समय की करवट (भाग ८०) – व्हिएतनाम युद्ध तो ख़त्म हुआ, लेकिन….

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।
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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’
– हेन्री किसिंजर
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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

यह अध्ययन करते करते ही सोव्हिएत युनियन के विघटन का अध्ययन भी शुरू हो चुका है। क्योंकि सोव्हिएत युनियन के विघटन की प्रक्रिया में ही जर्मनी के एकीकरण के बीज छिपे हुए हैं, अतः उन दोनों का अलग से अध्ययन नहीं किया जा सकता।

सोविएत युनियन का उदयास्त-४०

१९६० का दशक जैसे जैसे आगे बढ़ता गया, वैसे वैसे दक्षिण-पूर्व एशिया में चल रहा व्हिएतनाम क्रायसिस और भी गर्म होने लगा। सन १९६४ के ‘गल्फ़ ऑफ़ टॉनकिन’ घटनाक्रम के बाद तो अमरिकी अध्यक्ष लिंडन जॉन्सन ने बाक़ायदा विधेयक ही पारित करा लिया और ऐसे घटनाक्रम में ‘जैसा उन्हें उचित लगें वैसा’ करने के अधिकार स्वयं के हाथ में एकत्रित किये।

लेकिन अमरीका के विराट सैनिकी सामर्थ्य के दर्शन होने के बावजूद भी हो चि मिन्ह दबे नहीं। उल्टे उन्होंने गुरिला वॉरफेअर से अमरिकी सेना की नाक में दम कर दिया। सन १९६५ तक अमरिकी सैनिकों की संख्या दो लाख तक पहुँच गयी थी। जो आगे चलकर सन १९६५ से १९६९ इस, व्हिएतनाम युद्ध में प्रत्यक्ष अमरिकी सहभाग की कालावधि में ५ लाख तक पहुँच चुकी थी।

रशिया के तत्कालीन अध्यक्ष निकिता ख्रुश्‍चेव्ह ने हालाँकि बतौर ‘कम्युनिस्टबंधु’ उत्तर व्हिएतनाम का शुरू शुरू में समर्थन किया, मग़र ख्रुश्‍चेव्ह की सत्ता के आख़िरी वर्षों की कालावधि में, अमरीका दक्षिण व्हिएतनाम के समर्थन में अधिक से अधिक युद्धसंसाधनों की आपूर्ति कर रही है, यह देखकर उसने दक्षिण व्हिएतनाम पर कब्ज़ा करने की कोशिशें बन्द करने का मशवरा उत्तर व्हिएतनाम को दिया था। इतना ही नहीं, बल्कि आख़िरी वर्ष में, उत्तर व्हिएतनामी नेताओं ने बार बार विनति करके भी, उन्हें सहायता देना भी बन्द कर दिया था और इस मसले को संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षापरिषद के ज़रिये हल करने का आवाहन किया था।

आगे चलकर ‘क्युबा मिसाईल्स क्रायसिस’ में जो सोव्हिएत को मुँह की खानी पड़ी, उसके परिणामस्वरूप सन १९६३ में ख्रुश्‍चेव्ह को सत्ता से हाथ धोना पड़ा और उनके स्थान पर लिओनिद ब्रेझनेव्ह सोव्हिएत रशियन कम्युनिस्ट पार्टी की मध्यवर्ती समिति के महासचिव (तत्कालीन सोव्हिएत में का सबसे शक्तिशाली पद) बने थे।

ख्रुश्‍चेव्ह के बाद सोव्हिएत कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव बने लिओनिद ब्रेझनेव्ह ने व्हिएतनाम युद्ध में सोव्हिएत सहभाग को बढ़ाया।

