टेलीपोर्टेशन

कई वर्षों पूर्व ‘स्टार ट्रेक’ यह एक अमरीकी टी.वी. धारवाहिक बहुत ही मशहूर हुआ था। भारत में भी दूरदर्शन पर यह धारावाहिक अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था। भारत में भी दूरदर्शन पर इस धारावाहिक का प्रसारण किया जाता था और उसे देख भारतीय प्रेक्षक हैरान हो उठते थे। क्योंकि ‘स्टार ट्रेक’ में अद्भुत वैज्ञानिक चमत्कार देखने को मिलते थे। इसमें से ही एक था ‘टेलिपोर्टेशन’। कुछ लोग एक अंतरिक्षयान के दालान में जाकर खड़े हो जाते थे और उस दालान के यंत्र के शुरु होते ही देखते ही देखते वे लोग गायब हो जाते थे और किसी दूसरे ही स्थान पर प्रकट होते थे। संक्षेप में देखा जाये तो ये लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर ‘टेलिपोर्ट’ होते थे। जिन्होंने यह धारावाहिक देखा है, उन्हें आज भी इस बात की हैरानी होती होगी और बहुत मजा भी आता होगा। लेकिन क्या हमने कभी सोचा भी है कि एक वैज्ञानिक कल्पना लगने वाली यह बात भी हक़ीकत में हो सकती है?

‘टेलिपोर्टेशन’

पिछले भाग में कहेनुसार डॉ. निकोल टेसला के बारे में सचमुच इस प्रकार की अचम्भे में डाल देनेवाली घटनायें घटी थीं। लेकिन उनमें से कुछ बातों के बारे में डॉ.टेसला ने पूर्ण रूप में रहस्य बनाये रखा, साथ ही कोई भी पेटंट भी लेना टाल दिया था। डॉ.टेसला ने इलेक्ट्रिसिटी की सहायता से ‘स्पेसटाईम बेंडिंग’ (Spacetime Bending) जैसे अद्भुत शोध करने के बारे में कहा जाता है। इसी शोध से आगे और भी एक अनोखे शोध की निर्मिति हुई और वह है ‘टेलिपोर्टेशन’।

अँड्रयू बसिएगो (Andrew Basiago), अल्फ्रेड बिलेक (Alfred Bielek) इनके समान कॉन्स्पिरसी थिअरी प्रस्तुत करने वाले अध्ययनकर्ता, विविध वेबसाईट्स उसी प्रकार कुछ चित्रपटों द्वारा इस तरह प्रस्तुत किया जाता है कि, डॉ.टेसला के संशोधन पर आधारित तंत्रज्ञान का उपयोग करके, अमरीका के नौसेना की ओर से के अत्यन्त महत्त्वकांक्षी प्रकल्प प्रस्तुत किया गया। इस प्रकल्प का नाम था, ‘फ़िलेडैल्फ़िया प्रोजेक्ट’ (Philadelphia Project) अथवा ‘प्रोजेक्ट रेन्बो’ (Project Rainbow)।

ऐसा कहा जाता है कि ‘द  फ़िलेडैल्फ़िया प्रोजेक्ट’ अर्थात अदृश्य हो सकने वाले एवं रडार्स की गति नहीं पकड़ सकने वाले, इस तरह के जहाज तैयार करने का प्रयत्न था। वहीं कुछ अध्ययनकर्ताओं का दावा इसकी अपेक्षा बिलकुल भिन्न ही है। द्वितीय महायुद्ध के दौरान युद्ध नौका टेलिपोर्ट करके उनका स्थान बदलने की कोशिश इस प्रयोग के द्वारा की जाती थी, ऐसा इन अध्ययनकर्ताओं का कहना है।

डॉ.निकोल टेसलाकी ‘द फ़िलेडैल्फ़िया प्रोजेक्ट’ के संचालक के रूप में नियुक्ति की गई थी। इस प्रयोग के परीक्षण के लिए डॉ.टेसला ने हर संभव सहायता करने की तैयारी रखी थी। डॉ.टेसला को इस प्रयोग के लिए नौसेना की एक खाली युद्धनौका की ज़रूरत थी। इस युद्धनौका को अदृश्य करने का प्रथम परीक्षण १९४०  में पूरा हुआ और वह पूर्णरूप में यशस्वी होने के बारे में जाहीर किया गया था। ध्यान रहे, ७५ वर्षों पूर्व डॉ.टेसला ने अपने संशोधन द्वारा नौसेना की एक खाली युद्धनौका नज़र नहीं आयेगी, इस तरीके से अदृश्य करके दिखलाया था।

