समय की करवट (भाग ७९) – व्हिएतनाम : ‘गल्फ़ ऑफ़ टॉनकिन’

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।
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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’
– हेन्री किसिंजर
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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

यह अध्ययन करते करते ही सोव्हिएत युनियन के विघटन का अध्ययन भी शुरू हो चुका है। क्योंकि सोव्हिएत युनियन के विघटन की प्रक्रिया में ही जर्मनी के एकीकरण के बीज छिपे हुए हैं, अतः उन दोनों का अलग से अध्ययन नहीं किया जा सकता।

सोविएत युनियन का उदयास्त-३९

सन १९५४ में हुए व्हिएतनाम के अस्थायी विभाजन पर, दक्षिण व्हिएतनाम में सार्वमत के द्वारा सत्ता बनाये रखे एन्गो दिन्ह दाएम ने सन १९५६ में मुहर लगायी और केवल कम्युनिस्ट होने के शक़ पर किसी को भी जान से मारने की शुरुआत की। उसे अमरीका से अधिक से अधिक समर्थन मिलने लगा – पैसा, शस्त्रास्त्र, अनाज….सभी मामलों में!

साथ ही अगले साल से व्हिएत मिन्ह ने दक्षिण व्हिएतनाम में गुरिला वॉरफेअर शुरू किया। सन १९५९ में दक्षिण व्हिएतनाम में चल रही मूठभेड़ में अमरिकी सैनिकी सलाहगारों की हत्या हुई। उसका बहाना बनाकर अमरीका व्हिएतनाम में अधिक आक्रमक हुई। तब तक केवल ७०० अमरिकी सैनिक व्हिएतनाम में तैनात थे, उनकी संख्या सन १९६२ तक लगभग १२ हज़ार कर दी गयी।

सन १९६३ में इन सारे हालातों को अनिष्ट मोड़ देनेवालीं घटनाएँ घटित हुईं।

व्हिएतनाम में तब तक व्हिएत मिन्ह ने प्रविष्ट कराये हुए कम्युनिस्ट विद्रोहियों के गुट एन्गो दिन्ह दाएम को उड़ाने का मौक़ा ही ढूँढ़ रहे थे। सन १९५७ में और सन १९६२ में उन्होंने वैसी कोशिशें भी कीं, मग़र वे नाक़ामयाब रहीं। लेकिन उन्हें सफलता मिली सन १९६३ में। उससे पहले एन्गो दिन्ह दाएम ने व्हिएतनाम के धार्मिक गुटों पर लगाये निर्बंधों पर और उसने उनपर ढ़ाये बेतहाशा ज़ुल्मों के कारण उसकी इमेज स्वदेश में भी और अमरीका में भी मलीन हुई थी। उसीमें उन धार्मिक गुटों में से कुछ लोगों ने की हुईं आत्मदहन की कोशिशों को प्रसारमाध्यमों ने ज़ोरदार पब्लिसिटी दी थी। दाएम ने हालाँकि उन्हें ‘कम्युनिस्ट’ बताकर अमरीका की आँखों में धूल झोकने की कोशिश की, लेकिन दुनिया कोई दूधपीता बच्चा नहीं थी। इस कारण अमरीका अब एन्गो दिन्ह दाएम से छुटकारा पाना चाहती थी और वह उसे ऑप्शन ढूँढ़ने के चक्कर में थी।

इस कारण जब अमरीका को यह पता चला कि व्हिएतनामी सेना का ही एक गुट बग़ावत करने की कगार पर है, तब अमरीका ने ‘हम आपकी बग़ावत को अनदेखा करेंगे’ ऐसा आश्‍वासन उन्हें दिया। इस बग़ावत को सीआयए का समर्थन था!

