पर्सी स्पेंसर (१८९४-१९७०)

Percy-Spencer

प्राची की बर्थ डे पार्टी में सब ने खूब धमाल की । कार्यक्रम के बाद प्राची ने पार्टी में आए हुए सभी से एक मिनट रुकने की विनति की। उस ने सब से एक ही सवाल पूछा- पार्टी का मेनू कैसा था? सभी ने एक सुर में जवाब दिया- अच्छा। मगर, यह सब कुछ किसी से बनवाया या बाहर से मंगाया गया था, यही बताने के लिए तो मैंने आप सबको रोका है। आज का मेनू तय करनेवाला, इसकी सारी तैयारी करनेवाला और सारी मेहनत करनेवाला द ग्रेट शेफ है मेरा सौरभ भैया! आँ ! सभी के चेहरों पर अचरज स्पष्ट दिखाई दे रहा था। सब कुछ चाची ने बनाया होगा, तुम सौरभ का नाम मत लो। वह अव्वल दर्जे का आलसी है, उसने किसी होटल से मंगाया होगा। कोई कुछ भी कहे मगर प्राची का सौरभ पर पूरा विश्वास था और वह इस करामात के पीछे का रहस्य भी जानती थी।

चलिए अब थोड़ा पीछे चलते हैं। थोड़ा यानी केवल ६० वर्ष पीछे, बहुत ज्यादा पीछे नहीं। यह बात है सन १९४६ की। रडार की खोज हुए कुछ अरसा बीत चुका था। इस रडार में इस्तेमाल होनेवाली सूक्ष्म लहरों के लिए मैग्नेट्रॉन नामक एक नलिका थी। इस नलिका की खोज करनेवाले पर्सी स्पेंसर यह संशोधक किसी कार्य हेतु मैग्नेट्रॉन के पास खड़े निरीक्षण कर रहे थे। कुछ समय बाद उनके ध्यान में आया की उन्होंने खाने के लिए लाए हुए चॉकलेट जेब में ही पिघल गए हैं।

इस के कुछ दिनों बाद घटी हुई घटना। एक बार उन्हें अचानक पॉपकॉर्न खाने की इच्छा हुई। बाहर से कुछ मंगाने का दिल नहीं कर रहा था, इसलिए उन्होंने कंपनी के एक व्यक्ति से मकई के दाने मंगाकर उन्हें मैग्नेट्रॉन समक्ष पकड़ा। कुछ पलों में वे दाने अच्छी तरह से फूल गए। कुछ दिनों के अंतराल में घटी इन दो घटनाओं से पर्सी स्पेंसर के दिमाग में एक अनोखा चक्कर शुरू हो गया था। इन दोनों घटनाओं ने स्पेंसर को प्रेरणा दी माइक्रोवेव ओवन बनाने की। और यही रहस्य था प्राची के सौरभ भैया के ‘द ग्रेट शेफ’ बनने का।

अमेरिकन संशोधक पर्सी लेब्रॉन स्पेंसर का जन्म ९ जुलाई १८९४ को होवलैंड, माईन में हुआ। बचपन में ही माता-पिता का साया सर से उठ जाने के बाद चाचा ने पर्सी की परवरिश की। १२ साल की उम्र में पर्सी मिल में काम करने लगा। उस को बचपन से ही एक विशेष गुण मानो देन में मिला था और वह था जिज्ञासा का। उसे कभी भी स्कूली शिक्षा की चाह नहीं थी। उस पर पहले माता-पिता का और बाद में चाचा का साया उसके सर से उठ जाने से शिक्षा पाने के बजाय निरंतर कुछ न कुछ भिन्न करते रहना भाता था।

किसी बात की जानकारी नहीं होती थी तब भी ‘ट्रायल एंड एरर’ तरीके से सीखने का और उस में निपुणता हासिल करने की। इसका एक किस्सा बताता हूँ। मिल में कुछ सालों तक कार्य करके उसे बार बार वही काम करने से बोरियत हो गई थी। एक दिन उसे पता चला कि अपने पास ही एक मिल में बिजली का यंत्र लगाया जाएगा। उस ने तुरंत उस कार्य लिए अपना नाम दर्ज कराया। वास्तव में पर्सी को बिजली के कार्य को कोई जानकारी नहीं थी। फिर भी नया काम सीखने के हेतु से वह इस कार्य में सहभागी हुआ और सारा काम सीख लिया।

