जोसेफ प्रिस्टले (१७३३-१८०४)

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जोसेफ प्रिस्टले

अज्ञात की खोज इन्सान की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। अज्ञात की खोज करते हुए इन्सान को उसकी विचारक्षमता साथ देती है। सोच, क्रियाशक्ति एवं प्रयोगशीलता की निरंतरता एवं संग से विज्ञान के खोजों की श्रृंखला चलती रहती है।

ऑक्सिजन की खोज करनेवाले संशोधक में जोसेफ प्रिस्टले का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। प्रिस्टले का कार्य केवल ऑक्सिजन की खोज तक ही सीमित नहीं है बल्कि उन्होंने ऑक्सिजन-कार्बनडाय ऑक्साईड की श्रृंखला किस तरह से कार्य करती है इसे प्रमाण के साथ पेश किया।

जोसेफ प्रिस्टले का जन्म २४ मार्च १७३३ को यॉर्कशायर स्थित लीड्स में एक बुनकर के घर में हुआ। स्कूली शिक्षा के बाद घर की आर्थिक स्थिति की वजह से उन्होंने शिक्षक का कार्य स्वीकारा। उन्होंने स्कूली जीवन में वे ग्रीक, लैटिन, हिब्रु भाषाएं सीखीं। स्कूली शिक्षा के दौरान कुछ अरसे तक स्कूल न जाकर उन्होंने स्वयं फ्रेंच, जर्मन, इटालियन, सीरियन, अरेबिक भाषाओं का अध्ययन किया तथा निजी रूप से भूमिती, अंकगणित के मूल तत्त्वों का अध्ययन भी किया। 

रसायनशास्त्र के प्रति उनकी चाह निर्माण होने का एक कारण यह था कि वे ‘डिसेन्डर’ नामक संस्था में इस विषय पर व्याख्यान सुनने जाते थे और खुद वैज्ञानिक प्रयोग करके देखते थे। ‘विद्युत ऐतिहासिक अनुकरण एवं आज की स्थिति’ यह किताब उन्होंने लिखी। सन १७६६ में उन्हें रॉयल सोसायटी की फेलोशिप मिली।

लीड्स में धर्मोपदेशक के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। खाली समय में वे रसायन शास्त्र के प्रयोग किया करते थे। रसायनशास्त्र की ओर उनका झुकाव देखकर उन्हें धर्मोपदेशक के पद से मुक्त किया गया। जोसेफ प्रिस्टले  फ्रेंच अकादमी के सदस्य थे। लॉर्ड सेलबर्न इस विद्वान सरदार ने उन्हें उनकी निजी लायब्ररी के व्यवस्थापक के पद पर नियुक्त किया।

उन्होंने प्रक्रिया में निर्माण होनेवाला वायु जमा करके उस में जलता हुआ टुकडा रखा और वह बुझ गया। वह वायु कार्बन-डाय-ऑक्साईड था। कार्बन-डाय-ऑक्साई वायु को उन्होंने पानी में घोला तो उस का स्वाद मधुर, तीव्र गंध की तरह था। इस से सोडा वॉटर की खोज हुई। 

सन १७७२ में वे फ्रेंच अकादमी ऑफ सायन्स के सदस्य बने और सन १७७३ में उन्हें रॉयल सोसायटी से पदक प्रदान किया गया। तत्पश्‍चात ऑक्सिजन की खोज हुई। ऑक्सिजन बनाने के लिए फैले हुए बर्तन में पारा लेकर उस में कटोरी वाला स्टैंड खडा किया गया। कटोरी में मर्क्युरिक ऑक्साईड विघटन हुआ और वह पारे में परिवर्तित हो गया। उन्होंने इस वायु को ‘ज्वलनतत्त्वरहित हवा’ का नाम दिया। वायु निर्माण होने की वजह से पारे का स्तर नीचे चला गया। उन्होंने जलती हुई मोमबत्ती इस वायु में आसानी से रख दी और चकाचौंद रोशनी हो गई। अर्थात यह ऑक्सीजन वायु था। 

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वनस्पती व प्राणियों के बीच प्राणवायु की श्रृंखला भी प्रिस्टले द्वारा साबित किया हुआ एक प्रयोग था। एक बडी हांडी में एक वनस्पती रखी गई। उस हांडी में से प्राणवायु को ज्वलनक्रिया से निकाला गया। उसी हांडी में कुछ दिनों बाद जलती हुई मोमबत्ती फिर से रखी गई और वह मोमबत्ती अच्छी तरह से जलने लगी। इस निरिक्षंण से उन्हें पता चला कि वनस्पती जब सांस छोडती हैं तब ऑक्सिजन बाहर निकालती हैं, मगर प्राणी सांस लेते समय ऑक्सिजन अंदर लेते हैं।

प्रिस्टले को ‘प्रथम मानव’ कहा जाना चाहिए कि जिन्होंने वनस्पती के श्‍वसन का निरिक्षण किया। वनस्पती एवं प्राणी में से एकदूसरे पर निर्भर रहनेवाले चक्र की जानकारी प्रतिपादित की।

सन १७७२ में एक प्रयोग द्वारा उन्होंने नई गैस (वायुरूप द्रव्य) की खोज की। उन्होंने नाइट्रस ऑक्साईड जैसा विचित्र परिणाम करनेवाला वायु ढूंढ निकाला। इसे लाफिंग गैस के नाम से भी जाना जाता है। कुछ अरसे बाद यह गैस ऑपरेशन के लिए अचेत करनेवाले गैस के रूप में जाना जाने लगा है। मगर यह खोज बाद में हुई है।

जोसेफ प्रिस्टले  को कार्बनडायऑक्साईड, नायट्रस ऑक्साईड, ऑक्सिजन ढूंढने में कामयाबी हासिल हुई। गैसमिश्रित सौम्य पान (सोडा पॉप) की खोज की। पहले फोटोसिनथेसिस का निरिक्षण किया, मगर वे इतने में ही संतुष्ट नहीं हुए। उन्होंने अमोनिया, सल्फर-डाय-ऑक्साईड, हायड्रोजन सल्फाईड, कार्बन मोनोऑक्साईड पहले अलग करके उस की जानकारी दी।

१५ अप्रैल १७७० को उन्होंने सामान्य जनों के काम में आनेवाली चीज ढूंढ निकाली। उन्होंने भारतीय गम (पेड से मिलनेवाला गोंद) पेन्सिल की लिखाई को मिटाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है यह खोज की। इस खोजी हुई चीज को उन्होंने ‘रबर’ नाम दिया।

सन १७७५ में फ्रान्स में क्रांति आई। प्रिस्टले ने क्रांति का पुरस्कार कर अंग्रेज जनता को क्रोधित किया। उनकी प्रयोगशाला, घर आदि जलाया गया। उन दिनों जोसेफ प्रिस्टले  अपने परिवार के साथ लंडन में रहते थे, मगर जल्द ही वे अमेरिका जा बसे। ६ फरवरी १८०४ मो उनका देहांत हो गया।

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