हृदय व रक्ताभिसरण संस्था – ०८

हम हृदय के सभी भागों का यथाक्रम अध्ययन करनेवाले हैं। सबसे पहले हम हृदय की दाहिनी बाज़ू का अध्ययन करेंगें।

दाहिनी एट्रिअम : हृदय का ऊपरी भाग दोनों एट्रिअम्स से बना होता है। दाहिनी एट्रिअम दाहिनी ओर का व बायीं एट्रिअम बायीं ओर ऐसा सरल मामला यहाँ पर नहीं होता है। दोनों एट्रिअम्स को अलग करने वाला द्विभाजक परदा (इंटर एट्रिअल सेप्टम) सीधा नहीं बल्कि तिरछा होता है। फलस्वरूप दायीं एट्रिअम यह बायीं एट्रिअम के सामने और बायीं ओर होती है।  सुपिरीअर वेनाकॅवा की छत के उभरे भाग में खुलती हैं तथा नीचे की यानी इनफिरिअर वेनाकॅवा इसके निचले भाग में पीछे की ओर खुलती है। त्रिवेणी आकार के बटुआ जैसा एक भाग एट्रिअम से जुड़ा हुआ होता है। इसे ऑरिकल कहते हैं। इस भाग में स्नायुओं की मात्रा ज्यादा होती है। इसकी अंदरूनी सतह थोड़ी खुरदरी होती हैं। एट्रिअम के शेष भाग को वेस्टिब्यूल कहते हैं। इसका अंदरूनी भाग एकदम चिकना होता है। शरीर के विभिन्न भागों से आनेवाला रक्त वेन्स की माध्यम से इस भाग में प्रवेश करता है। यहाँ से वह आगे ट्रायकस्पिड वाल्व की ओर जाता है।

हृदय व रक्ताभिसरण संस्थाहमारा सिर, गर्दन और दोनों हाथ आदि भागों का रक्त सुपिरिअर वेनाकॅरा द्वारा दायीं एट्रिअम में आता हैं। यहाँ पर इसके मुँह के पास वाल्व नहीं होता है। शरीर के शेष भाग का रक्त इनफिरिअर वेनाकॅवा के द्वारा दाहिनी एट्रिअम में पहुँचता है। इस वेनाकॅवा के मुँह के पास एक वाल्व होता है। गर्भावस्था में यह वाल्व काफी बड़ा होता है। माँ की नाल से आने वाला शुद्ध अथवा ऑक्सिजनेटेड रक्त इनफिरिअर वेनाकॅवा द्वारा दाहिनी एट्रिअम में आता है और दोनों एट्रिआओं के बीच के छेद (द्विभाजक परदे में यह छेद होता है) में से रक्त बांयी एट्रिअम में जाता है। जाहिर है यहाँ पर रक्त उल्टा ना जाय इसका ख्याल यह वाल्व रखता है। इस वाल्व को यूस्टॅसिअन वाल्व कहते हैं। इसके अलावा हृदय की वेन्स, जिन्हें करोनरी वेन्स कहा जाता है, वे अपना रक्त दायीं एट्रिअम में पहुँचाते हैं। इनके मुँह पर भी एक वाल्व होता है। उसे थेबेसिअन वाल्व कहते हैं।

इंटर एट्रिअल परदे पर इनफिरिअर वेनाकॅवा के मुँह से थोड़ा ऊपर व बायीं ओर एक गड्ढ़ा होता है। इसे फोसा ओवॅलिस कहते हैं। इस गड्ढ़े के ऊपरी सिरे के नीचे थोड़ी खाली जगह होती है। इस जगह से दायीं एट्रिअम में से रक्त बायीं एट्रिअम में जाता है। परन्तु सामान्यत: १/३ बच्चों में यह गॅप शेष आयु में वैसा ही रह जाता है।

वेस्टीब्यूल के निचले भाग में ट्रायकस्पिड वाल्व होता है। इस वाल्व में से रक्तवाहिनी वेंट्रिकल में प्रवेश करता है।