इस प्रयोग के दौरान, युद्धनौका के आगे और पिछे दो बड़े टेसला कॉईल्स रखे गए। ये कॉईल्स विशिष्ट पद्धति से शुरु किए गए; उनका विद्युत्-चुंबकीय जोर इतना सामर्थ्यशील था कि इससे गुरुत्वाकर्षण अथवा स्पेसटाईम बेंड कर दिए गए थे। इससे पूरे का पूरा जहाज अदृश्य हो गया अथवा उस स्थान से दूसरे स्थान पर टेलिपोर्ट हो गया।

मात्र डॉ.टेसला को  इस बात का एहसास हो गया था कि यह प्रयोग मानवजाति के लिए काफी  हद तक खतरनाक साबित हो सकता है। उन्हें इस प्रयोग के सुरक्षा के प्रति शंका होने लगी और अपने इस प्रयोग में उप्तन्न होनेवाले धोखे को स्पष्ट करने के लिए एक अनोखे मार्ग का अवलंबन किया।

डॉ.निकोल टेसला द्वारा अनेक अंतरिक्ष के अन्तर्गत आने वाले परग्रहावासियों के संपर्क में होने का दावा करने के बारे में हम पहले देख चुके हैं। डॉ.टेसला ने कहा है कि, टेलिपोर्टेशन अथवा ‘इन्व्हिसिबिलिटी एक्सपरिमेन्ट’ शुरु रहने पर यदि मानव युद्ध नौका में होंगे तो उनके लिए बहुत बड़ा धोखा निर्माण हो सकता है।

प्रयोग के दौरान बहुत बड़े प्रमाण में विद्युतचुंबकीय उर्जा का उत्सर्जन होने के कारण उसका मानव शरीर पर विपरीत परिणाम हो सकता है। इससे जान को खतरा भी हो सकता है। मानव युद्धनौका में होंगे तो उनके लिए बहुत बड़ा धोखा निर्माण हो सकता है।

प्रयोग के दौरान बहुत बड़े प्रमाण में विद्युत चुंबकीय उर्जा का उत्सर्जन होने के कारण उसका मानव शरीर पर विपरीत परिणाम हो सकता है। इससे जान को खतरा भी हो सकता है। मानव युद्धनौका में रहने पर, यह प्रयोग धोखादायक साबित होगा, ऐसा परग्रहवासियों का मानना था। यह डॉ.टेसला ने इस बार कहा था। डॉ.टेसला ने अमेरिकी नौसेना को लेकर युद्ध नौका पर लोगों को लेकर यह प्रयोग नहीं करना चाहिए इसके लिए बहुत कोशिश की। मात्र डॉ.टेसला के इस माँग को अमरिकी नौसेना ने साफ़   मना कर दिया। नौसेना ने कहा की, किसी भी परिस्थिती में प्रयोग आगे चलता रहेगा और उन्हें इसका परिणाम भी जल्द ही चाहिए। नौदल की ओर से इस तरह का प्रतिसाद मिलने पर डॉ.टेसला ने आगे के प्रयोग के लिए पहले से जोरदार रूप में अपना काम आरंभ कर दिया। उन्होंने प्रयोग में उपयोग में लाये जाने वाले उपकरणों को ‘डी-टयून’ कर दिया। इससे परीक्षण के दौरान वे उपकरण ठीक से चले ही नहीं और दूसरा परीक्षण असफल साबित हुआ। इसके पश्‍चात् मार्च १९४२  में डॉ.टेसला ने अपने पद से राजीनामा दे दिया और अपने इस प्रयोग के असफलता का जिम्मेदार अपने आप को बताया।

यह प्रयोग डॉ.निकोल टेसला के ‘यूनिङ्गाईड ङ्गिल्ड थिअरी’ इस सिद्धांत पर आधारित था ऐसा कहा जाता है । डॉ.टेसला ने अपने मृत्यु से पूर्व १९४३ में ‘यूनिफाइड फील्ड थिअरी’ पूरी की थी। मात्र इस सिद्धांत को कभी भी प्रकाशित नहीं किया गया। कॉन्सिपरसी थिअरी प्रस्तुत करने वाले अभ्यासकों का दावा है कि, डॉ.टेसला के मृत्यु पश्‍चात् ‘एफबीआय’ ने उनके संशोधन से संबंधित सारे कागज़ाद अपने ताबे में ले लिये थे। डॉ.टेसला के मृत्यु पश्‍चात् बस कुछ महीनों पश्‍चात् अमरिकी नौसेना ने इस प्रयोग को पुन: आरंभ किया।

अक्तूबर १९४३ में टेलीपोर्टेशन का परीक्षण शुरू रहने वाले ‘यूएसएस एल्ड्रिज’ (USS Eldridge) फ़िलेडैल्फ़िया के उपसागर में छोड़ी गई। इस युद्ध नौका पर अनेक खलासी थे। उनमें से बहुतों को आगे चलकर क्या होने वाला है, इस बात का एहसास भी नहीं था। लेकिन इस प्रयोग के बारे में जानकारी रखनेवाले सभी लोग सभी बातों को अच्छी तरह से दर्ज कर रहे थे। इस प्रयोग का  क्या परिणाम निकलता है इसके प्रति इस प्रयोग से संबंधित सभी लोग बड़ी बेसबरी से इंतजार कर रहे थे।

