डॉ. टेसला का समर्पण

Dr-Tesla२०१५  की शुरुआत हो चुकी है। इसी दौरान विज्ञान-यांत्रिक ज्ञान की प्रगति अत्यन्त तीव्र गति के साथ हुई है इस बात का अनुभव तो हम करते ही हैं। परन्तु वातावरण से बिजली की निर्मिती और उसका मुफ्त में भार संवाहन करना, बगैर वायर के विद्युत भार संवाहन, मुफ्त में खाद तैयार करना, टेलीपोर्टेशन अर्थात एक स्थान से गायब होकर दूसरे स्थान पर वस्तु आदि को प्रकट करना, व्हर्टिकल टेकाऑफ  अर्थात किसी भी पारंपारिक इंधन के बगैर अत्यन्त सुरक्षित रूप में हवाई सफ़र करनेवाले यान तैयार करना, इन सभी बातों से अब भी हमें ऐसा ही प्रतीत होता है कि ये सभी वैज्ञानिक परिकल्पनाएँ ही होंगी। परन्तु डॉ. टेसला ने साढ़ेसात दशकों पूर्व ही इन सभी साधनों को प्रत्यक्ष रूप में संभव कर दिखलाया था।

फिर भी इस प्रकार के वैज्ञानिक चमत्कार प्रस्तुत करनेवाले तथा ७५० से भी अधिक पेटंट के धनी, अद्वितीय संशोधन कर्ता  के  जीवन से संबंधित जानकारी हमें नहीं होती है। इससे उनका नहीं हमारा दुर्भाग्य साबित होता है कि उनके प्रति विस्तार पूर्वक जानकारी हमारे पास नहीं होती। अपने संशोधन के माध्यम से २० वे एवं २१ वे दशक के वैज्ञानिक प्रगति को एक मजबूत आधार देने वाले डॉ. टेसला के कार्यक्षेत्र के प्रति पूर्णरूपेण जानकारी लोगों के समक्ष प्रस्तुत करना ही इस लेखमाला का उद्देश्य था। लेकिन इस अद्वितीय संशोधनकर्ता की जीवनावली एवं उनका योगदान इतना अधिक विस्तृत है कि उसकी ऊँचाई तक पहुँच पाना सर्वथा असंभव ही नहीं नामुमकीन है।

एक ही विषय से संबंधित गहराई तक संशोधन करने के कारण अथवा एक ही शोध के कारण  जाने-पहचाने जाने वाले ऊनके शास्त्रज्ञ हैं। डॉ.टेसला विज्ञान की शाखाओं से परे ही नहीं बल्कि काल एवं अवकाश के भी परे तक की पहुँच रखने वाले संशोधक थे। यह जानकारी हम इससे पहले के लेखों में हासिल कर चुके हैं। इस प्रकार का संशोधन कार्य डॉ.टेसला से पहले किसी और ने नहीं किया था और ना ही उनके पश्‍चात् इस प्रकार के प्रयोगों के बारे में कही पर भी दर्ज किया गया है।

एक संशोधक का व्यक्तिगत धरातल पर तो क्या कहने परन्तु संस्था अथवा संघटनाओं के धरातल पर भी इतने बड़े पैमाने पर उसकी कार्यक्षमता नहीं हो सकी है, जबकि यह सब डॉ.निकोल टेसला ने अपने ८७ वर्ष के जीवनकाल में कर दिखलाया। यही कारण है कि उनके बारे में ऐसी चर्चाएँ शुरु हो गई थीं और आज भी कुछ लोगों में होती ही रहती हैं कि क्या वे कोई दैवी अवतार थे अथवा वे परग्रवासी थे?

इसी बलबूते वे इस प्रकार का अवर्णनीय कार्य कर सके थे, ऐसा कुछ लोगों का मानना है। परन्तु इस प्रकार से उनके व्यक्तित्त्व के बारे में अनुमान करने की अपेक्षा उनके संशोधनों के प्रति होनेवाली प्रेरणा और ‘उनके संशोधन के संदर्भ में उनका उद्देश्य क्या था’ यह समझना और भी अधिक श्रेयस्कर साबित होगा। इसी के आधार पर हम डॉ.टेसला के जीवन की सच्चाई को भलि-भाँति समझ सकेंगे।

युवावस्था से ही डॉ. टेसला के जीवन में परिश्रम का दौर आरंभ हो चुका था। ऑस्ट्रिया के ‘पॉलिटेक्निक इन्स्टिट्यूट’ एवं ‘प्राग विश्‍वविद्यालय’ में शिक्षा हासिल करते हुए, डॉ.टेसला प्रात: तीन बजे से लेकर रात्रि के ग्यारह बजे तक अथक प्रयास के साथ अपना अध्ययन कार्य करते रहते थे। दिनभर में केवल चार घंटों की नींद बस यही था उनके विश्रांती का समय। रविवार अथवा अन्य छुट्टियों के दिन भी वे बगैर छुट्टी लिए ही अपना अध्ययन कार्य करते रहना यह उनकी आदत थी। ऐसे व्यक्ति को यदि उसके परिश्रम का फल न मिले तो आश्चर्य!

