अस्थिसंस्था (भाग-१)

skeletonआधुनिक इमारतों को बनाने में आजकल आर.सी.सी. तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। आर.सी.सी. अर्थात रिप्टनफोर्सड् सिमेंट क्राँक्रीट। इसकी वजह से इमारत का मुख्य ढ़ाँचा मजबूत व टिकाऊ बनता है। इसमें आड़े एवं खड़े खंबे होते हैं, जिन्हें बीम एवं पिलर या कॉलम कहा जाता है। यही इमारत का मुख्य ढ़ाँचा होता है। इनके आसपास इमारत की दीवारें खड़ी की जाती हैं। बाद में उन पर अंदर बाहर से प्लास्टर, रंगाई आदि करते हैं। ज़रूरत के अनुसार खिड़कियाँ, दरवाजे, गॅलेरी इत्यादि बनाकर इमारत पूर्ण की जाती है। यह तो हुआ इमारत का दर्शनी भाग, जो जमीन से उपर होता है। परंतु जमीन से नीचे इस इमारत का पाया होता है, पाया जितना मजबूत होता है, इमारत का उपरी भाग उतना ही मजबूत होता है। उपरी इमारत की मजबूती मजबूत पाये पर ही निर्भर करती है।

हमारा शरीर भी एक तरह से इस इमारत की तरह ही है। इस शरीररुपी इमारत का आर.सी.सी. ढ़ाँचा है हमारी विभिन्न हड्डियाँ, (जिसे हम हड्डियों का ढ़ाँचा कहते हैं)। जिनके आधार पर हमारी शरीररुपी इमारत खड़ी है। हमारे शरीर का वजन, शरीर पर कार्य करनेवाली बाह्य शक्ति (पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण) इनका भार हमारी हड्डियाँ व उनके जोड़(joint) ही उठाते है। क्या शरीर का पाया; हमारे पैर या पंजे है? नहीं। जैसे इमारत का पाया न दिखाई देनेवाला या भूमिगत होता है, वैसे ही शरीर का पाया हमें न दिखाई देनेवाला, ध्यान में न आनेवाला होता है और वह अधिकांशत: उपेक्षित रह ज़ाता है। हमारे शरीर का पाया अधिकतर माता के गर्भ में, बढ़ते समय ही तैयार होता जाता है। बाकी जन्म के बाद पहले ५ वर्ष व किशोरावस्था में (१३ से २० वर्ष ही आयु)में पूरा होता है। शरीररुपी इमारत के ढ़ाँचे की अर्थात हमारी अस्थिसंस्था(skeletal system) की जानकारी हम आज से लेनेवाले है।
शरीर की हड्डियों का ढ़ाँचा (skeleton)हम में से हरेक ने कभी न कभी तो स्कूल में, कॉलेज में, विज्ञान कक्ष में या चार्टस् में देखा होता है। और कहीं न हो तो हॉरर फिल्मों में तो देखा ही होता है। ये सभी मृत शरीर के ढ़ाँचे होते हैं। इनसे हमें, जीवीत शरीर में, चलते फिरते शरीर में वे किस तरह कार्य करते हैं; इसका योग्य या सही ज्ञान नही मिल पाता। जीवित शरीर में इन हड्डियों पर अलग-अलग स्नायू या माँस पेशियाँ जुडी होती हैं। रक्तवाहिनी, चेतापेशी इ. होती है। हड्डियों के जोड (joint) कुर्चा, द्रव, उनपर चढ़ा आवरण इ. उनके कार्य करते समय मदद करने हेतु टेन्डन्स होते है। इस ढ़ाँचे को ध्यान से देखते समय यह पता चलता है कि मानवीय ढ़ाँचा(Bilaterally Symmetrical) (सममितीय) दोनों तरफ से समान होता है। यानी मध्य में एक काल्पनिक रेखा निकालें तो उसके दोनो ओर हड्डियों की संख्या, जोड, रचना सममितीय होते हैं।

