डॉ. निकोलस हेरॉल्ड रिडले

‘सम्राज्ञी की ओर से प्राप्त सम्मान स्वाभाविक है कि काफी महत्त्वपूर्ण होता है। परन्तु उससे भी अधिक मोल की चीज़ जो मुझे प्राप्त हुई है, वह है लाखों लोगों के आँखों को प्रकाश की किरण पहुँचाकर उन्हें अपने जीवन में प्राप्त होनेवाली संतुष्टि।’ ९ फरवरी, २००० के दिन इंग्लैंड की रानी की ओर से नामांकित ‘सर’ की उपाधि सम्मानपूर्वक जिन्हें प्रदान की गई ऐसे खोजकर्ता हेरॉल्ड। कृत्रिम लेन्सरोपण शस्त्रक्रिया करके अखिल मानवजाति को नयी दृष्टि प्रदान करनेवाले इस दृष्टिदूत का नाम है – निकोलस हेरॉल्ड रिडले।

शल्यशास्त्र के इतिहास में हमें एक अभिमानस्पद उल्लेख प्राप्त होता है और वह है सर्वप्रथम सुश्रुत ने मोतीबिंदू के शल्यक्रिया का आरंभ किया। दुनिया को जीतने वाले अलेक्झांडर के सेना की ओर से यह जानकारी यूरोपीयन लोगों को प्राप्त हुई। इसके पश्‍चात् पाश्‍चिमात्य देशों में मोतियाबिंद (कॅटरॅक्ट) शस्त्रक्रिया के यंत्र प्रगत होने लगे। अपारदर्शक मोटी, अपारदर्शक सफेद स्तर कब पीली पड़ जाती है ऐसी आँखों की लेन्स नामक इस प्रकाश को आँखों के अंदर तक पहुँचाने में एक बाधा ही था। ऐसे रुग्ण को कभी सामनेवाला व्यक्ति दिखाई नहीं देता था तो कभी अंधकार, कभी अस्पष्ट दिखाई देता, कभी केवल काले-काले धब्बे तो कभी बिलकुल ही अंधकार। शस्त्रक्रिया के पश्‍चात् दृष्टि तो आ जाती थी परन्तु वह पूर्ववत नहीं होती थी। साथ ही मोटी काँच के वजनदार चश्मों का उपयोग करना पड़ता था। इसके अलावा कॅटरॅक्ट होनेवाले छोटे बच्चों को तथा ऐसे कुछ मासूम नादान बच्चों को संभालना भी एक काफ़ी बड़ी समस्या थी।

इंग्लंड के किंबवर्थ में १० जुलाई १९०६ के दिन जन्म लेनेवाले हेरॉल्ड ने नामांकित महाविद्यालयों में अपनी शिक्षा पूर्ण कर इंग्लंड के नामांकित सेंट थॉमस रुग्णालय में प्रशिक्षणार्थी के रुप में प्रवेश किया। वहीं पर उन्हें डॉ. हडसन के रुप में प्रेरणा स्थान प्राप्त हुआ।

वैद्यकीय विद्यार्थियों की तथा नेत्रविभागकीय पदवी प्राप्त विद्यार्थियों को नेत्रशल्य चिकित्सा भली-भाँति हासिल हो सके इसी लिए सर्जरी के क्लोज सर्किट टी.वी. के माध्यम से प्रसारण करनेवाले ये शास्त्रज्ञ यंत्रज्ञ भी साबित हुए। आँखों की आंतरिक चिकित्सा के लिए इलेक्ट्रॉनिक यंत्रों का उपयोग करके १९४९ में सर्वप्रथम आँखों का निरीक्षण करनेवाले सर्जन ये ही थे।

द्वितीय महायुद्ध में नेत्रविशेषज्ञ के रुप में काम करते समय बम बरसानेवाले फायरजेट के अनेक पायलट रुग्ण के रुप में आते थे। इन रुग्णों की आँखों में विमान के कॉकपिट के तावदान का विस्फोट होते समय उड़नेवाले अ‍ॅक्रिलीक के टुकड़े रहते थे। परन्तु उनकी इन टुकड़ों के प्रति कोई शिकायत नहीं होती थी। वैसे तो यदि बाल का कोई टुकड़ा अथवा धूल का कण या कोई तिनका भी उड़कर आँखों में चला जाय तो लाल हो जानेवाली, पानी की धारा बहाने वाली मानवी आँखें इन टुकड़ों को आँखों में समाविष्ट कर लेती थीं।

