वे जर्मनी के किसी भी युनिवर्सिटी में दाखिल हुए होते; परंतु जब वे १५ वर्ष के थे तब उनके पिताजी ने म्युनिक का अपना कारखाना इटली के मिलन शहर में स्थानांतरित किया। छे महीनों बाद अल्बर्ट भी अपने माता-पिता के पास इटली चले गए।

उनके पिताजी का कारखाना इटली में अच्छी तरह से नहीं चला तो अल्बर्ट को छोटी उम्र में ही नौकरी ढूंढनी पडी। नौकरी के लिए वें पॉलीटेकनिक में दाखिला पाने के लिए फेडरल पॉलिटेकनिक स्कूल की प्रवेश परिक्षा में बैठे। गणित में उत्तम मार्क पाने के बावजूद वे फेल हो गए। तदुपरांत आरॉ गांव के स्कूल में एक साल पढाई करके उन्होंने स्कूल की अंतिम परिक्षा दी और पॉलीटेकनिक में प्रवेश पाया।

पॉलीटेकनिक की पढाई पूरी करके उसी विद्यालय में नौकरी पाने की कोशिश की, मगर उन्हें नौकरी नहीं मिली। कुछ दिनों तक निजी ट्यूशन करके वे दो वक्त की रोटी जुटा लेते थे। फिर उन्होंने अग्राधिकार कार्यालय में क्लार्क की नौकरी स्वीकारी। अग्राधिकार पाने के लिए आई हुई अर्जियां पढकर, उस पर टिपणियां करके, अनुकूल या प्रतिकूल विचार व्यक्त करने का कार्य उन्हें सौंपा गया था और इसे करते हुए उनका विज्ञान के विषय से अटूट संबंध जुडा तथा उस विषय में उनकी रूचि बढने लगी। मगर उन्होंनें गणितशास्त्र की पढाई जारी रखी। सन १९०२ में उन्होंने उष्मगतिकशास्त्र संबंधी एक संशोधन निबंध ऍनालेन डेर फिजिक नामक सामयिक पत्रिका में छपवाया था। फ़िर सन १९०५ में इसी सामयिक पत्रिका में तीन संशोधन निबंध छपवाए।

एक फोटो इलेक्ट्रिसिटी संबंधी पदार्थ पर प्रकाश किरण गिरने पर होनेवाले विद्युत के बारे में था तो दूसरा कणों के ब्राउनियन मुद्रा के संबंध में था और तीसरा सापेक्षतावाद के बारे में था। उसी वर्ष अर्थात सन १९०५ में उन्होंने बर्न युनिवर्सिटी का डॉक्टरेट हासिल किया।

सन १९०९ में बर्न युनिवर्सिटी में उन्हें शिक्षक के रूप में नियुक्ति मिली तथा वे अग्राधिकार कार्यालय में नौकरी भी करते रहे। थोडे ही दिनों में जुरिक युनिवर्सिटी ने उन्हें उपप्राध्यापक के पद पर नियुक्त किया तभी उन्होंने अग्राधिकार कार्यालय को इस्तीफ़ा दे दिया।

वे सन १९१० में प्राग युनिवर्सिटी में जर्मन विभाग में सैधांतिक भौतिकी शास्त्र सिखाने लगे। यह विषय सिखाने का कार्य आइन्स्टाइन को सौंपा गया और इस वजह असे वे प्राग आ गए। मगर थोडे ही दिनों में जुरिक युनिवर्सिटी के पॉलिटेक्निक स्कूल ने उन्हें सैधांतिक भौतिकशास्त्र का प्राधयापक नियुक्त किया और उन्हें जुरिक आने के लिए आमंत्रित किया। प्राग छोडकर जुरिक लौटने का निर्णय उन्होंने खास तौर पर अपनी पत्नी की खातिर लिया। वे जब बर्न युनिवर्सिटी में थे तब उन्होंने सहाध्यायी छात्रा से विवाह किया था और उसे जुरिक शहर बहुत पसंद होने के कारण वे जुरिक गए।

