डॉ. टेसला की आकाश उडान

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‘‘सेंच्युरी मॅग्जिन के जून १९०० में प्रकाशित हुए एक निवेदन में, मैंने इस से संबंधित जानकारी पहले ही दे दी है। इसके साथ ही मेरे पेटंट्स एवं अन्य यांत्रिक लेखों के द्वारा, ट्रान्समिटेड पॉवर की सहायता से विमान उडाने के संदर्भ में उपयोग लायी गई पद्धति, उपकरण तथा प्रयोगों की जानकारी दी गई है।’’ इसका अर्थ यह होता है कि राईट बंधुओं के द्वारा विमान उड़ाने से भी आठ वर्ष पहले ही डॉ. टेसला ने उडान करनेवाले विमान बनाकर उनका यशस्वी रूप में परीक्षण किया था।

आसमान में उड्डान करने का स्वप्न मानव कितने ही वर्षों से देख रहा था। परन्तु इस स्वप्न को साकार किया ‘राईट बंधुओं के द्वारा, विमान विकसित किए जाने पर ही’, इस बात को इतिहास हमें बताता है। परन्तु राईट बंधुओं की यह उडान ही मनुष्य द्वारा आकाश में ली जानेवाली यह प्रथम उडान थी क्या? अथवा किसी और ने उससे पहले ही इस प्रकार की उड़ान भरने में सफलता  प्राप्त की थी?

डॉ.निकोल टेसला ने, टेलीफोन  की खोज करनेवाले प्रोफेसर  अलेक्झेंडार ग्रॅहम बेल के वायरलेस पॉवर की सहायता से ‘एरिअल व्हेसल’ उड्डान भरने के संदर्भ में किये गए प्रयोग का प्रतिसाद देते समय, ४ सितम्बर १९०६  के दिन ‘न्यूयार्क सन’ इस समाचार पत्र में एक लेख लिखा गया था। इस पत्र में डॉ.टेसला ने लिखा था कि, ‘‘सेंच्युरी मैगेझिन में जून १९०० में प्रसिद्धि प्राप्त करनेवाले एक लेख में (निवेदन में) मैंने इससे संबंधित जानकारी पहले ही दे दी है। इसके साथ ही मेरे पेटंट्स एवं अन्य यांत्रिक लेखों द्वारा, ट्रान्समिटेट पॉवर की सहायता से विमान उड़ाने के संदर्भ में उपयोग में लायी गई पद्धति, उपकरण, और प्रयोगों की जानकारी दी गई है।’’ इसका अर्थ यह है कि राईट बंधू के विमान उड़ाने के आठ वर्ष पहले ही डॉ.टेसला ने उड्डान करनेवाले विमान तैयार करके उसका यशस्वी परिक्षण किया था।

राईट बंधू द्वारा विकसित किए गए विमान ने उड्डान किया और इसके पश्‍चात् दुनियाभर में हवाई प्रवास आरंभ हुआ। परन्तु वैमानिक यात्रा पूर्णरूप में सुरक्षित नहीं हुई थी। उसके सामने अनेक चुनौतियाँ थीं। वे है चक्रवाद तूफान , बिजली गिरना, वातावरण में कम दबाव की पट्टियाँ तैयार होना, इस तरह के अनेक नैसर्गिक आवाहन विमानयात्रा करनेवाले यात्रियों की असुरक्षितता बढ़ाते रहते हैं। मात्र डॉ.टेसला आदर्शवादी संशोधक थे। मानवीय जीवन को धोखा हो सकता है, इस प्रकार की किसी भी चीजों पर अपने संशोधन द्वारा मात करना यह उनका ध्येय था। मनुष्य को नैसर्गिक किसी भी आपदाओं का मुकाबला करते हुए, कभी भी, कही भी किसी तोप-गोलियों की रफ्तार एवं अचूकता रखनेवाले विमान से प्रवास करना चाहिए ऐसी डॉ.टेसला की अपेक्षा थी। अपने जीवन में लगभग २५   वर्ष डॉ.टेसलाने अपने सामने यही ध्येय रखा था। उनके द्वारा तैयार किए जाने वाले मोटरों के पिछे होनेवाला तत्त्व विमान उड्डान के संदर्भ में आनेवाली सारी अड़चनों को दूरकर देगा, ऐसा उनका विश्‍वास था। उनका यह संशोधन अन्य क्षेत्रों के लिए भी प्रेरणादायी साबित हो सकता है, ऐसा भी उन्हें लगता था। यह शोध था ‘टेसला टबार्र्इन’ का, आजकल के विमानों में उपयोग में लाये जाने वाले आधुनिक गैस टर्बाइन उनके ही ‘टेसला टर्बाइन’ पर आधारित है।