ब्रेझनेव्ह ने, अमरीका व्हिएतनाम में सक्रिय बन रही है यह देखते हुए रशिया की व्हिएतनामविषयक नीति को अधिक आक्रमक बनाया और उत्तर व्हिएतनाम की सहायता में भरपूर बढ़ोतरी की। साथ ही, सोव्हिएत शस्त्रास्त्रों के इस्तेमाल का प्रशिक्षण भी उत्तर व्हिएतनामी सेना को देने की शुरुआत की। इसके अलावा, तब तक बिगड़ चुके सोव्हिएत और चीन के बीच के संबंध यह भी इसका एक प्रमुख कारण था। चीन तब तक सोव्हिएत की छाया में से बाहर निकल चुका हुआ होने के कारण, कम्युनिस्ट जगत का नेता बनने के लिए सोव्हिएत के लिए काँपिटिशन साबित हो रहा था। इस कारण, उत्तर व्हिएतनाम को जो चीन से बढ़ती सहायता मिल रही थी, उससे बेचैन होते हुए ब्रेझनेव्ह ने, उत्तर व्हिएतनाम को चिनी प्रभाव से बाहर निकालने के लिए उत्तर व्हिएतनाम को सहायता बढ़ाने का फैसला किया।

इसके परिणामस्वरूप सन १९६५ तक इस प्रदेश में युद्ध बहुत ही भड़क गया। अमरिकी सेना ने उत्तर व्हिएतनाम पर अधिक बड़े पैमाने पर आग बरसाना शुरू किया। इन चार सालों में अक्षरशः लाखों टनों का बारुद अमरिकी सेना द्वारा उत्तर व्हिएतनाम पर दागा गया।

लेकिन इन सब बातों से हार न मानते हुए, हो चि मिन्ह की कम्युनिस्ट सेना ने गुरिला वॉरफेअर से अमरिकी सेना की नाक में दम करना जारी ही रखा; दरअसल वह अब अधिक ही बड़े पैमाने पर शुरू हुआ। यहाँ अमरीका में, अमरीका के सामने एकदम नन्हा सा होनेवाले देश पर विजय प्राप्त करने के लिए महाताकतवर अमरिकी सेना को इतने साल लग रहे हैं, यह देखकर जनमत उसके खिलाफ़ गर्म होने लगा।

उसी में सन १९६८ में ‘टेट ऑफ़ेन्सिव्ह’ की घटना हुई। पूरे व्हिएतनाम में मनाये जा रहे ‘टेट ल्युनार’ इस नववर्ष समारोह की ख़ातिर दो दिवसीय युद्धबंदी दोनों तरफ़ से तय की गयी थी। लेकिन उत्तर व्हिएतनामी सेना ने यह त्योहार का मौक़ा देखकर यह युद्धबंदी तोड़कर दक्षिण व्हिएतनाम के कई स्थानों पर एक ही समय हमले किये। तक़रीबन ८० हज़ार कम्युनिस्ट सैनिक इस मुहिम में सहभागी हुए थे।

शुरू शुरू में हालाँकि इस अचानक हमले के कारण दक्षिण व्हिएतनाम में घबराहट फैली, लेकिन अमरिकी सेना ने तेज़ी से प्रतिहमलें करते हुए दो ही दिन में हालात पर काबू पाया। लेकिन कम्युनिस्ट सेना की दुर्दशा होकर केवल २० से ३० प्रतिशत सेना ही शेष बची थी।