१ नवम्बर १९६३ को जनरल दुआँग न्हॅन मिन्ह इस सेनाधिकारी की अगुआई में यह इस बग़ावत का ऐलान किया गया और उसमें दाएम की हत्या कर दी गयी।

लेकिन अब दाएम जितना ताकतवर नेता ही दूसरा कोई नहीं था। अतः उसके बाद थोड़े थोड़े महिनों के अवकाश में एक के बाद एक अस्थिर एवं भ्रष्टाचारी सैनिकी शासन सत्ता में आते गये और कुछ महिने सत्ता बनाये रखकर, ऐसे ही किसी दूसरे सैनिकी अधिकारी की बग़ावत का शिकार बनते गये। व्हिएत मिन्ह के हमलें अब अधिक ज़ोरदार होने लगे।

….और ‘कम्युनिस्ट’ व्हिएत मिन्ह दक्षिण व्हिएतनाम को निगल ना लें इसलिए उन दुर्बल सत्ताओं को बनाये रखने के लिए अमरीका अधिक से अधिक संसाधन दक्षिण व्हिएतनाम में भेजती रही।

३६वें अमरिकी राष्ट्राध्यक्ष जॉन केनेडी की हत्या के बाद राष्ट्राध्यक्षपद पर आरूढ़ हुए लिंडन जॉन्सन ने, व्हिएतनाम युद्ध में अमरीका का सक्रिय सहभाग अधिक ही स्पष्ट रूप में अधोरेखित किया।

इसी दौरान अमरीका में राष्ट्राध्यक्ष जॉन केनेडी की हत्या हुई और लिंडन जॉन्सन सत्ता में आ गये।

उन्होंने व्हिएतनाम नीति अधिक स़ख्त की।

सन १९६४ तक व्हिएतनाम भेजे गये अमरिकी सैनिकों की संख्या २१ हज़ार तक पहुँच चुकी थी।

उसीके साथ उन्होंने उत्तर व्हिएतनाम की नौसैनिक ताकत का अँदाज़ा लगाने के लिए उत्तर व्हिएतनाम की सागरी सीमा में अमरिकी युद्धनौका ‘युएसएस मॅडॉक्स’ को भेजने के आदेश दिये।

फिर वह ‘गल्फ़ ऑफ़ टॉनकिन’ की घटना घटित हुई।

२ अगस्त १९६४ को व्हिएतनाम से सटी आंतर्राष्ट्रीय सागरसीमा में गश्त लगानेवाली इस अमेरिकी युद्धनौका को, उसने उत्तर व्हिएतनाम की सागरी सीमा में प्रवेश करते ही व्हिएत मिन्ह के नाविकदल की गश्तीबोटों द्वारा दागे गये टोर्पेडोज् का सामना करना पड़ा। मॅडॉक्स ने स्वाभाविक रूप में उसे प्रत्युत्तर दिया। जॉन्सन तक जब यह ख़बर पहुँची, तब उसने खौलकर दूसरे दिन व्हिएत मिन्ह के इस समुद्री बेस को और उसके साथ एक ऑईल डेपो को नष्ट करने के आदेश दिये।

व्हिएतनाम युद्ध में अब अमरीका सक्रिय रूप में उतरी है, इस बात का यह निदर्शक था।

लेकिन जॉन्सन ये केनेडी की हत्या हुई होने के कारण मध्यावधि तौर पर सत्ता में आये थे और उन्हें अभी चुनाव का सामना करना था। अब चुनाव नज़दीक आये होने के कारण जॉन्सन इस घटना के समर्थन में कुछ सयुक्तिक बहाना चाहते थे। उन्होंने उस दृष्टि से प्रचार किया और अमरिकी काँग्रेस में, अमरिकी फ़ौजों पर हुए इस ‘कम्युनिस्ट आक्रमण के कारण’ ‘गल्फ़ ऑफ़ टॉनकिन रेझोल्युशन’ पारित करा लिया। उसके तहत अब, अमरिकी हितसंबंधों (इंटरेस्ट्स) को मह़फूज़ रखने के लिए ‘जो उचित लगें वे’ ़फैसलें करने के सर्वाधिकार जॉन्सन के हाथों में आ गये।

अमरिकी सेना की प्रचंड ताकत के दर्शन हुए, तो हो चि मिन्ह की अ़क्ल ठीकाने आ जायेगी, ऐसे जॉन्सन सोच रहे थे। लेकिन हुई उल्टा ही!

अमरीका ने व्हिएत मिन्हच् के बेसों को लक्ष्य करने के बाद, व्हिएतमिन्ह की सेना ने गुरिला वॉरफेअर का इस्तेमाल कर अमरिकी फ़ौजों की नाक में दम करना शुरू किया।

सन १९६५ तक व्हिएतनाम भेजे गये अमरिकी सैनिकों की संख्या २ लाख तक पहुँची थी!

अब युद्ध अच्छाख़ासा भड़कनेवाला था!

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