फ्रेड हॉएल

‘पृथ्वी के चारों ओर अंतरिक्ष में क्या है’, यह जानने की जिज्ञासा सर्वसामान्य नागरिकों को हमेशा से ही रही है। यह जिज्ञासा पूरी करने के लिए खगोलशास्त्रज्ञ अथक निरीक्षण करते रहते हैं। इस निरीक्षण से विश्‍वसंकल्पना के सिद्धांत खगोलशास्त्रज्ञ बनाते रहते हैं, दावा करते हैं। इसके लिए अंतरिक्ष की अनिश्‍चित बातों को स्पष्ट करने के लिए ‘विश्‍व वास्तव में इस प्रकार का है’ या ‘विश्‍व इस प्रकार का नहीं हैं’ इस तरक के विधान खगोल शास्त्रज्ञ करते रहते हैं। कई बार किये हुए दावे को पीछे लेने की नौबत भी इन खगोलशास्त्रज्ञों पर आती है। वैज्ञानिक स्तर पर बनायी गयी विश्‍वरचना की संभवता सिद्ध करने के लिए संशोधक निरंतर प्रयत्न करते ही रहते हैं। इन संशोधकों को कुछ प्रमाण में निश्‍चित यश मिलकर भी कुछ प्रमाण में अनिश्‍चितता वादग्रस्त मुद्दे के साथ शेष रह जाती है। इ.स. १९४८ वर्ष में फ़्रेड हॉएल ने स्थिर स्थिति के विश्‍व का सिद्धांत दृढ़ रूप से निश्‍चित किया। इस सिद्धांत को सिद्ध करने के लिए उन्हें दो सहकारियों का अनमोल साथ मिला था।

फ़्रेड हॉएल

ब्रिटेन के यॉर्कशर के बिंगले नामक गाँव में २४ जून सन् १९१५ के दिन फ़्रेड हॉएल का जन्म हुआ था। फ़्रेड की माँ संगीतज्ञ पियानोवादक थी और पिता कपड़े के व्यापारी थे। बचपन से ही फ़्रेड को गणित और विज्ञान विषय में विशेष रुची थी। घड़ी के काँटे और समय का संबंध दर्शानेवाला गणित फ़्रेड को उम्र के तीसरे वर्ष से ही समझ में आ गया था।

प्रायमरी स्कूल में पढ़ते समय उनके शिक्षक ने एक प्रकार के फ़ूल में पाँच पंखुड़ियाँ होती है ऐसा बताया था। फ़्रेड को वह फ़ूल कौन सा था यह मालूम था। फ़्रेड ने एक सच्चा (वास्तविक) फ़ूल लाकर दिखाया, जिसकी छ: पंखुड़ियाँ थी। फ़्रेड का निरीक्षण अपने शिक्षक को चुनौती देनेवाला साबित हुआ। शिक्षक ने उनके कान मरोड़ दिए। फ़्रेड ने घर आकर कहा कि सही उत्तर को गलत साबित करनेवाला यह व्यवहार है, इसीलिए मैं इस स्कूल नहीं जाऊँगा। फ़िर उसकी बात का समर्थन किया गया और उन्हें नयी पाठशाला में भेज दिया गया।

‘अनेक शिष्यवृत्तियाँ पानेवाला होशियार छात्र’ इस लौकिकता के साथ फ़्रेड ने केंब्रिज छात्र की पदवी हासिल की। तब तक दूसरा महायुद्ध शुरु हो चुका था और अन्य संशोधकों की तरह हॉएल ने भी युद्ध के लिए कुछ संशोधन करके रडार यंत्र विकसित करने में सहायता की।

