इंधन दरों में हो रही गिरावट की पार्श्वभूमि पर रशिया दीर्घकालीन ‘ऑईलवॉर’ के लिए तैयार

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इंधन के भावों में हो रही विक्रमी गिरावट की पार्श्वभूमि पर रशियन अर्थव्यवस्था का अगले साल पूरे २१ अरब डॉलर्स का नुकसान होने की संभावना व्यक्त की गयी है। यह गिरावट दीर्घकाल जारी रहने की संभावना को मद्देनज़र करते हुए रशिया ने अगले सात सालों के लिए स्वतन्त्र योजना बनाने की तैयारी की है। रशिया द्वारा की जा रही यह तैयारी, यह सौदी अरेबिया और इंधनक्षेत्र के ‘ओपेक’ संगठन के लिए चेतावनी मानी जाती है। इसी पार्श्वभूमि पर रशिया, देश में होनेवाले कच्चे तेल के व्यवहारों के लिए स्वतंत्र ‘ऑईल बेंचमार्क’ लागू करने के प्रस्ताव पर भी गौर कर रहा है।

आंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इंधन के भाव ४० डॉलर्स प्रति बॅरल से भी नीचे आ गये हैं और अगले साल में भी यह गिरावट कायम रहेगी ऐसा अँदेसा है। कुछ वित्तसंस्थाओं तथा अर्थविशेषज्ञों ने कच्चे तेल के दाम २० से ३० डॉलर्स तक भी नीचे गिरने की संभावना व्यक्त की है। इस कारण इंधन का उत्पादन करनेवालीं कंपनियों एवं संबंधित देशों में फ़िलहाल चिंता का माहौल है। रशिया दुनिया के अग्रसर इंधन उत्पादक देशों में से एक है और दरों में हो रही गिरावट के कारण रशिया की अर्थव्यवस्था भी संकट में पड़ गयी है।

रशियन सरकार तथा मध्यवर्ती बँक आर्थिक संकट में से रास्ता खोजने के प्रयास कर रहे हैं। अगले सात साल तक इंधन के दर कम रहेंगे, इस संभावना को ध्यान में रखकर बनायी जानेवाली आर्थिक नियोजन की योजना, यह इन्हीं प्रयासों का भाग है। रशिया के उपवित्तमंत्री मॅक्झिम ओरेश्किन ने इंधन के दर और रशियन योजना के बारे में जानकारी दी। ‘सन २०२२ तक कच्चे तेल के दाम ४० से ६० डॉलर्स प्रति बॅरल रहेंगे, ऐसा मानकर चलते हुए योजना बनायी जा रही है’, ऐसा ओरश्किन ने बताया।

‘इंधन के भाव ४० डॉलर्स प्रति बॅरल पर रहें, तो अगले साल में रशियन अर्थव्यवस्था को पूरे २१.५ अरब डॉलर्स का नुकसान हो सकता है। जीडीपी की तुलना में अर्थव्यवस्था की त्रुटि २ प्रतिशत पर पहुँच जाने की संभावना है। यह त्रुटि ३ प्रतिशत तक न जायें इसलिए अर्थमंत्रालय को खर्चे के मामले में अधिक कटोतरी करनी पडेगी’, ऐसा रशियन उप-अर्थमंत्री ने स्पष्ट किया। अर्थ मंत्रालय के अँदाज़ानुसार, सन २०१६ में रशिया का जीडीपी १.१५ ट्रिलियन डॉलर्स रहने की संभावना है।

रशिया के अर्थमंत्री ने इससे पहले ही, कच्चे तेल के दामों मे हो रही गिरावट इसी तरह कायम रही, तो सन २०१६ के अंत तक देश का रिज़र्व्ड फ़ॉरेन एक्स्चेंज ख़त्म हो जाने की संभावना है, ऐसी चिंता जतायी थी। इस बात को मद्देनज़र करते हुए, सन २०२२ तक की बनायी जा रही योजना, यह महत्त्वपूर्ण कदम माना जाता है। अगले सात सालों के लिए की जा रही इस पूर्वतैयारी से, रशिया फ़िलहाल इंधनक्षेत्र में शुरू रहनेवाले ‘प्राईस वॉर’ का आक्रामक रूप से मुक़ाबला करेगा, ऐसे संकेत मिल रहे हैं।

फ़िलहाल इंधनक्षेत्र में सर्वाधिक उत्पादन करनेवाले ‘ओपेक’ सदस्य देशों ने कच्चे तेल के उत्पादन मे कटोतरी न करने का फ़ैसला किया है। इस कारण आंतर्राष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की हो रही आपूर्ति लगातार बढ़ रही है, लेकिन उसकी अपेक्षा, माँग में बढ़ोतरी होने की गुंजाईश नहीं है। ओपेक के सदस्य रहनेवाले देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भी, दरों में हो रही गिरावट के कारण काफ़ी नुकसान झेलना पड़ रहा है और ‘इंटरनॅशनल मॉनेटरी फ़ंड’ के अँदाजानुसार यह नुकसान २०० से ३०० अरब डॉलर्स तक पहुँचने की संभावना है। लेकिन आंतर्राष्ट्रीय मार्केट में अधिक से अधिक हिस्सा रखने के उद्देश्य से ‘ओपेक’ के प्रमुख देशों ने तेलउत्पादन में कटोतरी करने से इन्कार कर दिया है। इस फ़ैसले के पीछे का प्रमुख सूत्रधार सौदी अरेबिया माना जाता है।

रशिया की दीर्घकालीन सिद्धता की योजना सौदी के साथ साथ प्रमुख ओपेक देशों को दिक्कतभरी साबित हो सकती है। ये देश रशिया की तरह प्रदीर्घ काल तक इंधनदरों की गिरावट का मुक़ाबला नहीं कर सकते, ऐसा अँदाज़ा विभिन्न वित्तसंस्थाओं तथा विश्लेषकों ने ज़ाहिर किया है। इसलिए अगले सालभर में ‘ओपेक’ के रवैये में बदलाव आने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता, ऐसे संकेत सूत्रों द्वारा व्यक्त किये गए हैं।

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