इस के बाद घटना है सन १९१२ की। विश्व की सबसे बड़ी और आलिशान मानी जानेवाली ‘टाइटैनिक’ नौका डूब गई। वायरलेस ऑपरेटर्स के कार्य से प्रभावित होकर पर्सी ने जिज्ञासा की वजह से नौदल में शामिल होकर टेलीग्राफी का अध्ययन करना चाहा। अमेरिकन नौदल प्रवेश मगर पर्सी के पास स्कूली शिक्षा नहीं थी इसलिए उसे गणित तथा विज्ञानं की शिक्षा के लिए खास रेडियो स्कूल में भेजा गया। शिक्षा में दिलचस्पी न रखनेवाले पर्सी ने केवल टेलीग्राफी सीखने के लिए इन दोनों विषयों का अच्छी तरह से अभ्यास किया और नौदल में टेलीग्राफी का कोर्स पूरा किया।

सन १९२० के दौरान स्पेंसर रेथॉन नामक कंपनी में कार्य करने लगे। वहां पर उस ने ट्यूब-डिजाइनिंग के कार्य में विशेष कुशलता हासिल की। दूसरे महायुद्ध का दौर स्पेंसर के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस महायुद्ध में रडार ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस रडार की मूल आत्मा थी मैग्नेट्रॉन नामक ट्यूब। मगर यह ट्यूब बनाने के लिए बहुत ध्यान देना पड़ता था इसलिए रडार का उत्पादन बहुत कम होता था। तब स्पेंसर ने विशेष मेहनत करते हुए अपनी कुशलता के आधार पर ऐसी ट्यूब बनाई कि जिसकी वजह से कोई भी कुशल कारीगर इसे आसानी से ट्यूब बना सके। इसकी वजह से रडार का उत्पादन बढ़ाने में बड़ी मदद हुई।

मैग्नेट्रॉन ट्यूब व रडारसंबंधित कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की वजह से स्पेंसर को नौदल की ओर से नागरिकों को दिया जानेवाला सर्वोच्च पुरस्कार (डिस्टिंग्विश्ड पब्लिक सर्विस अवार्ड) प्रदान किया गया। स्पेंसर इतनी ही बात पर रुके नहीं। महायुद्ध में बाद भी स्पेंसर ने मैग्नेट्रॉन ट्यूब पर कार्य करते ही रहे और इसी से विकसित हुआ वह ‘मिक्रोवेव ओवन।’ चॉकलेट, पॉपकॉर्न से विचारों की श्रृंखला शुरू हो गई और स्पेंसर फिर से अपनी सारी कुशलता दांव पर लगा दी और खाद्यजगत में एक नए युग का आरम्भ करनेवाले माइक्रोवेव ओवन का जन्म हुआ।

स्पेंसर ने रेथॉन कंपनी में बनाया हुआ पहला माइक्रोवेव ओवन लगभग साडेपाँच फुट ऊंचा और ७५० पौंड वजन का था और उस वक्त उसकी कीमत थी ५००० अमेरिकन डॉलर। रडार की तकनीक पर आधारित इस माइक्रोवेव ओवन का नाम रखा गया ‘रदाररेंज।’ शुरू में माइक्रोवेव ओवन को ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं मिली। पर स्पेंसर के प्रयोग जारी रहे। धीरे धीरे होटलों तथा जहाजों में इसका इस्तेमाल होने लगा। तकरीबन १९५२-५३ के दौरान घरों में इस्तेमाल हेतु माइक्रोवेव ओवन का निर्माण होने लगा। उस में निरंतर सुधार होते होते आज छोटे से बॉक्स जितना माइक्रोवेव ओवन बन गया और उसने घर घर में ‘गृहमंत्री’ का भार हलका कर दिया।

माइक्रोवेव ओवन के निर्माण के बाद भी पर्सी स्पेंसर ने अपना कार्य जारी रखा। चौकन्नी बुद्धि, निरंतर जागृत जिज्ञासा और मेहनत से प्राप्त हुई कुशलता के बल पर स्पेंसर ने अपने जीवन में १५० पेटेंट्स पाए। आजीवन वे माइक्रोवेव के विशेषज्ञ माने जाते रहे। स्कूली शिक्षा पूरी किए बगैर विश्व के श्रेष्ठ संशोधक एवं उद्योजक के रूप में पहचाने जानेवाले पेर्सी स्पेंसर का निधन ७६ वर्ष की आयु में ८ सितम्बर १९७० को हुआ।

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