बचपन से ही खगोलशास्त्र में उन्हें रुचि थी। बचपन में रात के समय आठ मील की दूरी पैदल तय करके उनके पिता और वे टेलीस्कोप में से नक्षत्र-दर्शन के लिए जाते थे और सुबह होने पर वापस घर आते थे। इसी रुचि के कारण बड़े होने पर वे शान्त नहीं बैठे और फ़िर खगोलशास्त्र की ओर मुड़ गए। विश्‍व की रचना यह उनका अत्यंत ही प्रिय विषय था। इसी के साथ सूर्यमाला की उत्पत्ति, आकाशगंगा की रचना रेडियो की लहरों का स्रोत, मूलतत्त्वों की उत्पत्ति इन सब क्षेत्रों में उनका संशोधनकार्य चल रहा था।

इस संशोधन की परिपक्वता के रूप में सन् १९४८ वर्ष में हॉएल ने थॉमस गोल्ड और हर्मन बॉण्डी इन सहकर्मियों के साथ स्थिर स्थिति विश्‍वसंकल्पना का प्रस्ताव रखा। दूसरे महायुद्ध में इन तीनों ने रडार यंत्रणा विकसित करने के कार्य में एक साथ काम किया था। अधिकांश संशोधक उनके विरोध में थे। बचपन से ही संघर्ष का सामना करने में समर्थ रहनेवाले हॉएल विरोधकों के साथ वैज्ञानिक स्तर पर चर्चा करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। वैज्ञानिकों को समाजाभिमुख होना चाहिए ऐसा उन्हें हमेशा लगता था। सन् १९५०-६० काल में निरीक्षकों ने उनके मत हॉएल के सिद्धान्त से नहीं मिलते ऐसा दावा किया।

ब्रिटेन के स्टोनहेंज के पुराने अवशेष के पुरातन संस्कृति के खगोलशास्त्र से संबंधित प्रबंध उन्होंने प्रकाशित किए। बढ़ती हुई आबादी पर उन्होंने व्याख्यान दिए। सन् १९५० में हॉएल ने खगोलशास्र और विश्‍वरचनाशास्त्र पर बी.बी.सी. रेडियो पर भाषण दिए। सर्व सामान्य जनता की समझ में आनेवाली रुचिकर आसान स्वरूपवाले भाषण देनेवाले आदर्श संशोधक के रूप में उनकी ख्याति हुई। यही व्याख्यान चलकर ‘नेचर ऑफ़ दी युनिव्हर्स’ के नाम से प्रकाशित हुए।

इ.स. १९५७ में ‘कृष्णमेघ’ (द ब्लॅक क्लाऊड) नामक उपन्यास प्रकाशित हुआ, जिसके द्वारा सामान्य लोगों को आंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करनेवाले हॉएल की, विज्ञानकथा के लेखक के रूप में एक अलग ही पहचान ज्ञात हुई। इस उपन्यास में उन्होंने कृष्णमेघरेणु का विरल बादल दिखाया। इस रचना में विचार करने की शक्ति होती है। यह बादल स्वयं के लिए आवश्यकता ऊर्जा सितारों से लेता है। इस कारण से जब यह बादल सूर्य के पास आता है तो पृथ्वी पर हाहाकार मच जाता है, सारे देशों की सरकारें उसका सामना कैसे करती हैं, इससे संबंधित सारे वर्णन हॉएल ने अपने इस उपन्यास में बड़े ही सुंदर ढ़ंग से किया है। फ़िक्शन पर आधारित यह उपन्यास बहुत ही मशहूर हुआ। इसमें के काल्पनिक बादल का सच्चा स्वरूप कुछ वर्षों के बाद सबके सामने आया। रेडियो और सूक्ष्म लहरों के द्वारा निरीक्षण करके रेणु के बादल का अस्तित्व खगोल शास्त्रज्ञों ने साबित किया।

