‘भारत चीन से सबक सीखें’ : चीन के सरकारी अखबार की सलाह

बीजिंग, दि. २२  – ‘भारत की आकांक्षा और ताकत में बड़ा अंतर है| अमरीका जैसा बड़ा ताकतवर देश भी चीन की संप्रभुता को चुनौती देने से पहले कई बार सोचता है| ऐसी स्थिति में भारत का, मंगोलिया और दलाई लामा का इस्तेमाल करते हुए चीन को चुनौती देने की कोशिश करना यानी महज़ मूर्खता है| चीन जिस तरह ट्रम्प के साथ के संबंधों को सँभाल रहा है, इससे भारत कुछ सीखें’ ऐसी चेतावनी चीन के सरकारी अखबार ‘ग्लोबल टाईम्स’ ने दी है|

चीनइन दिनो ‘ग्लोबल टाईम्स’ के माध्यम से चीन भारत को हर समय धमकियाँ और चेतावनियाँ दे रहा है| ख़ासकर भारत ने मंगोलिया को करीबन सौ करोड डॉलर्स का कर्ज देने की तैयारी दर्शाने के बाद ‘ग्लोबल टाईम्स’ की आलोचना अधिक ही बढ़ गयी है| उसी में, कुछ दिन पहले भारत के राष्ट्रपति ने, एक कार्यक्रम में, दलाई लामा के साथ अनौपचारिक बातचीत की थी| इसपर चीन ने जहरीली प्रतिक्रिया दी है| इस पृष्ठभूमि पर, चिनी सरकार का अधिकृत समाचारपत्र होनेवाले ‘ग्लोबल टाईम्स’ में, भारत की तीव्र आलोचना करनेवाला लेख प्रकाशित हुआ था|

‘चीन के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकनेवाला मुद्दा, इस रूप में भारत आज तक ‘दलाई लामा’ का इस्तेमाल करता आया है| भारत के राष्ट्रपति ने दलाई लामा से की हुई मुलाक़ात, यह भारत की इसी चीनविरोधी नीति का हिस्सा है’ ऐसा आरोप इस लेख में किया गया है| साथ ही, मंगोलिया को भारत ने आर्थिक सहायता करने से पहले ही इस देश ने, भविष्य में हम दलाई लामा को निमंत्रित नही करेंगे, ऐसा आश्वासन चीन को दिया था, इस बात पर इस लेख में ग़ौर फ़रमाया गया| दलाई लामा को आमंत्रित करने की वजह से ही, चीन ने मंगोलिया को आर्थिक तौर पर घेरना शुरू किया था| इसी कारण भारत ने मंगोलिया को लगभग सौ करोड डॉलर्स की आर्थिक सहायता शीघ्रतापूर्वक देने की कोशिशें सुरू की थीं| लेकिन भारत की ये कोशिशें असफल हुईं, ऐसा दावा ‘ग्लोबल टाईम्स’ ने किया|

चीन‘अमरीका जैसा ताकतवर देश जहाँ चीन की संप्रभुता को चुनौती देने से पहले कई बार सोचता है, वहाँ भारत ने चीन को चुनौती देने की कोशिश मतलब पागलपन साबित होता है| भारत की महत्त्वाकांक्षा और ताकत इनमें बड़ा अंतर है| चीन पर दबाव डालना भारत की पहुँच के बाहर की बात है| भारत वैसी कोशिश भी ना करें’ ऐसी सलाह ग्लोबल टाईम्स ने दी है| कभी कभी भारत का बर्ताव यह बिगडे बच्चे की तरह बेताल रहता है| दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत दुनिया भर में शान दिखाता रहता है| भारत के पास दुनिया का प्रमुख देश बनने की ताकत यक़ीनन ही है| लेकिन इस देश के पास दूरंदेशी नहीं है, ऐसा ताना इस लेख में मारा गया है|

चीन की सरकारी मीडिया में भारत के खिलाफ इस प्रकार के लेख कई बार प्रकाशित किये जाते हैं| भारत के खिलाफ़ अधिकृत तौर पर खुलेआम भूमिका न अपनाते हुए, चीन अपने सरकारी अखबारों का इस्तेमाल कर भारत को धमकियाँ और चेतावनियाँ दे रहा है| इससे चीन की भारत संदर्भ में रहनेवाली असली भूमिका समझ में आ सकती है| लेकिन पिछले कई सप्ताहों से, चीन के अखबारों में भारतविरोधी लेखों की मात्रा और तीव्रता बढ़ गयी है, ऐसा सामने आ रहा है|

अमरीका, जापान और आग्नेय एशियाई देशों के साथ भारत के संबध चीन को चुभ रहे हैं| इस कारण, भारत को और इन देशों को चीन से हरवक्त धमकियाँ मिलती रहती हैं| कई बार इन लेखों में, भारत की क्षमता पर भी सवाल उपस्थित करते हुए, ‘चीन भारत से कई ज़्यादा ताकतवर देश है’ इसकी याद दिलायी जाती है| ‘ग्लोबल टाईम्स’ के ताज़े लेख में भी इससे अलग कुछ नहीं है, यह सामने आ रहा है|

इस दौरान, कुछ दिन पहले, भारत के ‘एनएसजी’ प्रवेश को और ‘मसूद अझहर’ पर की कार्रवाई को अपना विरोध बरक़रार है, ऐसी घोषणा चीन ने की थी| यह अपने विरोध में रहनेवाली नीति होकर, चीन भारत के हितसंबंध ध्यान में लें’, ऐसा आवाहन भारत ने किया था| इतना ही नहीं, बल्कि ‘जैश-ए-मोहम्मद’ यह मसूद अझहर ने स्थापन किये संगठन को, संयुक्त राष्ट्रसंघ ने ‘आतंकवादी’ घोषित किया था| ऐसा होते हुए भी, ‘अझहर’ पर हो रही सुरक्षा परिषद की कार्रवाई को चीन से होनेवाला विरोध अनाकलनीय है, ऐसी आलोचना भारत ने की थी|

पठानकोट के भारतीय वायुसेना के अड्डे पर ‘जैश’ द्वारा किये गए आतंकी हमले के विरोध में भारत के ‘एनआयए’ ने, अझहर के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी| उसपर भी चीन ने, ‘अपनी अझहर के संदर्भ में रहनेवाली भूमिका बरक़रार है’, ऐसी घोषणा करते हुए भारत को उक़साया था| भारत ने ‘अझहर’ के खिलाफ दर्ज की हुई चार्जशीट, संयुक्त राष्ट्रसंघ के नियम के अनुसार होनी चाहिए, ऐसी माँग भी चीन ने की है|

‘एनएसजी’ इस ‘आण्विक इंधन सप्लायर’ देशों के गुट में भारत को प्रवेश देने के लिए चीन कड़ा विरोध कर रहा है| इससे भारत में चीन के खिलाफ गुस्सा व्यक्त किया जा रहा है| ‘इस विरोध की हमें फ़िक्र नहीं है’ यही चीन बार बार दर्शा रहा है|

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