८० प्रतिशत से भी अधिक शरणार्थी कभी भी स्वदेश नहीं लौटतें – ‘ग्लोबल रिफ्युजी फोरम’ की पृष्ठभूमि पर अमरिकी अभ्यासगुट का रपट

तृतीय महायुद्ध, परमाणु सज्ज, रशिया, ब्रिटन, प्रत्युत्तरवॉशिंग्टन/जेनीवा: युद्ध, अंदरुनि संघर्ष, दमन, अत्याचार, नैसर्गिक आपत्ति जैसे कई कारणों से अपना देश छोडकर दुसरे देश में प्रवेश करनेवाले अधिकांश शरणार्थी दुबारा स्वदेश कभी भी नही लौटते है, यह रपट अमरिकी अभ्यासगुट ने रखा है| यूरोप के जेनीवा शहर में संयुक्त राष्ट्रसंघकी पहल से शरणार्थियों के मुद्दे पर विशेष परिषद का आयोजन हो रहा है, तभी अमरिकी अभ्यासगुट ने यह रपट रखी है|

पिछले कुछ वर्षों में अमरिका और यूरोप से एशिया, ऑस्ट्रेलिया जैसे सभी हिस्सों में शरणार्थियों का मुद्दा कफी गंभीर हो रहा है| खाडी देश एवं अफ्रीकी महाद्विप से अमरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया जानेवाले शरणार्थियों के झुंडों की वजह से इन क्षेत्रों में हिंसा, अपराध एवं सामाजिक मुल्यों में गिरावट होने जैसी कई समस्या उभरती दिखाई दे रही है| इस वजह से इन देशों में शरणार्थियों के विरोध में तीव्र असंतोष बना है और शरणार्थियों को हो रहा विरोध में बढने लगा है|

इस वजह से अमरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ कई यूरोपिय देशों में शरणार्थियों के झुंड यह सियासी एवं सामाजिक मुद्दा बना है| पिछले कुछ वर्षों में हुए चुनावों में इस मुद्दे का बडा प्रभाव बनता स्पष्ट तौर पर दिखाई दिया है| शरणार्थियों के गुट स्थानिय मुल्य एवं संस्कृति का स्वीकार करने के लिए तैयार नही है और उल्टा अपनी समस्याओं का ढिंढोरा पीटकर संबंधित देशों से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने की कोशिश करते है, यह आरोप स्थानिय लोग रख रहे है| जनमत के दबाव में अलग अलग देशों की सरकार ने शरणार्थियों के विरोध में आक्रामकता दिखानी शुरू की है|

दुनिया के प्रमुख देशों से शरणार्थियों के विरोध में अपनाई जा रही भूमिका शरणार्थियों के मुद्दे पर काम कर रही अंतरराष्ट्रीय संगठनों को चुनौती देनेवाली साबित हुई है| इस वजह से इस मुद्दे पर एक होकर हल निकालने के लिए संयुक्त राष्ट्रसंघ ने पहली बार ग्लोबल रिफ्युजी फोरमजैसी अंतरराष्ट्रीय परिषद का आयोजन किया है| जेनीवा में हो रही इस परिषद में अलग अलग देशों के राष्ट्रप्रमुखों के साथ अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी गुटों के दो हजार से भी अधिक प्रतिनिधि उपस्थित है| सोमवार से शुरू हुई इस परीषद में यह भूमिका रखी जा रही थी तभी जागतिक स्तर पर कहे जा रहे यह शरणार्थी अब शरणार्थीनही रहे है, बल्कि सीधे दुसरें देश की नागरिकता प्राप्त करके उसी देश में बसने को प्राथमिकता दे रहे है, यह बात भी सामने आ रही है| अमरिकी संस्थागैलपने किए सर्वे में ९० प्रतिशत से भी अधिक शरणार्थी अपने स्वदेश लौटने के लिए उत्सुक ना होने की बात स्पष्ट हुई है| ७७ प्रतिशत शरणार्थियों ने वह जीस देश में पहुंचे है उसी देश में बसने इच्छा व्यक्त की है| अन्य १६ प्रतिशत शरणार्थी स्वदेश लौटने के बजाए किसी अन्य देश में जाकर बसने पर जोर देने की इच्छा व्यक्त करते देखे गए है|

स्वदेश लौटने की इच्छा ना रखनेवाले या ना लौटनेवाले शरणार्थियों में चीन समेत इराक, ईरान, पाकिस्तान, उझबेकिस्तान, कांगो एवं पैलेस्टाईन के नागरिकों का समावेश है| यूरोप के ग्रीस, पोलैंड, सर्बिया, युक्रैन जैसे देशों के लोगों ने भी तौर शरणार्थी दुसरे देश में पहुंचने पर वापिस स्वदेश लौटने में ज्यादा रुचि ना होने की बात दर्ज की है|

जिन देशों में भीषण अंदरुनि संघर्ष जारी है ऐसे देशों से शरणार्थी यूरोपिय देशों की ओर दौड लगाने का चित्र दिखाई दे रहा है| पर, इन शरणार्थियों को उनके पडोसी देश भी स्वीकारने के लिए तैयार नही है, उन्हें यूरोपिय देशों ने क्यों स्वीकारना है? यह सवाल इस दौरान पुछा जा रहा है| साथ ही गृहयुद्ध शुरू नही है, फिर भी आर्थिक समस्या के कारण कई देशों के लोग धनिक देशों में बतौर शरणार्ती प्रवेश कर रहे है| इस वजह से शरणार्थियों के मुद्दे पर यूरोपिय देशों की राजनीति में उथलपुथल शुरू हुई दिखाई दे रही है| शरणार्थियों के मुद्दे पर जनता के पक्ष में देशहित का पुरस्कार कर रहे दक्षिणी विचारधारा के नेता एवं दलों को यूरोपिय देशों में काफी समर्थन प्राप्त हो रहा है| ब्रिटेन में हाल ही में हुए चुनाव के दौरान भी इस समर्थन की छबी देखी गई|

तुर्की से यूरोप पहुंच रहे शरणार्थियों की संख्या दोगुनी हुई यूरोपिय महासंघ का रपट

बर्लिन: पिछले वर्ष से तुर्की से यूरोप पहुंच रहे शरणार्थियों की संख्या दोगुनी हुई है| वर्ष २०१८ की तुलना में इस वर्ष ७० हजार शरणार्थी तुर्की के रास्ते यूरोप में प्रवेश किया है| यूरोपिय महासंघ के गोपनीय रपट में यह जानकारी दर्ज होने की बात जर्मनी के डाय वेल्टइस समाचार पत्र ने कही है|

७० हजार में से ६८ हजार शरणार्थी ग्रीस पहुंचे है और उनके लिए अब वहां पर बने शरणार्थी शिविर भी पर्याप्त ना होने की बात सामने आ रही है| ऐसे में अन्य दो हजार शरणार्थी बल्गेरिया, इटली और सायप्रस पहुंचे है|

कुल शरणार्थियों में अफगानिस्तान से पहुंचे शरणार्थियों की संख्या ३० प्रतिशत है और इसके बाद सीरिया और पाकिस्तानी शरणार्थियों की संख्या ज्यादा होने की बात यूरोपिय महासंघ के रपट ने स्पष्ट की है| इतनी बडी संख्या में शरणार्थियों को भेजकर तुर्की ने यूरोपिय महासंघ के साथ किए समझौते का उल्लंघन किया है, यह शिकायत महासंघ के कुछ सदस्य देश कर रहे है|

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