मायकेल फॅरेडे (१७९१-१८६७)

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तकरीबन सन १८४० के आसपास की बात है। एक बार ब्रिटन की रानी व्हिक्टोरिया मायकेल फॅरेडे की प्रयोगशाला देखने गई। उस वक्त फॅरेडे वहां पर उपस्थित लोगों को एक संशोधित नियम के परिणामों के संदर्भ में जानकारी दे रहे थे। कुछ देर सुनने के बाद रानी ने अचानक पूछा, आपकी बात सच हो भी सकती है, मगर आम लोगों को इस से क्या लाभ होगा? फॅरेडे ने शांति से मुडकर बडी विनम्रता से जवाब दिया, रानीसाहिबा, नवजात शिशु को देखकर क्या हम कभी पूछते हैं कि, समाज को इससे क्या लाभ होगा?

आज के दौर में जब कोई नई खोज होती है तो उसका फल या लाभ आम आदमी को बहुत ही कम समय में मिलने लगता है। मगर १८वीं या १९वीं शताब्दी में ऐसी स्थिति नहीं थी। सारा जीवन संशोधन करने में बिताने के बाद विशेषज्ञों को उनके द्वारा की गई खोज के परिणाम देखना भी नसीब नहीं होता था। पर उसी दौर में मायकेल फॅरेडे जैसे विज्ञनिकों ने अपनी खोज आम आदमी तक पहुंचाकर संपूर्ण समाज तक उसके लाभ पहुंचाने के भी प्रयास किए।

आज हम सब आसानी से बिजली पर चलनेवाले उपकरणों का इस्तेमाल करते हैं। इन उपकरणों की खोज भले ही अलग अलग संशोधकों ने की हो फिर भी मायकेल फॅरेडे ने १८वीं शताब्दी में इन उपकरणों को इस्तेमाल करने की तकनीक की खोज का महत्वपूर्ण कार्य किया।

मायकेल फॅरेडे का जन्म २२ सितम्बर १७९९ को लंदन के पास न्यूइंग्टनबस में हुआ। गरीबी की वजह से मायकेल को शिक्षा ग्रहण करके के लिए खुद पैसे कमाने पडे। १४ वर्ष की आयु में वे बुक बाईंडिंग का कार्य करते हुए बहुत कुछ सीखे। पढते हुए ही धीरे धीरे विज्ञान में उनकी रूचि निर्माण हुई। फिर वे एक जानेमाने वैज्ञानिक हंफ्रे डेवी के भाषण सुनने लगे। तत्पश्‍चात केवल चाह और प्रयोगशाला में कार्य करने की तीव्र इच्छा की वजह से वे रॉयल इन्स्टिट्यूट ऑफ सायन्स में सहायक के तौर पर नौकरी करने लगे।

विज्ञान, गणित की कोई भी औपचारिक शिक्षा ना होते हुए भी केवल वैज्ञानिकों के खयालों पर निर्भर होकर फॅरेडे ने संशोधन करना आरम्भ किया। इस कार्य में उन्हें रेव्हरंड विल्यम व्हेवेल ने अनमोल सहायता की। फॅरेडे ने विद्युतरसानशास्त्र से अनेक संज्ञाएं बनाकर उन्हें जारी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस संज्ञाओं में इलेक्ट्रोड, इलेक्ट्रोलिसिस, इलेक्ट्रोलाइट, आयन, ऍनोड व कॅथोड का समावेश है।

इसके बाद फॅरेडे ने अपना ध्यान नए विषयों की ओर मोडा। विद्युतधारा की वजह से चुंबकीय क्षेत्र निर्माण होता है इस बात पर विश्‍वास करनेवाले फॅरेडे इस संदर्भ में संशोधन करने लगे। ‘एक तार के लूप से एक चुंबकडंडी को झट से सरकाने से उसी वक्त चुंबकीय क्षेत्र रफ्तार से बदलता है। इसके परिणामस्वरूप उस तार में विद्युतप्रवाह उस समय के लिए निर्माण होता है। जितनी अधिक रफ्तार से तार के लूप में कुल चुंबकीय बदलता है उतने प्रमाण में तार के लूप में विद्युतप्रवाह निर्माण होने की प्रवृत्ति बढती है।’ फॅरेडे का प्रयोग इस संदर्भ में कामयाब हुआ और विद्युतचुंबकीय शास्त्र नामक विज्ञान के एक उपशाखा का जन्म हुआ।

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फॅरेडे द्वारा किए गए इस प्रयोग को ‘फॅरेडे परिणाम’ के नाम से जाना जाता है। मगर फॅरेडे केवल इससे संतुष्ट नहीं रहे। उन्होंने खुद अपना संशोधन आम लोगों तक पहुंचाने हेतु आगे दूसरा अध्ययन किया। अथक मेहनत के बाद उन्होंने विद्युतचलित्र निर्माण करके उसका प्रयोग भी कामयाबी से किया। पर वे कभी भी इसका व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे।

उस दौर में मायकेल फॅरेडे ने विद्युतचुंबकीय शास्त्रा के माध्यम से औद्योगिक विकास को बहुत बढावा दिया। इसी तरह ‘फिल्ड थिअरी’ उनके द्वारा विज्ञान को दिया गया बडा योगदान माना जाता है। आज बडे पैमाने पर विद्युतनिर्माण करके घर घर तक पहुंचाने के लिए जो ट्रान्सफॉर्मर्स, डायनॅमो व इलेक्ट्रीक मोटर्स इस्तेमाल किए जाते हैं इसका श्रेय मायकेल फॅरेडे को ही दिया जाना चाहिए।

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