‘पॉलिटेक्निक इन्स्टिट्यूट’ के प्रथम वर्ष में डॉ.टेसला के साथ के विद्यार्थी एक वर्ष में तो नौ विषयों की परीक्षा देते थे। परन्तु डॉ.टेसला एक वर्ष में नौ विषयों की परीक्षा देकर सर्वोत्तम अंक भी प्राप्त करते थे। इस महाविद्यालयके ‘डीन’ ने टेसला के माता-पिता को अभिनंदन भरे पत्र भेजकर उसमें लिखा था कि तुम्हारा बेटा भविष्य में टिमटिमाने वाला एक सितारा हैं, इन शब्दों में टेसला की प्रशंसा की थी।

विद्यार्थी अवस्था में ही टेसला को अथक परिश्रम करने की आदत पड़ गई थी वह समयानुसार बढती ही गई। उनका संशोधन जिस प्रकार के से बढ़ता गया ऐसी अवस्था में वे निरंतर चार घंटे की नींद भी नहीं ले पातें थे। दो घंटे की नींद भी मिल गई तो बस। ८४ घंटे तक अर्थात तीन साढ़े तीन दिन तक लगातार काम करना भी उनके लिए कोई मुश्किल ‘नहीं’ था इतना वे अपने संशोधन में लीन हो गए थे।

अपने इस संशोधन कार्य के प्रति उन्होंने मान-सम्मान धन-संपत्ति आदि की अपेक्षा कभी नहीं की थी और ना ही उसका अपने स्वयं के लिए उपयोग करने का ध्येय ही रखा था। इसीलिए एडिसन की कंपनी से बाहर निकलने पर, डॉ.टेसला ने अपने तत्त्वों के साथ समझौता कर अपार धन-दौलत हासिल करने की अपेक्षा, गड्ढ़े खोदने का काम करके अपना गुजट-बसट किया। इसमें कभी भी उन्होंने शर्मिदंग़ी मेहसूस नहीं की। उनकी नज़रों में कोई भी काम निम्नकोटी का नहीं था। ऐसी स्थिती में भी उन्होंने अपने जीवन के ध्येय को कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया।

इन्हीं परिस्थितियों से उभर कर उन्होंने अपने स्वयं के विश्‍व का निर्माण किया और सफलता  के सर्वोच्च शिखर पर जा पहुँचे। इतना ही नहीं बल्कि प्रयोगशाला के जलकर भस्म हो जाने पर भी, सब कुछ खत्म हो जाने पर भी उनका अपने परमेश्‍वर पर होने वाला अटल विश्‍वास किंचित मात्र भी नहीं डगमगाया। उनका ऐसा मानना था कि जो कुछ भी होता है वह अच्छे के लिए ही होता है, इसमें भी मेरे परमेश्‍वर की ही योजना रही होगी। ऐसा उनका दृढ़ विश्‍वास था और इसी विश्‍वास ने उन्हें आजीवन सामर्थ्यवान बनाये रखा।

डॉ. टेसला के सभी संशोधनों के प्रति होने वाली प्रेरणा अध्यात्मिक ही थी। ‘मानवी मन यह परमेश्‍वर की ओर से भेजी जाने वाली ‘प्रेरणा’ (इंपल्सेस) ग्रहण करने वाला साधन है। मन को परमेश्‍वर सामर्थ्य प्रदान करते हैं, इस सत्य की ओर यदि हम अपना ध्यान केन्द्रित करते हैं तब हम उस परमेश्‍वरी शक्ति के साथ अपने-आप ही जुड़ जाते हैं।’ सारी सच्चाई बायबल में हैं, यह मेरी माँ ने मुझे सीखाया था इस तरह से डॉ.टेसला ने कह रखा है। परमेश्‍वर एवं उनकी सृष्टि के साथ, निस:र्ग के साथ नजदीकियाँ बनाये रखने के लिए डॉ.टेसला ‘लाँग वॉक’ दूर-दूर तक भ्रमण किया करते थे।

निसर्ग (प्रकृति) के साथ संपर्क बनाये रखने के प्रयत्नों से ही उनकी जटिल समस्याओं का समाधान होता था। इसी प्रकार भ्रमण करते समय डॉ.टेसला के मस्तिष्क में जगत्विख्यात ‘अल्टरनेटिंग करंट सिस्टम’ की संकल्पना का जन्म हुआ था। ‘इस कल्पना को स्वीकारने का काम ही मेरी बुद्धि ने किया। वैश्‍विक ऊर्जा का एक केन्द्र है और इसी केन्द्र के माध्यम से ही हमें ज्ञान शक्ति एवं प्रेरणा प्राप्त होती है। मैंने इन केंद्रों के रहस्य को जानने की कोशिश नहीं की परन्तु इस प्रकार के केन्द्र कार्यान्वित हैं, इस बात का मुझे पूरा विश्‍वास हैं।’ ऐसा डॉ.टेसला ने कहा था।