हेरॉल्ड को एक कृत्रिम पारदर्शक पदार्थ मिला था जिसका उपयोग करना आसान था। उसकी कीमत भी कम ही थी तथा वह काँच के लिए उत्तम विकल्प भी था। यदि उस पर कोई निशान भी पड़ जाए तो उसे पॉलिश करके निकालना भी आसान था। इस पदार्थ का नाम था – ‘पॉलिमिथाइल मिथाक्रिलेट’ हेरॉल्ड को इस पदार्थ की सहायता से कुछ गिने-चुने प्रश्‍नों का ही हल ढूँढ़ना था। इस पदार्थ से आँखों के किसी भी हिस्से में घाव नहीं लगने पायेगा। इस पदार्थ के द्वारा आँखों में योग्य उस क्षमता का लेन्स बिठाना और वह लेन्स यहाँ-वहाँ हिलने न पाये इस बात की व्यवस्था बनाये रखना। जागरुक बुद्धि, चहुँमुखी निरीक्षणशक्ती एवं हड्डियों के नेत्रविशेषज्ञ इस प्रकार से हेरॉल्ड को इसमें कुछ विशेष नजर आया। अच्छा अवसर सामने से चलकर आया था। इसकी सिद्धि अकस्मात् ही हुई। अब संशोधक की अगली ध्येयपूर्ति की भूमिका निभानी बाकी थी। निकाले गए खराब लेन्स के स्थान पर कोई नया लेन्स बिठाया जा सकता था। ऐसी संभावना उन्हें दिखाई देने लगी। नवम्बर १९४९ में उन्होंने ४५ वर्षीय एक महिला रुग्ण की आँखों पर सेंट थॉमस रुग्णालय में शस्त्रक्रिया की। फरवरी १९५० के दिन पुन: उसी महिला रुग्ण पर दूसरे पड़ाव पर नेत्र शस्त्रक्रिया की। इस शस्त्र क्रिया के पश्‍चात् रुग्ण अपने घर भी जल्द ही जा सकता था। मोटे-मोटे भिंगों की उपयुक्तता अब पिछे रह गई थी। नेत्र रोगशास्त्र का अब एक नया पर्व शुरु हो गया था। हेरॉल्ड रिडले ने प्रथम ही IOL (Inlra ocular Lens) शल्यकौशल्य के साथ नाजूक एवं संवेदनशील आँखों में सफलतापूर्वक बिठाया। इसका परिणाम एक यह था कि संशोधक को होनेवाला वस्तुनिष्ठ एवं उससे भी आगे होनेवाला अर्थात व्यक्तिनिष्ठ विरोध, मत्सर इन सभी को करारा जवाब मिला। शास्त्रीय तत्त्वों को अनदेखा करके हेरॉल्ड पर चारों ओर से आवाज उठी वह उनके कार्य के प्रति आलोचना एवं अवहेलना की। मगर हेरॉल्ड नकारात्मक प्रतिक्रियाओं से किंचित् मात्र भी न डगमगानेवाले दृढ़ व्यक्तित्व रखनेवाले मनुष्य थे। अगले तीन वर्षों के पश्‍चात् इन विरोधकों की आवाजा अब कुंठित होने लगी। उनके लेन्स के पेटंट लिए गए। कृत्रिम लेन्स तैयार करनेवाले नये उद्योगों को प्रेरणा मिली। हेरॉल्ड द्वारा संशोधित की गई शस्त्रक्रिया अब व़क्त की ज़रूरत बन गई।

१९९० में हेरॉल्ड ने अपने स्वयं की आँखों पर भी अपने पसंदीदा सेंट थॉमस रुग्णालय में लेन्स रोपण शस्त्रक्रिया कर ली। जिस ऑपरेशन टेबल पर एक सर्जन के रुप में वे काम कर रहे थे उसी टेबल पर एक रुग्ण के रुप में शस्त्रक्रिया करवाने का एक योग भी उन्होंने साध्य किया।

इस महत्त्वपूर्ण शोध के अलावा विषुववृत्तीय प्रदेश में होनेवाली आँखों की Oncocercosis आँकोसर्कोसिस नामक बीमारी के निदान एवं उपचार पद्धति के संशोधन कार्य में हेरॉल्ड का योगदान काफी महत्त्वपर्ण है। Black Flyकाले रंग की मक्खी के समान कीटक के काटने से यह रोग उत्पन्न हुआ।

यह कीटक प्रसार करनेवाले जन्तुओं के कारण शरीर में होनेवाली नाजूक पेशी (उदा. आँखें) खराब हो जाती हैं तथा अंधत्व आ जाता है। इस कीटक को simutium yahense नाम है।

हेरॉल्ड ने अपने जीन काल में भले ही देर से क्यों न हो परन्तु अनेकों मानसम्मान हासिल किए। १९८९ में कॅरोलिना महाविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की। उनकी प्रथम शस्त्रक्रिया को ५० वर्ष हो गए। इसी प्रीत्यर्थ नेत्रतज्ञों के सिएटल परिषद में स्वागत-सत्कार समरोह आयोजित किया गया। रॉयल सोसायटी ने उन्हें अपनी फेलोशीप दी। २५ मई, २००१ के दिन मस्तिष्क में होनेवाले रक्तस्राव के कारण हेरॉल्ड का देहान्त हो गया। मानवी आँखें एवं दृष्टि एवं दृश्य इनको अलौकिक योग प्रदान करनेवाले वे एक योगी साबित हुए।

 

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