हमारी हड्डियाँ एक अजीब पदार्थ की बनी होती है। अनेक पदार्थों के गुणधर्म इकठ्ठा कर एक ही पदार्थ के रुप में हमारी हड्डियों में होते हैं। उदा. अस्थियों में कास्ट आयर्न या लोहे जितनी टेन्साइल शक्ति एवं स्टील जैसी तन्यता तथा मृदुता भी होती है। चारों तरफ से पड़ने वाला दबाव भी हमारी हड्डियाँ सह सकती है (Compressive Strength)निश्‍चित स्तर का आघात (impact) व वजन झेलने की क्षमता की बात सोचें तो चलते समय या दौड़ते समय जो पैर जमीन पर होता है व ज्यादा से ज्यादा ६०० पौंड वजन सह सकता है।

हमारे शरीर में चार प्रकार की अस्थियाँ होती हैं –
१)लंबी, नली समान हड्डियाँ – हमारे हाथ, पैर, उँगलियाँ पंजे आदि अवयवों में
२)छोटी हड्डियाँ – जो कलाई या पैर के पंजों की जोडों में
३)सपाट हड्डियाँ – सिर के कंकाल(खोपड़ी में)
४)अनियमित आकार की हड्डियाँ – उपरोक्त तीनों प्रकार से अलग अस्थिपंजर या ढ़ाँचे का अभ्यास जिसमें हड्डियों की लंबाई, मोटा या जोडों के द्वारा उस व्यक्ति की जानकारी पाई जा सकती है, उसे एन्थ्रोपोमेट्री (anthropometry) कहा जाता है। इसका उपयोग गुन्हा अन्वेषण विभाग (crime detection) में होता है। इस अभ्यास से हम निम्नलिखित जानकारी। बातों का अंदाजा लगा सकते हैं।

अ) व्यक्ति की उम्र – उम्र के पच्चीस साल तक दाँत व बढ़नेवाली हड्डियों के निरिक्षण से व्यक्ति की उम्र का एकदम सही अंदाज लगाया जा सकता है। ज्यादा से ज्यादा एखाद वर्ष कम-ज्यादा। पच्चीस के बाद यह अंदाज पाँच साल आगे-पीछे हो सकता है।

ब) व्यक्ति का लिंग – किसी मध्यवयीन व्यक्ति के ढ़ाँचे से उसकी कमर व खोपडी के हिस्से की अस्थियों से व्यक्ति का लिंग बराबर पहचाना जा सकता है।

क) व्यक्ति की उँचाई व आकार – हड्डियों की उँचाई से इसका अंदाज. अचूक तरीके से लगा सकते हैं। हड्डियों की बनावट से आयु, लिंग, वंश इ. की पहचान हो सकती है। नीग्रो वंशीय व्यक्तियों के हाथों व पैरों की लंबाई ज्यादा होती है। बडे व्यक्ति की संपूर्ण बढ़ने के बाद पैरों की लंबाई, कमर के उपरी हिस्से से ज्यादा, कंधों की चौड़ाई अधिक व कमर की कम, तो स्त्रियों में कमर की चौड़ाई अधिक होती है।

ड) व्यक्ति का वंश – व्यक्ति की खोपड़ी की हड्डियों से व उसकी रचना से वंश पहचानना आसान होता है।
उपरोक्त विवेचन सर्वसामान्य परिस्थितियों में हड्डियों का होनेवाला विकास मान कर किया गया है। हड्डियों का विकास अनेक बाह्य परिस्थितीयों पर भी निर्भर करता है। इनमें कोई दोष पैदा होने पर, विकास पर विपरीत परिणाम भी हो सकता है। कुछ कारण हैं- रक्त में कॅल्शियम, फॉस्फरस, जीवनसत्व, A, B, C, D  या पिट्युटरी, थॉयरॉईड, पॅराथायरॉइड, ऍड्रेनल आदि अंत:स्रावी ग्रंथियों या अँड्रोजेन, इस्ट्रोजेन जैसे स्रावों की कमी होने पर संबंधित स्नायु के कार्यों को कम एवं परिणामत: हड्डियों की क्षमता एवं विकास को विपरित कर देता है। इसका उत्तम उदाहरण है- पोलिओ। बचपन में पोलिओ से एक हाथ या पैर कमजोर हो जाये तो उस हात या पैर की अस्थियाँ पतली हो जाती हैं, उनका ठीक से विकास नहीं हो पाता।
(क्रमश:………)

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