विज्ञान के आद्य पुरस्कर्ता गॅलिलिओ गॅलिली(१५६४ से १६४२ )

चार शताब्दी पूर्व धर्मसंस्था और विज्ञान इन में नये-नये संशोधनों के कारण निर्माण होनेवाले तनावपूर्ण इतिहास पर यदि नज़र डालनी हो तो इसके लिए गॅलिलिओ गॅलिली नामक संशोधन कर्ता का जीवन ही काफी है। सोलहवी शताब्दी में भी परंपरा वादियों के पकड़ में जकड़े हुए विज्ञान को बाहर निकालकर उसे नयी दिशा प्रदान करनेवाले श्रेष्ठ संशोधनकर्ता अर्थात गॅलिलिओ गॅलिली।

Galileo Galilei

संगीत एवं गणित इन दो विषयों में महारत हासिल करनेवाले विन्सेंझों गॅलिली के परिवार में १५ फरवरी १५६४ को गॅलिलिओ गॅलिलीयों का जन्म हुआ। विज्ञान की जन्म घूँटी गॅलिलिओ को बचपन में घर पर ही प्राप्त हो चुकी थी। अगली शिक्षा हेतु गॅलिलिओ ने पिसा विश्‍वविद्यालय में प्रवेश तो प्राप्त कर लिया, परन्तु आर्थिक कारणों से उन्हें विश्‍वविद्यालय छोड़ना पड़ा था। उस दौरान गॅलिलिओ के मन में विश्‍वविद्यालय के संशोधकों एवं गणितज्ञों के व्याख्यान सुनने की इच्छा उत्पन्न हो चुकी थी। आर्थिक परिस्थिति के कारण शिक्षा आधे में छोड़नी पड़ी थी, फिर भी व्याख्यान सुनने की उनकी इच्छा निरंतर बनी रही।

व्याख्यान सुननेवाले गॅलिलिओ को वाद-विवाद में कुछ अधिक रुचि नहीं थी। कालांतर में उन्होंने गणितज्ञ की उपाधि प्राप्त कर ली, फिर भी सिद्धांतों के चक्कर में फँसे रहने की अपेक्षा प्रयोगों पर अधिक ज़ोर देना चाहिए ऐसी कामना उन्होंने निरंतर बनाये रखी। तात्कालीन विज्ञान पर एवं परोक्ष रूप से वैज्ञानिकों पर अ‍ॅरिस्टॉटल का काफी प्रभाव था। मात्र उनके विचारों एवं सिद्धांतों के प्रति चुनौती देने का साहस गॅलिलिओ ने किया।

गॅलिलिओ के इस साहसी वृत्ति का एक उत्तम उदाहरण देखा जाए तो पंखों के मिनार पर से फेंकी गईं दो वस्तुओं का प्रयोग। प्राचीन ग्रीक दार्शनिक मानेजाने वाले अ‍ॅरिस्टॉटल ने शास्त्रों के अनेक वस्तुओं के प्रति अपना सिद्धांत प्रस्तुत किया था। अ‍ॅरिस्टॉटल के सिद्धातों को धर्मसंस्थाओं के द्वारा मान्यता प्राप्त होने के कारण संशोधकों से लेकर सामान्य जनता तक सभी के मन पर उनके ही विचारों का प्रभाव कायम था। अ‍ॅरिस्टॉटल ने कोई भी चीज़ नीचे गिरते समय उनमें से वजन होनेवाली चीज़ जल्द नीचे गिरती है और हलकी चीज़ देर से नीचे गिरती है, इस प्रकार का सिद्धांत प्रस्तुत किया था। उस काल में संशोधनकों ने भी उनके इस दावे की सच्चाई को मान्य किया था।

प्रत्यक्ष रूप में देखे बगैर मैं इस सिद्धांत को मान्य नहीं करूँगा यह बात गॅलिलिओ ने मन में ठान ली थी। अपने पक्ष को साबित करने के लिए उन्होंने प्रयोग का आधार लेने का निश्‍चय किया। गॅलिलिओ ने यह घोषणा कर दी कि प्रत्यक्ष सबूर के आधार पर ही अपनी बात साबित करनेवाले हैं। इसी बात को लेकर गॅलिलिओ एवं धर्मसंस्था के बीच संघर्ष की पहली चिंगारी भड़क उठी थी। गॅलिलिओ इस बात को भली-भाँति जान चुके थे कि उनके द्वारा घोषित किए गए सिद्धांत को लेकर, ‘यह धर्म के विरुद्ध है’ यह कहकर इसका प्रचार भी किया गया। लेकिन गॅलिलिओ का इरादा पक्का था कि चाहे इसका अंजाम जो भी हो। उन्होंने अपना प्रयोग पूर्ण करने का निश्‍चय दृढ़ कर लिया।

एक ही समय पर दो भिन्न प्रकार की भारी वस्तुओं को हाथ में लेकर गॅलिलिओ मीनार पर खड़े हो गए। सभी लोगों के समक्ष गॅलिलिओ न अपने हाथों में पकड़ी हुई उन वस्तुओं को उस मीनार से नीचे गिरा दिया। दोनों वस्तुएँ एक ही समय पर नीचे आ गिरी। इस घटना से गॅलिलिओ के द्वारा अ‍ॅरिस्टॉटल को दी हुई चुनौती सही साबित हो गई। ऐसे में अ‍ॅरिस्टॉटल को ईश्‍वर के समान माननेवाले संशोधकों को काफी आघात पहुँचा।

गॅलिलिओ ने अपने पंखों के मीनार पर खड़े होकर किए गए प्रयोग के द्वारा इस सिद्धांत को सिद्ध कर दिया कि कोई भी वस्तु जब ऊपर से गिरती है उस वक्त उस वस्तु का गिरना उसके वजन पर निर्भर नहीं करता है। इसके साथ ही गॅलिलिओ ने अपने प्रयोग के द्वारा यह भी साबित कर दिया कि जब कोई भी वस्तु नीचे गिरती है तब उसकी गति और भी अधिक तीव्र हो जाती है। इसी प्रयोग के आधार पर गॅलिलिओ ने आगे चलकर गति के नियम को भी प्रस्तुत किया। आज के युग में यह नियम न्यूटन के गतिविषयक सिद्धांत के प्रथम नियम के रूप में प्रसिद्ध है।

इसके पश्‍चात् गॅलिलिओ ने ‘हायड्रोस्टॅटिक बॅलन्स’ एवं ‘सूर्य-केन्द्रित ग्रहमाला’ नामक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत भी प्रस्तुत किया। इनमें से ‘हायड्रोस्टॅटिक बॅलन्स’ इस कल्पना का जन्म गॅलिलिओ के मन में चर्च में देखी हुई एक घटना के कारण हुआ था।

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