हृदयरोग निवारक मायकल दिबेक

वैज्ञानिक क्षेत्र में हो चुके विकास से आरोग्य सेवा का भी विकास हुआ। उपचार, शस्त्रक्रिया और रोगनिदान की अत्यानुधिक पद्धतियों का होनेवाला विकास, विविध अनारोग्यों के कारण मरनासन्न स्थिति में पहुँच चुके जीवों के लिए जीवन प्रदान करनेवाला साबित हुआ है। सभी देशों में मृत्युदर में काफी हद तक कमी दिखाई दी है। फिर भी आज नयी-नयी बीमारियाँ जन्म ले रही हैं। बिलकुल कुछ दशकों तक हृदय विकार के कारण अच्छे-खासे चलते-बोलते लोगों की जान पलभर में चली जाती थी। हृदयविकार का निदान एवं उसके उपचार के अभाव के कारण ही यह परिस्थिति निर्माण होती थी। आज भी हृदयविकार के कारण होनेवाले मृतकों की संख्या का आलेख सारे देशों में सर्वत्र बढ़ता हुआ ही दिखाई देता है। फिर भी इस बीच के काल में हृदय विकार के निदान के साथ साथ उपचार पद्धतियों का भी विकास हुआ। इस उपचार के कारण हृदय रोगग्रस्तों की जीवनरेखा निश्‍चित ही बढ़ी है। ‘मायकल दिबेक’ द्वारा किए गए संशोधन में ही इस जीवनरेखा का आरंभ बिंदू हैं।

संशोधनकर्ता, आदर्श अध्यापक एवं प्रख्यात सर्जन के रुप में ‘मायकल दिबेक’ का नाम दुनिया भर में प्रसिद्ध हुआ। ६० हजार से भी अधिक हृदय रोगग्रस्तों को उन्होंने जीवनदान दिया। हृदयविकार को दूर करने के लिए दुनियाभर में प्रतिवर्ष लाखों लोगों ने ‘बायपास’ एवं ‘अँजिओप्लास्टी’ शस्त्रक्रिया करवाना शुरु कर दिया। इसके साथ ही हृदय के स्पंदन अथवा रक्ताभिसरण क्षमता को बढ़ाने के लिए कृत्रिम अवयवों का उपयोग भी द्रुतगति के साथ शुरु हो गया है। कमजोर हृदय की रक्ताभिसरण की प्रक्रिया को पुन: सहज आसान बनाने के लिए कृत्रिम अवयवों का यशस्वी रुप में उपयोग करनेवाले प्रथम संशोधक होने का सम्मान जाता है ‘मायकल दिबेक’ को।

हृदयविकार पर गुणकारी शस्त्रक्रिया यशस्वी रुप में पूर्ण करनेवाले दिबेक के बारे में जानकारी देते हुए इनका उल्लेख वैद्यकीय क्षेत्र के जादूगर के रुप में किया जाता है। हृदय पर शस्त्रक्रिया करनेवाले दुनियाभर के कितने ही शल्यविशारदों (सर्जन) को उत्कृष्ट प्रशिक्षण देने के लिए डॉ. मायकल ने अपने अनुभवों का एक बहुत बड़ा दालान खोल दिया है।

डॉ. मायकल के विद्यार्थियों ने अपने गुरु के सम्मान में ‘मायकल ई. दी. बेक इंटरनॅशनल सर्जिकल सोसायटी’ की स्थापना की। अपने गुरु के प्रति होनेवाले नितांत आदर एवं प्रेम के कारण उनके शिष्यों ने अनेक संस्थाओं की, शैक्षणिक केन्द्रों को, वैद्यकीय शिक्षा के क्षेत्रों से संबंधित प्रोजेक्ट्सों को डॉ. मायकल का नाम दिया गया।

बहुमूल्य होनेवाले मानवी प्राण को बचाने के ध्येय की लगन निरंतर बनाये रखनेवाले, मायकल ने सर्जरी एवं उपचारों में नये यांत्रिक ज्ञान का अन्तर्भाव करने के लिए दिन-रात एक कर दिया था। इसका उत्तम परिणाम डॉ. मायकल द्वारा आगे चलकर किए गए सर्जरी में दिखाई देने लगा। वैद्यकीय उपकरण, यांत्रिकज्ञान एवं उपचार पद्धति से संशोधन करना और उन्हें बिलकुल ही अचूक एवं दोषरहित बनाना इन सभी बातों पर उन्होंने पूर्ण रूपेण अपना ध्यान केन्द्रित किया। इसी कारण वैद्यकीय क्षेत्र में डॉ. मायकल का काफी ऋण है, ऐसा कहा जाता है।

अनेक प्रकार के संशोधनों में अग्रसर, अमरीका के नॅशनल एरोनॉटिक्स अ‍ॅन्ड स्पेस (नासा) संस्था ने कृत्रिम हृदय तैयार करने की कोशिश शुरु कर दी। इस चुनौती को स्वीकार करनेवाले नासा के संशोधक में डॉ. मायकल का सहभाग भी था ही। हृदयविकार से संबंधित संशोधन करते समय ही डॉ.मायकल ने डेक्रॉन रक्तवाहनियाँ, रक्तवाहनियों का बायपास ऑपरेशन, कृत्रिम हृदय, हार्टपंप, हार्ट ट्रान्सप्लांट आदि शस्त्रक्रियाओं की पद्धति को अधिक सरल-आसान बनाकर महत्त्वपूर्ण संशोधन किया। आज के समय में शस्त्रक्रिया काफी आसानी से हो जाती है। डॉ. मायकल के कार्यकाल के समय में ये शस्त्रक्रिया मर्यादित साधनों के कारण निश्‍चित ही कठिन थी, लेकिन डॉ. मायकल ने इस शस्त्रक्रिया को अधिक सुलभ बनाने के लिए काफी प्रयास किया। इसके अलावा फौजी शस्त्रक्रियाओं के लिए मायकल ने विशेष पद्धतियों की खोज की। इसका सर्वाधिक उपयोग कोरियन एवं व्हिएतनाम में होनेवाले युद्ध के दौरान हुआ।

१०० वर्ष की उम्र में से ५० वर्ष की कालावधि में उन्होंने अमरीका के हर एक राष्ट्राध्यक्ष के साथ उनके सलाहगार के रुप में भी डॉ. मायकल ने काम किया है। अमरीका के अनेक विभागों के प्रमुख पद पर विभूषित होनेवाले डॉ. मायकल को रशिया (रूस) के एक माजी राष्ट्राध्यक्ष पर शस्त्रक्रिया करने के लिए बुलाया गया था। यह शस्त्रक्रिया यशस्वी रुप में हो जाने के पश्‍चात् केवल रुस ही नहीं बल्कि दुनियाभर के वृत्तपत्रों के माध्यम से डॉ. मायकल की प्रशंसा होने लगी।

अनेक रुग्णों के आप्त बनकर केवल सेवा के हेतु से भरे हुए इस संशोधक का ११ जुलाई २००८ देहांत हुआ। ७ सितंबर के दिन अपने उम्र के सौ साल पूरे करनेवाले इस महान संशोधक ने अपने इस विशाल आयुष्य का उपयोग भी अतिविशाल स्वरुप में किया। यह भाग्य बहोत कम लोगों को प्राप्त होता है। हृदयविकार की शस्त्रक्रिया का नया दालान खोलकर डॉ. मायकल ने अपने जीवन को धन्य बनाया। उनका यही संशोधन आज भी करोड़ों हृदयरोगग्रस्तों के लिए संजीवनी के रुप में उपयोगी साबित हुआ।

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