दाहिनी वेंट्रिकल :- स्टरनम, पसलियाँ और कॉस्टल कार्टिलेज के पीछे रहनेवाला हृदय के सामने का बड़ा हिस्सा, इस वेंट्रिकल के द्वारा ढ़ँका हुआ होता है। छाती के पिंजरे की अस्थियों और हृदय के बीच पेरिकार्डीअम होता है। दो वेंट्रिकल्स के बीच का परदा सीधा नहीं होता। दायीं वेंट्रिकल की खाली जगह चंद्रकोर जैसी दिखायी देती है। दायीं वेट्रिकल की दीवार साधारणत: ३.५ मि मि मोटी होती है। बायीं वेंट्रिकल की तुलना में यह मोटाई कम होती है (एक तिहाई होती है)।

वेंट्रिकल का ऊपरी हिस्सा दो भागों में बटाँ हुआ होता है। इन दोनो भागों को क्रमश: इनलेट और आऊटलेट कहते हैं। एट्रिअम में से वेंट्रिकल में जिस भाग से प्रवेश होता है उस भाग को इनलेट कहते हैं। इसी भाग में ट्रायकस्पिड वाल्व होता है। जो इस रक्तप्रवाह पर नियंत्रण रखता है। जहाँ पर वेंट्रिकल में से रक्त फेंफडों की आरटरी से प्रवेश करता है उस भाग को आऊटलेट कहते हैं। यहाँ पर पलमनरी वाल्व होता है। इन दोनों वाल्वों के बीच में स्नायुओं की एक छोटी दीवार होती है, जो इन दोनों वाल्वों में से होने वाले रक्त-प्रवाह को अलग अलग रखने में सहायता करती है।

हमारे हृदय में कुल चार वाल्व होते हैं। इनमें से एट्रिओेवेंट्रिक्युलर वाल्व की रचना निम्न प्रकार की होती है –
* एट्रिया व वेंट्रिकल्स को जोड़ने वाला मुख व उसकी परिधि में होने वाला रिंग
* वाल्व के परदे
* वाल्वों को यानी उनके परदों को सपोर्ट देनेवाले टेंडन के छोटे हिस्से
* पॅपिलरी स्नायु

अब हम सभी वाल्व की जानकारी प्राप्त करते हैं।

ट्रायकस्पिड वॉल्व :-

हृदय के सभी वाल्वों से बड़ा होता है। पुरुषों में इसकी परिघि ११.४ मि मि और स्त्रियों में १०.८ मि मि होती है। इसके चारों ओर कोलॅजन तंतु से बनी हुई एक रिंग होती है, जिसे अ‍ॅन्युलस कहते हैं। यह भाग एट्रिआ व वेंट्रिकल्स स्नायुओं को एक-दूसरे से अलग रखता है। इसी भाग से ही (अ.त.) बंडल के तंतु वेंट्रिकल के स्नायुओं में प्रवेश करते हैं।

इस वाल्व को तीन पन्ने अथवा परदे होते हैं। इसीलिये इसे ट्रायकस्पिड वाल्व कहते हैं। ये परदे वाल्व की परिधि की तरफ़ और मुख की मध्यबिंदु की ओर सँकरे होते हैं। ये परदे परिधि के पास स्थिर होते हैं और मध्य भाग में खुले एवं चल होते हैं।

वाल्व को परदे से सपोर्ट करनेवाले छोटे टेंडिनस कार्ड होते हैं। ये कोलॅजन से बने हुये होते हैं। इनकी शुरुआत पॅपिलरी स्नायु के मध्य भाग पर अथवा सिरों पर होती है। कभी-कभी तो इनकी शुरुआत सीधे वेंट्रिकल की दीवार से ही होती है।

दायीं वेंट्रिकल में तीन पॅपिलरी स्नायु होते हैं। इसके सामनेवाले भाग के स्नायु सबसे ज्यादा मोटे होते हैं।

पलमनरी वाल्व :-
बायीं वेंट्रिकल में से पलमनरी आरटरी में प्रवेश करनेवाले रक्तप्रवाह पर यह नियंत्रण रखता है। अर्ध चंद्र आकार वाले तीन परदे होते हैं। परन्तु इसकी परिधि अ‍ॅन्युलस अथवा रिंग नहीं होती है। ये परदे ऍडोकार्डिअम के बने हुये होते हैं।

दायें हृदय की रचना हमने आज देखी, अब अगले लेख में बायें हृदय की रचना देखेंगे।

(क्रमश:)

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