डॉ.निकोल टेसला ने इस ‘टेसला टर्बाइन’ को अपने ‘फ्लाईंग मशीन’ के लिए उपयोग करने का निश्‍चय किया था। १५ अक्तूबर १९११  के दिन ‘न्यूयार्क हेराल्ड’ को दिए गए मुलाकात म डॉ.टेसला ने स्पष्ट किया था कि, ‘‘मेरी ‘फ्लाईंग मशीन’ यह भविष्य में ‘फ्लाईंग मशीन’ के नाम से पहचानी जायेगी। यह हवा की अपेक्षा अधिक वजनदार होगी, परन्तु वह ‘ऐरोप्लेन’ मात्र बिलकुल नहीं होगी। उसके पास पंख नहीं होगा, वह काफी मज़बूत एवं स्थिर होगी। उन्हें पंख अथवा प्रॉपेलर्स नहीं होंगे। वह जब जमीन पर खड़ी होगी, तब ऐसा नहीं लगेगा कि ‘फ्लाईंग मशीन’ खड़ी है, पर फिर भी वह हवा में किसी भी दिशा में, किसी भी हवामान में सुरक्षित रूप में एवं पूर्ण वेग के साथ सहज प्रवास कर सकेगी। हवा का जोर कितना भी और कैसा भी क्यों न हो, तब भी ये फ्लाईंग मशीन हवा में स्थिर रह सकेगी। उसका उड्डान ‘पॉझिटिव्ह मैकनिकल अ‍ॅक्शन’ पर निर्भर करेगा। मेरे एयरशीप में पंख प्रॉपेलर्स अथवा गैस बॅग्ज नहीं होगा। यह ‘फ्लाईंग मशीन’ बरसों से चले आ रहे मेरे अथक परिश्रम एवं संशोधन का फल है परन्तु मैं इसके बारे मैं बहुत कुछ नहीं कहूँगा। मेरा एअरशीप कैसा भी है, फिर भी उसका इंजन इस वक्त बिलकुल तैयार है और वह इस तरह का कुछ काम कर सकता है, जो अब तक किसी भी इंजनने नहीं किया होगा।’’ डॉ.टेसला द्वारा उल्लेखित इंजन जमीन से उर्जा प्राप्त कर उड्डान करने वाला तथा घंटेभर में ही कुल हजार की गति के साथ प्रवास करने में सक्षम था। इस प्रकार का विमान यह हवाई प्रवास के लिए पूर्णरूप में सुरक्षित एवं हवाई प्रवास की जोखिम की स्थिति शून्य पर लाकर पटक देने की ताकत रखता था।

डॉ.टेसला की यह ‘फ्लाईंग मशीन’ प्रत्यक्षरूप में उडते समय देखने वाले अनेक लोग हैं जो इसके बारे में अब भी चर्चा करते हैं। एक स्थानिक कृषक के बच्चे ने यह दावा भी किया था कि उसके पिता ने यह सब कुछ डॉ.टेसला के कोलोरॅडो स्प्रिंग्ज के प्रयोगशाला में देखा था। इन घटनाओं की सच्चाई की जाँच-पड़ताल करके देखना कठिन है फिर भी डॉ.टेसला के समान सच्चा एकनिष्ठ एवं विज्ञाननिष्ठ व्यक्ति सिद्ध नहीं किया जा सकता है। इस बात पर हमें गौर करना चाहिए।

१९२८ में डॉ.टेसला को सीधे उडान किया जा सके (व्हीटीओएल एअरक्राफ्ट) इस प्रकार के बायप्लेन के संदर्भ में अपने जीवन का अंतिम पेटंट प्राप्त हुआ था। इसके पश्‍चात् पारंपारिक विमान की तरह उडान भरने हेतु डॉ.टेसला ने अपने ‘एलिव्हेटर डिव्हाईसेस’ में थोड़ बहुत परिवर्तन करके वह कुछ समझ में आ जाये इस प्रकार की रचना की थी। यह विमान एक हजार डॉलर्स की अपेक्षा कम कींमत में बेचा जा सकता है, ऐसी डॉ.टेसला की धारणा थी। यदि ऐसा होता है, तब सहज ही यह विमान सामान्य मनुष्य के बस की बात भी हो सकती थी।

