समय की करवट (भाग ७५) – कोल्ड़ वॉर की हॉट लाईन

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।
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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’
– हेन्री किसिंजर
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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

यह अध्ययन करते करते ही सोव्हिएत युनियन के विघटन का अध्ययन भी शुरू हो चुका है। क्योंकि सोव्हिएत युनियन के विघटन की प्रक्रिया में ही जर्मनी के एकीकरण के बीज छिपे हुए हैं, अतः उन दोनों का अलग से अध्ययन नहीं किया जा सकता।

सोविएत युनियन का उदयास्त-३५

ग़लत अन्दाज़, ग़लत धारणाएँ और ग़लत निर्णय इनके कारण और भी भड़का हुआ ‘क्युबन मिसाईल्स क्रायसिस’ तो ख़त्म हुआ, लेकिन इसके कई तात्कालिक और दूरगामी परिणाम हुए।

अमरीका मेंकेनेडी की लोकप्रियता में तथा डेमोक्रॅट्स के बहुमत में वृद्धि हुई।

सोव्हिएत में ख्रुश्‍चेव्ह की लोकप्रियता कम होकर वे सोव्हिएत मध्यवर्ती समिति के ग़ुस्से का केंद्र बने और दो ही सालों में उन्हें सत्ता से इस्तीफ़ा देना पड़ा और राजनीतिक विजनवास (पॉलिटिकल एक्साईल) में जाना पड़ा।

कॅस्ट्रो के बारे में कहा जाये, तो कम्युनिस्टजगत् में और क्युबा में उनका स्थान ऊँचा होने के साथ साथ उनका एक तात्कालिक फ़ायदा भी हुआ। वह था – ‘बे ऑफ पिग्ज’ मसले में गिरफ़्तार कर जेल में डाले अमरीकाप्रणित बाग़ियों को रिहा करने के बदले में, उसने अनाज, मेडिकल सहायता, रोकड़ा रक़म ऐसे विभिन्न रूपों में लगभग ६ करोड़ डॉलर्स क्युबा की तिजोरी के लिए प्राप्त कर लिए।

वहीं, चीन ने – ‘सोव्हिएत ये महज़ कागज़ के बाघ हैं’ ऐसा घोषित कर, कम्युनिस्टजगत् के असली नेता हम (चीन) ही हैं, ऐसा प्रचार करना शुरू किया।

लेकिन यह क्रायसिस जिनके बीच के ‘कोल्ड वॉर’ के कारण उद्भवित हुआ था, वे अमरीका और सोव्हिएत ये देश – प्रत्यक्ष ‘आण्विक संघर्ष’ तक जा पहुँचे इस क्रायसिस से बहुत सारे नये सबक सिख गये।

सोव्हिएत ने अपनी मिसाईल क्षेत्र की ताकत अमरीका से बहुत ही कम है, यह पहचानकर उनकी बराबरी करने के लिए परमाणु शस्त्रास्त्र निर्माण की जोरोशोरों से शुरुआत की और आगे चलकर १९७० का दशक शुरू होने तक उन्होंने अपने इस लक्ष्य को प्रायः साध्य भी किया।

लेकिन सोव्हिएत फिलहाल तो हमसे ठेंठ संघर्ष करने की परिस्थिति में नहीं हैं, यह बात अमरीका ने जान ली और यहीं से उनके, दुनिया के किसी भी संघर्ष में सशस्त्र हस्तक्षेप करने के रवैये को बढ़ावा मिल गया।

संक्षेप में, ‘कोल्ड वॉर’ रुका नहीं, बल्कि वह कई मार्गों से आगे चलता ही रहा।

लेकिन इस क्रायसिस के कारण दुनिया के लिए कुछ अच्छीं बातें भी घटित हुईं। जिस तरह से इस क्रायसिस के कारण परमाणु युद्ध भड़कने की संभावना बढ़ी थी, उसे देखते हुए, भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति ना हों इसलिए क्या कर सकते हैं, इसपर दोनों देशों में विचारविमर्श शुरू हुआ।
इसीमें से साकार हुई – दोनों देशों के नेतृत्वों में ठेंठ संपर्कयंत्रणा की – यानी ‘हॉटलाईन’ की संकल्पना!