बर्लिन में कैसर विल्हेल्स फिजिकल इन्स्टिट्यूट की स्थापना हुई थी। जर्मनी के विज्ञान विषय के संशोधन के कार्य को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से, जर्मन सरकार ने बहुत खर्च करके हर प्रकार के अद्यातन उपकरणों से व साधनसामग्री से सुसज्जित प्रयोगशाला बनवाई। इस इन्स्टिट्यूट के संचालक पद पर आइन्स्टाइन की नियुक्ति, बर्लिन युनिवर्सिटी के प्राध्यापकपद का सम्मान और प्रशियन ऐकेडमी ऑफ सायन्सेस इस संस्था का सदस्यत्व इतने प्रलोभनों से उन्हें बर्लिन बुलाया गया था। सन १९१३ में उन्होंने संचालक पद स्विकारा और वे २० वर्षों तक बर्लिन में ही रहे।

बर्लिन आने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने पत्नी से तलाक ले लिया। उनकी पत्नी दो बच्चों के साथ स्विझर्लैंड लौट गई। आइन्स्टाइन ने पहले महायुद्ध के दौर में अपनी ममेरी बहन एल्या से विवाह किया।

पहला महायुद्ध खत्म होने से पहले ही आइन्स्टाइन के तुलनात्मकवाद सिद्धांत को विश्‍व मान्यता मिली और तुलनात्मकवाद के जनक के रूप में आइन्स्टाइन विश्‍व में मशहूर हो गए।

विश्‍व के हर देश में उन्हें एक महान तात्त्विक भौतिकशास्त्र विशेषज्ञ माना गया। लंदन के रॉयल सोसायटी ने सन १९२१ में ही उन्हें अपना सभासद बना लिया। सन १९२५ में उसी सोसायटी ने कोप्ले पदक देकर उन्हें सम्मानित किया। सन १९२६ में लंदन के रॉयल एस्ट्रॉनॉमिकल सोसायटी ने उन्हें स्वर्णपदक अर्पण किया। सन १९३५ में अमेरिका के फ्रैंकलिन इन्स्टिट्यूट ने उन्हें फ्रैंकलिन पदक से सम्मानित किया। हारवर्ड, प्रिन्स्टन, ऑक्सफर्ड, केम्ब्रिज, लंदन, पैरिस आदि जगहों के युनिवर्सिटियों ने उन्हें अपना माननीय डॉक्टरेट का खिताब देकर सम्मानित किया।

आपेक्षवाद का आइन्स्टाइन द्वारा पेश किया हुआ एक नियम बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हुआ है। किसी पदार्थ ने वि-किरण स्वरूप में ऊर्जा उत्सर्जन किया जाए तो उस पदार्थ से निकलनेवाली ऊर्जा बट्टा प्रकाश की गति इसके भागफल जितना उस पदार्थ का भार घट जाता है और पदार्थ की ऊर्जा में बढौत्री होने पर पदार्थ का भार भी बढ जाता है। पदार्थ का भार उस पदार्थ में मौजूद ऊर्जा का एक नाप है और उन दोनों का अटूट संबंध है।

भार (ग्राम में) = ऊर्जा (कैलोरी में)

c यह प्रकाश की गति है हर पल को c है अर्थात e=mc2 e अर्थात ऊर्जा, भार अर्थात m व c अर्थात प्रकाश की गति मानी जाती है|

ऐटमबम गिरने पर युरेनियम का विघटन होता है या उस अणु के टुकडे हो जाते हैं। इस विघटन क्रिया के समय कुछ भार का ऊर्जा में परिवर्तन होता है इसलिए बडे ही विशाल प्रमाण में ऊर्जा निर्माण होती है। एक पल के दशलक्षांश भाग में होनेवाली विशाल ऊर्जा निर्माण की वजह से, ऐटमबम को संहारक स्वरूप प्राप्त होता है। अणुभट्टी में भी भार का ऊर्जा में परिवर्तन होता है। इस लिए थोडासा युरेनियम इस्तेमाल करके निरंतर ऊर्जानिर्माण किया जा सकता है।

इस महान नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक का अन्त सन १९५५ में हुआ।

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