विभिन्न स्वरूपों के द्वारा विज्ञान का प्रचार करने के लिए सन् १९६९ में उनके सम्मान में युनेस्को का प्रतिष्ठित कलिंग पुरस्कार उन्हें दिया गया। बी.बी.सी. टेलिव्हिजन पर ‘ए फॉर अ‍ॅण्ड्रोमेडा’ और ‘अ‍ॅण्ड्रोमेडा ब्रेक थ्रू’ यह वैज्ञानिक कथा, चलचित्र दिखाए गए। ‘रॉकेटस् इन असी मेजर’ इस वैज्ञानिक बालनाट्य के सहलेखक की जिम्मेदारी जेफ़री हॉएल ने अच्छे से निभायी। जेफ़री हॉएल अर्थात फ़्रेड हॉएल का लड़का लंडन में नदी के किनारे स्थित ‘मरमेड’ नाटयगृह में होनेवाले इस नाटक का खेल देखने के लिए बालदर्शकों की बहुत भीड़ होती थी। अधिकांशत: ये नाटक ईस्टर की छुट्टी में आयोजित किए जाते थे।

विख्यात खगोलशास्त्रज्ञों द्वारा विभूषित प्लुमियम अध्यासन यह केंब्रिज विद्यापीठ का महत्त्वपूर्ण पद उन्हें सन् १९५८ वर्ष में प्राप्त हुआ। बिना किसी डर के मुँह पर साफ़-साफ़ उत्तर देनेवाले हॉएल इस पद पर अधिक दिनों तक नहीं टिक पाए। इसी दौरान रॉयल सोसायटी के व्हाईस प्रेसिडेंट का पद भी उन्होंने सँभाला। अनेक शासकीय समितियों में उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किए। सायन्स रिसर्च काऊंसिल पर काम करते हुए उन्होंने टेलिस्कोप बनाने का कार्य भी किया।

सर हॉएल के आलोचक भी उनकी पात्रता, श्रेष्ठत्व और अलौकिकता को मान्य करते थे। उनका किसी भी क्षेत्र में सीधे-सीधे मुद्दे की बात करने का स्वभाव यह गॅलिलिओ से मिलता-जुलता था, ऐसा माना जाता है।

इ.स. १९८३ में फ़ाऊलर को चंद्रशेखर के साथ नोबेल पुरस्कार दिया गया, तब हॉएल नजरअंदाज किया गया। वास्तव में फ़ाऊलर के संशोधन की मूल कल्पना हॉएल इनकी ही थी ऐसा माननेवालों का एक वर्ग है। उस समय में खगोलभौतिकशास्त्र को ‘प्रतिष्ठित’ शास्त्र के रूप में मान्यता नहीं थी और उनके वाद-विवाद में अन्य शास्त्रज्ञ नहीं पड़ते थे।

महाविस्फ़ोट के सिद्धांत को बॉण्डी गोल्ड हॉएल द्वारा किया गया आक्षेप अनुत्तरित है। हॉएल ये इस महाविस्फ़ोट के सिद्धांत के कट्टर विरोधक थे। फ़्रेड हॉएल और जयंत नारलीकर इन शास्त्रज्ञों ने, ‘परिपूर्ण वैश्‍विक तत्त्व’ को ध्यान में रखते हुए स्थिर स्थिति के सिद्धांत को नया रूप देने का प्रयत्न किया। महाविस्फ़ोट का सिद्धांत सर्वमान्य नहीं था, मग़र फ़िर भी बहुजनों को मान्य था। सन् १९९३ में हॉएल ने कुछ सहवैज्ञानिकों के साथ पुराने स्थिर स्थिति विश्‍व के सिद्धांत को पुनरुज्जीवित किया। स्थिरवत् स्थिति के विश्‍व का सिद्धांत (क्वासी स्टेडी सेंटर कॉस्मॉलजी) के नाम से साबित किया।

अंत के कुछ वर्ष हॉएल ने संशोधक चंद्रा विक्रमसिंह के साथ पृथ्वी पर रहने वाली जीवसृष्टि और अंतराल के जीवों के पृथ्वी पर आ जाने से उत्पन्न होनेवाले रोग आदि पर संशोधन किया। संशोधन का काम चल ही रहा था कि उस दौरान २० अगस्त सन् २००१ के दिन हॉएल का निधन हो गया।

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