भारत को शरणार्थियों की राजधानी नहीं बनाई जा सकती – रोहिंग्या के बारे में केंद्र सरकार की ठोस भूमिका

नई दिल्ली: ‘भारत को शरणार्थियों की जातिगत राजधानी नहीं बनाना है’, ऐसा कहकर रोहिंग्या शरणार्थियों के मामले में सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार ने अपना पक्ष प्रस्तुत किया है। म्यानमार में विस्थापित हुए रोहिंग्या को भारत में आश्रय और मूलभूत सुविधा मिले, ऐसी मांग करने वाली याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गई थी। इसकी सुनवाई में केंद्र सरकार की भूमिका प्रस्तुत करते हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने देश में सभी शरणार्थियों को आश्रय नहीं दिया जा सकता, ऐसा स्पष्ट किया है।

म्यानमार में अंतर्गत संघर्ष की वजह से रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश के मार्ग से भारत में दाखिल हुए हैं। इन शरणार्थियों को मानवतावादी दृष्टिकोण से भारत मे आश्रय दे एवं उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान करें ऐसी मांग मानव अधिकार कार्यकर्ता कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी भारत को इस बारे में आवाहन किया है। पर लाखों की संख्या में आने वाले रोहिंग्या के झुंड भारत के अंतर्गत सुरक्षा को खतरा निर्माण कर रहे हैं, ऐसा केंद्र सरकार का दावा है। तथा रोहिंग्या शरणार्थियों के आतंकवादी संगठन से संबंध होने के कुछ मामले सामने आए थे। इस का दाखिला देखकर केंद्र सरकार इन शरणार्थियों की संख्या को अपने मातृभूमि भेजने की तैयारी कर रहे हैं।

ऐसी परिस्थिति में सर्वोच्च न्यायालय में रोहिंग्या को भारत में ही आश्रय मिले एवं उन्हें सीमा पर नहीं रोका जाए, ऐसी मांग करने वाली याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गई थी। तथा क्ई रोहिंग्या शरणार्थियों ने भी इस बारे में याचिका दाखिल की थी। उसके सुनवाई के दौरान बुधवार को एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र सरकार की भूमिका प्रस्तुत की है। ‘भारत को शरणार्थियों की अंतरराष्ट्रीय राजधानी नहीं बनाई जा सकती’, ऐसा कहकर मेहता ने इस संदर्भ में सरकार की भूमिका स्पष्ट रूप से प्रस्तुत की है। भारत ने सभी शरणार्थियों को आश्रय देने के लिए अगर सोचा तो देश में शरणार्थियों की बाढ़ आएगी और उसे रोकना असंभव होगा, इस पर मेहता ने न्यायालय का ध्यान केंद्रित किया है।

रोहिंग्या शरणार्थियों को उनके मातृभूमि भेजने के लिए भारत सरकार प्रयत्न कर रहा है, ऐसी गवाही भी मेहता ने उस समय दी है। यह प्रश्न केंद्र सरकार के अंतर्गत है और उसमे न्यायालय हस्तक्षेप न करें, ऐसी विनती तुषार मेहता ने उस समय की है।

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