चिंतन-मनन के आधार पर मन ही मन में किसी अत्यन्त उलझी मशीन को तैयार कर लेने का  अद्भुत कौशल्य डॉ.टेसला के पास था। आश्‍चर्य की बात तो यह है कि जो मशीन वे मन ही मन में रेखांकित करते थे प्रत्यक्ष में उसे वे हुबहू तैयार कर दिखाते थे और उसमें किसी भी प्रकार का दोष नहीं होता था। इस बात को उन्होंने लिख कर रखा है यही कारण है कि कुछ लोग उनके बारे में ऐसा दावा करते हैं कि वे ‘परग्रहवासी’ थे।

मशीन मन ही मन में रेखांकित कर उसे प्रत्यक्षरूप में तैयार कर दिखलाना, ऐसी महिमा तो परग्रहवासी ही साध्य कर सकते हैं, ऐसा तर्क उस दावे के प्रति है। परन्तु डॉ.टेसला का अथक परिश्रम सहित किया जाने वाला अध्ययन, निरीक्षण एवं समग्र विचार करने की क्षमता एवं दूरदर्शिता इन सभी गुणों के आधार पर ही वे मन ही मन मशीन की रूपरेखा सहज ही तैयार कर लेते थे और जब वे उसे प्रत्यक्ष में स्वरूप प्रदान करते थे तब वह पूर्णत: दोषरहित होती थी।

अपने इन्हीं गुणों एवं क्षमता के कारण वे समय का अधिक उत्कृष्ट रूप में उपयोग कर पाते थे, साथ ही एक समय पर अनेक क्षेत्रों से संबंधित बहुतांश संशोधन कर उसमें सफलता  प्राप्त कर पाबा भी उनके लिए संभव हो सका था।
अपनी इस क्षमता के कारण उनके लिए अरबों डालर्स लाभ उठा पाना उस समय में भी बिलकुल आसान था। दुनियाभर का सारा मान-सम्मान, एशों-आराम उनके कदम चुमते। परन्तु इन सबके लिए अपने तत्त्वों के साथ, नैतिक मूल्यों के साथ समझौता करना उनके समान महापुरुष के आत्मसम्मान के खिलाफ था।

यही कारण था कि उन्हें उस समय के अनेक क्षेत्रों के सत्ताधारियों का विरोध एवं उनकी चुनौती को स्वीकार करना पड़ा। इसके लिए अपना सर्वस्व दाव पर लगा देने के पिछे डॉ.टेसला के जीवन का एक ही उद्देश्य था। और वह था सर्वसामान्य मानवों का कष्ट कम करते हुए उनके जीवन को अधिकाअधिक सुखी संपन्ना बनाना।

७ जनवरी १९४३ के दिन डॉ. टेसला ने न्यूयॉर्क के होटल न्यूयार्कर के ३३ वी मंजिल के रूम नंबर ३३२७ में अपने जीवन की अंतिम साँस ली। यह सब इस तरह से विस्तार पूर्वक कहने का तात्पर्य यह है कि इस होटल का यह कमरा अब तक उनके स्मरण मे यूँ ही संजोकर रखा गया है।

असंभव प्राय: बातों को भी अपने संशोधन के बल पर संभव कर दिखाने वाले अद्वितीय संशोधन कर्ता अपने समय से कही अधिक आगे थे। बदकिस्मती यह थी कि उनके संशोधन की क्षमता का स्वीकर करने की परिपक्वता शायद उस समय दुनिया के कुछ लोगों में नहीं थी और  ७२ वर्ष के पश्‍चात् भी उनके संशोधन का स्वीकार करने की तैयारी दुनिया में नहीं हो पायी थी, इतना तो हम पूरे विश्‍वास के साथ कह सकते हैं।

मानवी कल्पनाओं की परिसीमा से परे होने वाले अपने इस संशोधन को दुनिया ने स्वीकार नहीं किया, इस बात का डॉ. टेसला को तनिक भी खेद नहीं था। उन्हीं के शब्दों में यदि कहा जाये तो ‘एक सच्चा वैज्ञानिक कभी भी तुरंत ही उसे सफलता  प्राप्त होगी, यह मानकर नहीं चलता है। मेरी इस प्रगत संकल्पना का स्वीकार कोई भी इतनी सहजता से स्वीकार कर लेगा, ऐसी अपेक्षा वह नहीं रखता है। बल्कि भविष्य के प्रति जागरूक भाव से वृक्षारोपण करनेवाले व्यक्ति के समान वह नि:स्वार्थ भाव से अपने काम में जुटा रहता है। आने वाली पीढ़ी के भविष्य की एक मजबूत नींव डालने का कार्य करते रहना यही संशोधनकर्ता का परम कर्तव्य होता है और इसी विश्‍वास के साथ वह निरंतर प्रयासरत रहता है।’

डॉ. निकोल टेसला के द्वारा लिखे गए ये शब्द बिल्कुल वैसे ही कायम रहें। अपने संशोधन के माध्यम से उन्होंने भविष्य का निर्माण किया ही और आज भी यह संशोधनकर्ता अपने कार्य के माध्यम से दुनिया के अधिकांश लोगों को प्रेरणा एवं दिशा प्रदान करता चला आ रहा है।

(समाप्त)

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