परीक्षण आरंभ हुआ और दोनों तरफ के टेसला कॉईल्स पूर्ण रूप में चार्ज हो गए तथा संपूर्ण युद्ध नौका के चारों ओर अत्यन्त प्रभावशाली विद्युत चुंबकीय क्षेत्र तैयार होने लगा। युद्धनौका के चारों ओर लगभग १०० यार्ड तक इस विद्युतचुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव बढ़ गया। जहाज के चारों ओर हरे रंग का धुँआ निर्माण हो गया। युद्धनौका का निरीक्षण करनेवालों को जबरदस्त धक्का देते हुए कुछ ही क्षणों में संपूर्ण युद्धनौका रडार पर से ही नहीं बल्कि, नजरों से भी ओझल हो गई।

‘यूएसएस एल्ड्रिज’ के  फ़िलेडैल्फ़िया के निरीक्षकों के ही नजरों से ओझल नहीं हुई थी बल्कि वह  फ़िलेडैल्फ़िया के उपसागर से ही गायब हो चुकी थी। यह युद्धनौका क्षणभर में ही टेलीपोर्ट होकर फ़िलेडैल्फ़िया से सैकड़ो मील दूर होने वाले व्हर्जिनिया के नोरफ़ॉल्क के उपसागर में प्रकट हुई। मात्र कुछ मिनिटों पश्‍चात् यह युद्धनौका नोरफ़ॉल्क से अदृश्य होकर पुन: एक बार  फ़िलेडैल्फ़िया में प्रकट हुई।

नौसेना के लिए यह प्रयोग उनके कल्पना से परे प्रचंड रूप में यशस्वी हुआ था। युद्धनौका केवल रडार पर से ही नहीं बल्कि मानवी दृष्टी से भी दूर करने में एवं सैकड़ो मील पर टेलीपोर्ट करने में नौसेना को यश प्राप्त हुआ था। ये सब कुछ बस कुछ मिनिटों में ही घटित हुआ था। परन्तु इसके पश्‍चात् ‘यूएसएसएल्ड्रिज’ के टेलीपोर्टेशन के प्रयोग के कारण उसमें होनेवाले खलाशों पर होने वाला भयावह परिणाम धीरे-धीरे सामने आने लगे।

इसी परीक्षण के दौरान पूरी युद्धनौका आस पास के वातावरण से टेलीपोर्ट हो जाने के कारण ही वह क्षणभर में फ़िलेडैल्फ़िया से नोरफ़ॉल्क तक प्रवास कर सकी थी। परन्तु इस टेलीपोर्टेशन के खलाशों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा था। प्रयोग के दौरान कुछ खलाशों को उस जहाज के धातुओं की दीवारों में से आर-पार चल सकते थे ऐसा प्रतित हुआ। इस प्रयोग के पूरा हो जाने पर कुछ खलाशी युद्धनौका के धातुओं के   ढाँचे में ही घुसकर बैठे दिखायी दिए। प्रयोग के पश्‍चात् कुछ प्रवासी लापता हो गए तो कुछ लोग कुछ समय तक अदृश्य हो गए थे, ऐसा दावा किया जाता है। तो कुछ लोगों को इस प्रयोग के पश्‍चात् काफी  हद तक पागलपन का दौरा पड़ गया था, ऐसा कहा जाता है। ऐसा भयावह परिणाम देख अमरिकी नौसेना ने रडार एवं ऑप्टिकल इन्व्हिजिबिलिटी पर होने वाले संशोधन पर रोक लगा दिया और  फ़िलेडैल्फ़िया प्रोजेक्ट बंद कर दिया।

१९४२  में डॉ. निकोल टेसला ८७  वर्ष के थे। मानवजाति के प्रगति के लिए और विज्ञान के उचित उपयोग के लिए जीवन भर संघर्षरत रहनेवाले डॉ. टेसला ने इस उम्र में भी अमरिकी नौसेना को इनकार कर देने का धैर्य दिखाया और अपने नैतिक मूल्यों एवं परमेश्‍वरी तत्त्वों के साथ समझौता करने से साफ़   मना कर दिया। यह उदाहरण ही उनकी मूल्यनिष्ठा स्पष्ट करनेवाली साबित होती है। वे अकेले ही विज्ञान एवं यांत्रिक ज्ञान का गलत इस्तेमाल किये जाने के खिलाफ लड़ते रहे। दर असल वे कभी भी अकेले नहीं थे, क्योंकि उनके परमेश्‍वर सदैव उनके साथ होते ही हैं, ऐसा डॉ.टेसला का दृढ़ विश्‍वास था।

(क्रमश:)

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