अपने विमान के उड्डान के लिए डॉ.टेसला ने ‘इलेक्ट्रोग्रॅव्हिटिक्स’ के तत्त्वों का उपयोग किया था। इलेक्ट्रोग्रॅव्हेटिक्स अर्थात ऐसे ही किसी विभाग में इलेक्ट्रिक फिल्ड  तैयार करने पर उसी के द्वारा ‘अँन्टी ग्रॅव्हिटी प्रॉपल्शन’ नामक गुरुत्त्वाकर्षण के विरोध में उड्डान करने की प्रक्रिया। अमेरिका के ‘थॉमस टाऊनसेंड ब्राऊन’ के  १९२१ में स्कूली जीवन में ही शुरू किए प्रयोगों में ‘इलेक्ट्रोग्रॅव्हिटिक्स’ का मूल स्वरूप दिखाई देता है। ‘एक्स रे’, ‘व्हॅक्युम क्युब’ की ही तरह होने वाले कुलिज ट्युब पर प्रयोग करते समय इस अनोखे परिणामों का शोध किया था। ट्युब में होनेवाले पॉझिटीव्ह इलेक्ट्रोड को ऊपर रखकर बॅलेन्स स्केल उसके पास ले जाने पर, वह ट्युब की वस्तुमान स्थिति कम हो जाती थी और पॉझिटिव्ह इलेक्ट्रोड नीचली दिशा में घुमाकर रख दिया तब उस ट्युब की वस्तुमान  स्थिति बढ़ी हुई दिखाई देती है। ब्राऊन ने यह प्रयोग अपने कॉलेज के प्राध्यापक को और उसी तरह समाचारपत्रों के कुछ पत्रकारों को भी दिखाया था। ब्राऊन ने उनसे कहा था कि, इलेक्ट्रॉनिक उर्जा का उपयोग करके गुरुत्वाकर्षण पर प्रभाव डालने में उन्हें सफलता  मिली थी। ब्राऊन ने इसका उपयोग करके एक बड़ा ‘हाय व्होल्टाज कॅपसिटर्स’ भी बनाया था।

ऊर्जा पूरा करने पर कॅपसिटर एक तरफ उड़कर, उसमें से छोटे प्रमाण में ‘प्रॉपल्सिव्ह फ़ोर्स’ की निर्मिती हो रही थी। १९२९ में ब्राऊन ने ‘सायन्स अ‍ॅण्ड इन्व्हेंशन’ इस नियतकालिका में ‘हाऊ आय कंट्रोल ग्रॅव्हिटी’ नामक एक लेख भी प्रसिद्ध किया। उसमें उन्होंने अपने द्वारा बनाये गए कॅपसिटर्स गुरुत्त्वाकर्षण के साथ मिलने पर एक गूढ़ शक्ति की निर्मिती करता था इस बात की जानकारी दी थी।

डॉ.निकोल टेसला द्वारा बनाये गए विमान में अनेक टेसला कॉईल्स, उस विमान के बगल वाले भाग में बहुत बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रोस्टॅटिक चार्ज की निर्मिती करती थी। टेसला कॉईल्स एक के बाद एक सक्रिय करने पर प्रचंड सामर्थ्यशाली एवं वेगपूर्वक घुमनेवाला इलेक्ट्रोस्टॅटिक फिल्ड  बन जाता था। उसमें से डॉ.टेसला द्वारा बनायी गई ‘फ्लाईंग मशीन’ के बाह्यभाग में उर्जा का दाब तैयार होता रहता था और उसे जमीन तथा हवा दोनों ओर से विरोध किया जा रहा था। यह तैयार हो चुका इलेक्ट्रोस्टॅटिक फिल्ड  कोई भी पंख, प्रॉपेलर अथवा रोटर की अपेक्षा हवा का अधिक उपयोग करते रहने से डॉ.टेसला का विमान हवा में बड़ी ही सहजता के साथ उड्डान भर सकता था।

इन में से डॉ. टेसला ने अपने विमान के लिए विशेष रूप में किन ‘थिअरीज्’ का उपयोग किया यह जानना मुश्किल है। परन्तु उनके संशोधन एवं कार्यों से एक बात तो सहज सिद्ध होती है कि उन्होंने सहज रूप में उडान करनेवाले सुरक्षित विमान तो ज़रूर विकसित किए थे। इन विमानों को दी गई उर्जा एवं उनके उड़ान का यंत्र अब बनाये गए एवं बिलकुल प्रगत माने जाने वाले विमानों में भी वह दिखाई नहीं देता है। डॉ. निकोल टेसला ने उस संदर्भ में वेस्टिंग हाऊस कंपनी के एक व्यवस्थपक को लिखे पत्र में इस संदर्भ में एक संकेत भी दिया था। ‘मैं यदि किसी दिन, गैस स्टोव्ह जैसे दिखाई देनेवाले एवं उतने वजन वाले तथा ऐसे ही किसी खिड़की के अंदर से आ जा सकने वाले यंत्र में न्यूयार्क से कोलोरॅडो स्प्रिंग्ज में आता दिखाई दूँगा, तब तुम लोग आश्‍चर्यचकित मत होना।’ ऐसा डॉ. टेसला ने कहा था। अपनी पूरी जिन्दगी में इस निष्ठावान संशोधक ने कभी भी निरर्थक बात नहीं की थी, इस बात पर ध्यान दिया जाये तो इस विधान के पीछे संशोधन से सिद्ध होनेवाले वे बहुत महान शास्त्रीय संत थे, यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है।

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