टि. व्हि. रिमोट को अत्याधुनिक रूप प्रदान करनेवाला रॉबर्ट अ‍ॅडलर (४ दिसंबर १९१३-१५ फरवरी २००७)

आज के दौर में टी.व्ही. की दुनिया में खोया न रहनेवाला मनुष्य ढ़ूँढ़ने पर भी मिल पाना कठिन है। ‘डेली सोप’ के जाल से बाहर निकलना यह बहुत ही मुश्किल हो गया है। चॅनल बदलते रहने की आदत होने वालों के लिए रिमोट के रूप में संजीवनी ही जैसे हाथ लग गयी हो ऐसा प्रतीत होता है। इसी रिमोट के आधार पर यह टी.व्ही. की दुनिया निर्भर करती है ऐसा कहना भी कुछ गलत न होगा।

रिमोट कंट्रोल, यह एक बुद्धिमान शास्त्रज्ञ के अथक परिश्रम का आविष्कार है, इसे अनदेखा करने से नहीं चलेगा। विज्ञान की अनेक योजनाओं को आगे ले जानेवाले वायरलेस रिमोट को इस दुनिया में ले आने का श्रेय जाता है ‘रॉबर्ट अ‍ॅडलर’ को।

रॉबर्ट अ‍ॅडलरअ‍ॅडरल ने ही रिमोट कंट्रोल यंत्रणा को अत्यानुधिक विज्ञान का साज़ चढ़ाया। १९१३ में विएन्ना में जन्म लेनेवाले अ‍ॅडलर ने फिजिक्स में पी.एच.डी. करके १९३७ में विएन्ना विश्‍वविद्यालय में कार्यरत हो गए। इसके पश्‍चात् एक ही ध्येय रखनेवाले अ‍ॅडलर ने अपने संशोधन को और भी अधिक व्यापक स्तर तक ले जाने के लिए १९४१ में अमरिका में प्रयाण किया तथा वहाँ के झेनिथ इलेक्ट्रॉनिक्स संशोधन विभाग में अपना काम आरंभ कर दिया।

अ‍ॅडरल को अमरिका ने उनके अनमोल योगदान के प्रति  ‘५८ यूएस’  पेटंट्स प्रदान किये। द्वितीय महायुद्ध के दौरान विमान में होनेवाले रेडिओ में उपयोग में लाये जानेवाले हाय-फ्रिक्वेन्सी ऑसिलेटर्स एवं इलेक्ट्रोमेकॅनिकल फिल्टर्स पर भी अ‍ॅडलर ने काम किया है। द्वितीय महायुद्ध के पश्‍चात् अ‍ॅडलर ने केवल टी.व्ही. पर ही अपना ध्यान केन्द्रित किया। आज के समय में चलनेवाला उच्च यांत्रिकज्ञानयुक्त टी.व्ही. अ‍ॅडलर के ही बुद्धिसामर्थ्य का फल है।

अ‍ॅडलर के द्वारा संशोधित ‘एकोस्टिक वेव्ह टेक्नॉलॉजी’ के कारण ही उनके नाम को प्रसिद्धि का सुंदर आकार प्राप्त हुआ। इस यांत्रिक ज्ञान का उपयोग केवल रंगीन टी.व्ही. में ही नहीं किया गया, बल्कि अधिकतर तक टचस्क्रीन टी.व्ही. में भी इस यांत्रिक ज्ञान का उपयोग किया जा रहा है। अ‍ॅडलर ने अनेकों वस्तुओं से संबंधित संशोधन किए हैं। लेकिन ‘वायरलेस रिमोट कंट्रोल’ यह अ‍ॅडलर के संशोधन का सर्वोच्च शिखर साबित होता है। रिमोट की सर्वप्रथम खोज अ‍ॅडरल ने यदि न भी की हो, अपितु इससे पूर्व प्रचलित रिमोट को और भी अधिक आधुनिक बनाया। प्रथम वायरलेस रिमोट कंट्रोल झेनिथ के ही, ‘युगेने पॉली’ नामक इस अभियंता ने बनाया था।

इस रिमोट कंट्रोल का उपयोग करने में अनेक अड़चने आने लगीं। इसके पश्‍चात् बॅटरी पर चलनेवाला रिमोट आ गया। दिवारों से लगाकर तथा आस-पास के वातावरण से वेवज् आने से चैनल बदलने में रुकावटें उत्पन्न होने लगीं। इसी कारण ग्राहकों के मन में रिमोट के प्रति आशंका निर्माण हो गई। इस समय रिमोट की संकल्पना को व्यवस्थित रूप में कार्य करना, यह झेनिथ के लिए एक चुनौती बन गई और ऐसे ही समय पर अ‍ॅडलर को अत्यानुधिक रिमोट कंट्रोल बनाने का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ।

अब तक प्रकाश पर चलनेवाले रिमोट कंट्रोल की मूल संकल्पना को ही बदल डालने की हिम्मत अ‍ॅडलर ने कर दिखायी। इसके पश्‍चात् सर्वप्रथम कंपनियों की सहायता से रिमोट एवं टी.व्ही. सेट में लिंक निर्माण करके रिमोट को कार्यरत किया गया। इस कार्य हेतु अ‍ॅडलर ने अपने बुद्धिकौशल्य को दाव पर लगा दिया।

अ‍ॅल्युमिनियम रॉड्स, काटों के समान रचना, बटन दबाते ही उपकरण पर होनेवाला आघात इनके द्वारा निर्माण होनेवाली कंपनों की सहायता से टी.व्ही. को नियंत्रित करने की रचना तैयार की गई।

झेनिथ कंपनी को अपने अलौकिक प्रकाश द्वारा जगमगानेवाले अ‍ॅडलर को कंपनी ने उच्चपद प्रदान किया। १९८२ में अधिकृत तौर पर झेनिथ से निवृत्त होते वक्त अ‍ॅडलर इस कंपनी के उपाध्यक्ष एवं संशोधन विभाग के संचालक पद पर कार्यरत थे। इसके पश्‍चात् भी १९९९ तक अ‍ॅडलर ने इस कंपनी के सलाहगार के रूप में कार्यभार सँभाला। अ‍ॅडलर को १९८० में ‘आयईईई एडिसन मेडल’ प्रदान कर उन्हें गौरवान्वित किया गया। वहीं १९९७ में नेशनल अ‍ॅकॅडमी ऑफ टेलिव्हिजन आर्टस अ‍ॅण्ड सायन्सेस की ओर से अ‍ॅडलर एवं पॉली को ‘एम्मी अ‍ॅवॉर्ड’ बाँटकर दिया गया।

जीवन के अन्त तक संशोधन की ही धुन में रहनेवाले अ‍ॅडलर को ६ अक्तूबर २००६ के दिन अंतिम पेटंट ‘टच स्क्रीन’ यांत्रिक ज्ञान के लिए प्राप्त हुआ। इसके पश्‍चात् उम्र के ९३ वे वर्ष इस संशोधन का अविरत प्रवाह थम सा गया। अ‍ॅडलर ने १९६० में अल्ट्रासॉनिक सिग्नल का उपयोग करके रिमोट कंट्रोल द्वारा आधुनिक यांत्रिक ज्ञान का युग साकार करने का करिश्मा कर दिखाया और इसी यांत्रिक ज्ञान का आनेवाले पच्चीस वर्षों पश्‍चात् टी.व्ही. सेट्स बनाने के लिए उपयोग किया गया।

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