इस लड़ाई में हालाँकि कम्युनिस्ट सेना को हार माननी पड़ी थी, लेकिन इस सारे वाक़ये से अमरीका में जनमत ख़ौल गया था। अब तक प्रचारतंत्र के ज़रिये अमरिकी जनता की ऐसी सोच बनायी थी कि अमरीका के सामने कम्युनिस्ट सेना तिनके की तरह है। ‘टेट ऑफ़ेन्सिव्ह’ के इस अचानक हमले के वाक़ये के कारण अमरिकी जनता के मन में इस प्रचार को लेकर सन्देह पैदा हुआ और अमरीका के व्हिएतनाम युद्ध के सहभाग के खिलाफ़ ज़ोरदार आलोचना होने लगी। उसीमें व्हिएतनाम के ‘माय लाई’ गाँव में अमरिकी सेना ने, कम्युनिस्ट सेना के सदस्य होने के महज़ शक़ की बिनाह पर सैंकड़ों गरीब मासूम लोगों की जानें लेने की घटना घटित हुई। अब स्वयं अमरीका में इस सहभाग के खिलाफ़ प्रदर्शन होने लगे। इस प्रदेश में चाहे कितने भी अमरिकी सैनिक क्यों न भेजें, अमरीका युद्ध जीत नहीं सकती, इसका एहसास जॉन्सन को हो चुका था। इस कारण उसने अधिक सेना वहाँ भेजने से इन्कार कर दिया। इससे अमरिकी जनता को मानो यक़ीन ही हो गया कि जॉन्सन का यह फैसला यानी उसकी नीतियों की हार है। साथ ही, तब तक इस युद्ध में जो ३० हज़ार अमरिकी सैनिक जान गँवा बैठे थे, वह भी राष्ट्राध्यक्ष लिंडन के लिए भारी साबित हुआ और उन्हें चुनावों में सत्ता गँवानी पड़ी।

लिंडन जॉन्सन के बाद अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष बने रिचर्ड निक्सन ने अमरिकी जनमत के रूख को पहचानकर, इस युद्ध में फँसी अमरीका को उससे बाहर निकालने की दृष्टि से कदम उठाये।

उनके स्थान पर अमरिकी राष्ट्राध्यक्षपद पर चुने गये रिचर्ड निक्सन ने, अमरिकी जनमत का अँदाज़ा होने के कारण, व्हिएतनाम में से धीरे धीरे अमरिकी सेना हटाने की घोषणा की; लेकिन फिलहाल तैनात अमरिकी सेना को उसने हमलें अधिक सुसूत्रतापूर्वक, कम्युनिस्ट सेना के अचूक स्थानों पर करने का हु़क्म दिया। उसीके साथ, कम्युनिस्ट विद्रोही आवागमन के लिए जिनका इस्तेमाल कर रहे थे उस, व्हिएतनाम से सटे लाओस और कंबोडिया पर हमलें करने का हु़क्म दिया।

सन १९६९ में हो-चि-मिन्ह का निधन हुआ और उसका स्थान संयुक्त नेतृत्व (पॉलिटब्यूरो) ने ले लिया।

सन १९६९ से १९७२ इस कालखंड में निक्सन ने ‘व्हिएतनामायझेशन’ यानी संक्षेप में, ‘उनके राष्ट्र की रक्षा हमारे सेना से प्रशिक्षण प्राप्त हुए उन्हीं के सैनिक करेंगे’ इस नीति का अवलंबन किया।

निक्सन की नीति अमरिकी जनता को रास आयी है इसका सबूत सन १९७२ के चुनावों में मिला और निक्सन पुनः राष्ट्राध्यक्षपद पर आरूढ़ हो गये।

सन १९६९ से ही दोनों व्हिएतनामों में गुप्त शांतिप्रक्रिया शुरू हुई थी और बहुत ‘भवति न भवति’ होकर सन १९७३ में उत्तर और दक्षिण व्हिएतनामी सरकारों में शांतिसमझौता हुआ और आख़िरी अमरिकी सेना को व्हिएतनाम से वापस बुला लिया गया।

मग़र फिर भी, अब अमरीका की सहायता से वंचित दक्षिण व्हिएतनाम पर उत्तर व्हिएतनामी सेना के हमले जारी रहे और सन १९७५ में दक्षिण व्हिएतनाम की राजधानी सायगांव पर कम्युनिस्ट झँड़ा फ़हराकर ही वह सब थम गया। अगले साल, दोनों व्हिएतनाम एक हुए होने की घोषणा कर दी गयी।

इस प्रकार व्हिएतनाम युद्ध तो ख़त्म हुआ….लेकिन कोल्ड वॉर???

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