लिओ बेकलँड (१८६३-१९४४)

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आधुनिकयुग के युग के प्लॅस्टिक के रूप में जाने-माने ‘बेकेलाइट’ ने बहुत बड़े पैमाने में लोकप्रियता प्राप्त की है। १९२४ में टाइम्स इस मशहूर साप्ताहिक ने ‘आधुनिक संस्कृति में स्वेच्छापूर्वक प्रवेश कर जानेवाला पदार्थ’ इन शब्दों में बेकेलाइट का वर्णन किया था।

जी हॉं! प्लॅस्टिक के बारे में कुछ विशेष कहने की आवश्यकता नहीं है। एक सामान्य गृहिणी से लेकर अंतरिक्षवीरों तक हर किसी की ज़रूरत पूरा करनेवाले। बिलकुल ‘अल्लाउद्दीन के चिराग’ के समान। अर्थात जो जिस प्रकार इसका उपयोग करे। जहॉं ज़रूरत हो वहीं पर यदि इसका उपयोग करें तो वर्षानुवर्ष यह हमारा साथी है अन्यथा हमें २६ जुलाई का दिन नहीं भूलना चाहिए।

आज के युग में हम अनेक प्रकार के शब्दों का उपयोग करते हैं। सभी प्रकार की जानकारी देनेवाला यांत्रिकज्ञान का युग, जैविक यांत्रिकज्ञान का युग अथवा प्रसार माध्यमों का युग आदि। इसे यदि हम कुछ हद तक सही मान ले तो इन सभी स्थानों पर उपयोग में लायी जाने वस्तुओं पर यदि हम सहज नज़र डालते हैं तो हम जान सकते हैं कि अधिकतर स्थानों पर उपयोग में लाये जाने वाले वस्तुओं में प्लॅस्टिक का उपयोग बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है। अब यदि हम आज के समय को कोई भिन्न नाम देते हैं तो मुझे नहीं लगता है कि कोई भी आपत्ति जतायेगा। और यह नाम ही ‘प्लॅस्टिक युग’।

और आज सर्वत्र सहज संचार करनेवाले इस प्लॅस्टिक के जनक हैं- ‘डॉ. लिओ बॅकलँड’।

इनका जन्म १४ नवम्बर १८८३ के दिन बेल्जियम के घेन्ट नामक गॉंव में एक सामान्य चर्मकार के घर हुआ था। उम्र के २१ वे वर्ष घेंट इस विश्‍वविद्यालय से रसायनशास्त्र में डॉक्टरेट प्राप्त करने पर लिओ ने अपना संशोधन कार्य आरंभ कर दिया। उम्र के २५वे वर्ष ही लिओने छायाचित्रण हेतु लगनेवाले ‘व्हेलॉक्स’ इस कागज की खोज की।

परन्तु अमरीका जाकर पैसे कमाने की इच्छा रखनेवाले लिओ बेकलँड ने व्हेलॉक्स का अधिकार जॉर्ज इस्टमन के हाथों १० लाख डॉलर्स में सौंप दिया। इसके पश्‍चात १८८९ में लिओ बेकलँड ने अमरिका जा पहुँचे। उस समय अमरिका में विद्युतभार संवाहन आरामदायक एवं सहज करने हेतु विद्युतरोधक जॉंच-पड़ताल का कार्य चल रहा था। उस समय में सिर्फ रबर का ही विकल्प उपलब्ध था। परन्तु वह पूर्ण विश्‍वास रखने योग्य न होने के कारण नये-नये प्रयोग चल रहे थे।

बेकलँडने अमरिका पहुँचकर अपने घर के बराङ्कदे ङ्कें रहने वाले गोदाम को प्रयोगशाला बनाकर वहीं पर अपना प्रयोग कार्य आरंभ कर दिया। प्रथम प्रयोग हुआ लाख पर। परन्तु एशिया से इस पदार्थ को मँगवाये जाने के कारण आर्थिक दृष्टि से यह महँगा पड़ने लगा।

१९०४ से ही उन्होंने लाख की बराबरी में दूसरा विकल्प ढूंढ़ना आरंभ कर दिया। इससे पहले भी अनेक संशोधकों ने इस संदर्भ में संशोधन किया था। परन्तु प्रत्यक्षरुप में उसे अमल में लाने में वे अयशस्वी रहे थे। अंत में बेकलँड ने दो विरुद्ध गुणधर्मवाले ‘फेनॉल’ एवं ‘फॉरमलडिहाइड’ इस रसायन पर प्रयोग करना आरंभ किया। बेकलँड ने सर्वप्रथम इन पदार्थों का एकत्रित करके उन्हें उष्णता दी। जब उसे ठंडकता प्रदान की गई तब उन्हें पता चला कि नये रुप में तैयार होनेवाला यह पदार्थ अत्यन्त कठिन स्वरुप का है। बेकलँड ने इस पदार्थ को नाम दिया ‘बेकेलाइट’।