यह क्रायसिस भड़कने में ‘शीघ्र संपर्क का अभाव’ यह प्रमुख कारण था, यह बात अमरिकी ‘पॉलिसीमेकर्स’ के ध्यान में आयी थी। ख्रुश्‍चेव का पहला लंबाचौड़ा पत्र ‘प्रोटोकॉल’ के रोड़े पार करते करते अमरिकी अध्यक्ष के हाथ में पूरे बारह घंटें बाद पड़ा था….उस क्रायसिस की ज्वलनशीलता के देखते हुए यह ‘अक्षम्य’ देर थी।

इस पत्र का सर्वांगीण अभ्यास कर, उसे दिये जानेवाले जवाब के बारे में जब केनेडी के सलाहगार सोचविचार कर रहे थे, तभी ख्रुश्‍चेव्ह का – ‘तुर्कस्तान से अमरिकी क्षेपणास्त्रों को हटाया जाये’ – यह माँग रहनेवाला दूसरा पत्र अमरिकी अध्यक्ष के पास आ धमका था। यदि पहला पत्र समय पर पहुँच जाता, तो इस क्रायसिस में हुई कई अनिष्ट बातों को टाला जा सकता था, ऐसा मत अमरिकी सलाहगारों ने व्यक्त किया।

….और इसी कारण, आगे चलकर भविष्य में अतिमहत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में, इस तरह का ‘जानलेवा’ साबित हो सकनेवाला विलंब न हों इसलिए अमरिकी नेतृत्व और सोव्हिएत नेतृत्व इनके बीच ठेंठ संपर्कव्यवस्था होनी चाहिए, ऐसी कल्पना ने जन्म लिया और उसीके परिणामस्वरूप व्हाईट हाऊस और क्रेमलिन के बीच की ‘हॉटलाईन’ अस्तित्व में आयी।

दुनिया की दृष्टि से यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण कदम था। क्योंकि परमाणुअस्त्रों की भयानकता बढ़ती चली जा रही थी, ऐसे में ‘कोल्ड वॉर’ खेलनेवाले दोनों पक्षों को अपने बीच संवाद होना आवश्यक प्रतीत हो रहा है, यह मानवजाति की दृष्टि से बहुत ही सुकून देनेवाली बात थी।

हालाँकि प्रत्यक्ष रूप में अस्तित्व में आयी हॉटलाईन में, शुरू शुरू में फोन ही समाविष्ट नहीं था, इस ‘डायल न होनेवाले लाल फोन’ को ‘हॉटलाईन’ का प्रतीक माना जाने लगा। ‘कोल्ड वॉर’ विषय पर बनीं कई फिल्मों में भी इसे बतौर ‘हॉटलाईन’ दिखाया गया था।

सन १९६३ के जून महीने में जिनिव्हा में परमाणुअस्त्रबंदी पर की चर्चा के लिए बुलायी गयी १८ राष्ट्रों की परिषद के दौरान इस समझौते पर अमरिकी और सोव्हिएत प्रतिनिनिधियों ने हस्ताक्षर किये। मज़े की बात यह थी कि इस पहली हॉटलाईन में ‘बात करने का’ विकल्प ही नहीं था! केवल टेलिग्राफ और फॅक्स तंत्रज्ञान के ज़रिये संदेशवहन होनेवाला था और इस सर्किट की केबल को वॉशिंग्टन-लंडन-स्टॉकहोम-हेलसिंकी-मॉस्को ऐसा घुमाया गया था। फोन से बात करने का विकल्प आगे चलकर सन १९७१ में अंतर्भूत किया गया। फिर आगे सन १९८० के दशक तक इस टेक्नॉलॉजी में सुधार आते आते उपग्रहों (सॅटेलाईट्स) के ज़रिये यह कम्युनिकेशन होने लगा।

इस ‘हॉटलाईन’ का पहली बार इस्तेमाल किया गया, वह सन १९६७ के इजिप्त-इस्रायल युद्ध में। ऑपोझिट पार्टी का कौनसा कदम ‘आक्रमक’ माना जायेगा, इसपर प्रायः चर्चा की गयी। उस समय भूमध्यसमुद्रक्षेत्र में एक-दूसरे के नज़दीक खड़ीं सोव्हिएत तथा अमरिकी नौसेनाओं के बीच के संभाव्य संघर्ष को टालने के लिए भी इसका उपयोग हुआ। आगे चलकर सन १९७१ के भारत-पाकिस्तान युद्ध में और उसके बाद के कई वैश्‍विक संघर्षों में इस विकल्प का इस्तेमाल किया गया।

इस प्रकार ‘कोल्ड वॉर’ के दोनों पक्षों में इस ‘हॉटलाईन’ के द्वारा ‘संवाद’ तो शुरू हुआ।

लेकिन उसका उपयोग कहाँ तक हुआ?

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