१९०९ में बेकलँड ने अमेरिकन केमिकल सोसायटी की सभा में सर्वप्रथम इस खोज की जानकारी दी। यह ‘बेकेलाइट’ अर्थात प्लॅस्टिक युग का आरंभ था। बेकलँड ने इसके लिए स्वयं विशेष मशीन भी तैयार की थी।

‘बेकेलाइट’ यह सही मायने में आधुनिक प्लॅस्टिक माना जाता है। कारण इसे बनाते समय मूलत: किसी भी नैसर्गिक पदार्थ का उपयोग नहीं किया गया था। बिलकुल सस्ते, तापमानरोधक एवं सहज ही नष्ट न होनेवाले इन सारी विशेषताओं के कारण इस नये प्लॅस्टिक ने उस समय के रसायनशास्स्त्र ही नहीं बल्कि उद्योगजगत में भी नयी क्रांति ला दी।

आरंभ में केवल इलेक्ट्रोनिक एवं अन्य यांत्रिक उद्योगों में उपयोग में लाये जानेवाले प्लॅस्टिक ने १९२० में ग्राहकोपयोगी वस्तुओं के उद्योग में भी प्रवेश किया। और बिलकुल रेडिओ से लेकर बिलिअर्ड बॉल तक सभी चीजों में प्लॅस्टिक ने अपना महत्त्वपूर्ण स्थान कायम कर लिया। अर्थात अपना फायदा देखनेवाले लिओ बेकलँड भी पिछे न रहे। १९१० में ही बेकलँड ने जनरल बेकलँड कार्पोरेशन की स्थापना की थी। उस समय बेकलँड ने ‘बेकेलाइट’ का विज्ञापन ही ‘अमटेरिअल ऑफ थाऊजन्ड यूझेस’ इस प्रकार किया था।

आधुनिक युग के प्लॅस्टिक के रुप में पहचाने जाने वाले ‘बेकेलाइट’ ने बहुत बड़े पैमाने पर लोकप्रियता हासिल की १९२४ में टाइम्स इस जगप्रसिद्ध साप्ताहिक ने ‘आधुनिक संस्कृति में चहुओर से प्रवेश कर जानेवाला पदार्थ’ इन शब्दों में बेकेलाइट का वर्णन किया था। बेकेलाइट के बाद प्लॅस्टिक के अनेक आवृत्तियॉं निकली, उनमें से कुछ आवृत्तियॉं भ्रष्ट भी थीं। आरंभ में वे भ्रष्ट आवृत्तियॉं भी चलती रही परन्तु आगे चलकर वे अपयशी साबित हुई।

समय के साथ-साथ प्लॅस्टिक में धीरे-धीरे सुधार होता रहा। विविध कंपनियों ने अनेक प्रकार से उसका उपयोग करना शुरु कर दिया। आगे चलकर इसी में से पॉलिथिलिन, पीव्हीसी, ऍक्रॉलिक, नायलॉन आदि का विकास हुआ। आज के युग में जितने बड़े पैमाने पर इसका उपयोग किया जाता है। उसी पैमाने पर उस पर दोष भी लगाया जाता है। इसका एकमेव कारण यह है कि प्लॅस्टिक को सहज नष्ट नहीं किया जा सकता है। यह वर्षानुवर्ष जैसे का तैसा ही रहता है। और इसका बहुत ही बुरा असर हमारे पर्यावरण पर पड़ता है। ऐसा होने पर भी प्लॅस्टिक को उसके समान ही समर्थ विकल्प जब तक उपलब्ध नहीं हो जाता है, तब तक इसका उपयोग होता ही रहेगा।

बेकेलाइट के समान ही रसायनशास्त्र के अन्य संशोधनकर्ता लिओ बेकलँड ने अपने जीवनकाल में लगभग १०० पेटंट की कमाई भी की। एक नये युग का जनक माने जानेवाले इस बुद्धिमान संशोधनकर्ता का निधन २३ फरवरी १९४४ में हुआ।

प्लॅस्टिक की खोज करनेवाले लिओ बेकलँड ने उस समय लाख के विकल्प के रुप में संशोधन करते समय प्लॅस्टिक का आविष्कार किया था। उस समय में यह आविष्कार निश्चित ही क्रांतिकारी था। अपना यह क्रांतिकारी आविष्कार एक दिन भस्मासूर बन जायेगा यह कभी उन्होंने सोचा भी न था। यह विनाशकारी है। इस बात की जानकारी होने पर भी हमने प्लॅस्टिक को इतना अधिक बढ़ावा दिया। परन्तु अब ऐसा समय आ गया है कि हमें इस प्लॅस्टिक से अपनी पृथ्वी को बचाना है। शायद इसीलिए पुन: एक बार बेकलँड जैसे बुद्धिङ्कान एवं समय की मॉंग को पहचानने वाले संशोधनकर्ता की ज़रूरत इस पृथ्वी को है।

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