वैश्‍विक उर्जा (कॉस्मिक रेज)

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उस समय व्यावसायिक क्षेत्र में कुछ गिनेचुने शक्तिशाली लोगों का रोबदाब होने के कारण डॉ. टेसला के इस यांत्रिक ज्ञान का स्वीकार भी उस समय में नहीं स्वीकारा गया। लेकिन आज के समय में कुछ कंपनियाँ इलेक्ट्रिक पर चलनेवाली अधिक कार्यक्षम गाड़ियाँ बनाने का लक्ष्य सामने रखकर अपनी ओर से कोशिशें कर रही हैं।

अपने जीवनकाल के अंतिम ३०-४० वर्षों की कालावधि में, डॉ.टेसला ‘फ्री  एनर्जी’ अर्थात मुक्त एवं अखंड भार संवाहन कर सकनेवाली ऊर्जा के संकल्पना पर काम करते रहे। अपने इस ध्येय को साध्य करने के लिए वे दिनरात परिश्रम करते रहे। ज़मीन से मिलने वाले इंधन, उनका अनिर्बंध उपयोग एवं उसके दुष्परिणाम का एहसास भी डॉ.टेसला को था। इस इंधन के कारण मानवजाति को क्या कीमत चुकानी पड़ेगी, इस बात की जानकारी होने के कारण ही डॉ.टेसला ऊर्जा के अन्य स्त्रोत भी विकसित करने की कोशिश कर रहे थे।

‘आज रात्रि के समय ‘कॉस्मिक रेज’ (COSMIC RAYS) पृथ्वी के वातावरण में आने वाली हैं। इनसे होने वाले खतरे को टालने के लिए आज रात्रि के समय मोबाईल्स बंद रखना है’, इस प्रकार की सूचनाएँ सोशल मिडिया द्वारा समयानुसार प्रसिद्ध होती रहती हैं। ये कॉस्मिक रेज है क्या? इनका डॉ.टेसला के साथ क्या संबंध था, आज हम इसी विषय पर विचार करेंगे।

डॉ.टेसला ने न्यूयॉर्क के दैनिक पत्रिका के लेख में दावा किया था कि ‘मैंने सूर्य की किरणों से ऊर्जा की निर्मिती करने में यश प्राप्त कर लिया है। इन किरणों का उपयोग करके मैं, प्रकाश एवं उष्णता देने वाली यंत्रणा कार्यरत कर सकता हूँ।’ ऐसा भी उन्होंने इस लेख में कहा था। डॉ.टेसला को इस कल्पना के प्रति पूरा विश्‍वास था कि, ‘इस प्रयोग में अपयश के प्रति कोई संदेह नहीं’ यह बात उन्होंने पूरे आत्मविश्‍वास के साथ कही थी। डॉ.टेसला ने इसके लिए निर्माण किए जाने वाले यंत्रणा का विस्तारपूर्वक वर्णन भी किया था। इसके अनुसार, सूर्य की किरणों को एक स्थान पर केन्द्रीत करके पानी स भरे हुए बॉयलर पर पड़ेगी इस प्रकार व्यवस्था भी की गई थी। इससे प्रचंड दबाव तैयार करनेवाली भाप की निर्मिति होगी। उस भाप के जोर पर टर्बाइन्स चलेंगे और इन टर्बाइन्स में से बिजली की निर्मिति होगी। उसी समय इस भाप को पुन: ठंड़ करके पाई के रुप में बॉयलर में लाया जा सकता है। इस प्रकार की व्यवस्था इस में की गई थी। यह इस प्रकार की बंदीस्त, अनोखी एवं एकसंघ यंत्रणा थी। जिसमें एक ही समय पर बिजली की निर्मिति एवं बिजली का संग्रह करने की क्षमता थी। इसके अलावा यह प्रक्रिया बिना किसी रुकावट के निरंतर इस यंत्रणा द्वारा कार्यरत रह सकती थी। डॉ.टेसला ने बॉयलर के पानी में स्वयं द्वारा विकसित किए गए कुछ रासायनिक पदार्थों का उपयोग किया था। इसीलिए भाप के दबाब को कायम रखना सहज ही संभव हो गया था और इसके साथ-साथ उनका पूरा प्रयोग भी सुचारू ढ़ंग से पूरा हो चुका था।

इसके अलावा डॉ.टेसला ने समयचक्र से आगे बढ़कर उपयोग में लाये जा सकने वाले यंत्रों की जानकारी भी दी थी। पृथ्वी के नीचली सतह से लेकर बिलकुल पृष्ठभाग तक तापमान में बहुत बड़ा अंतर होता है। इस तापमान के अंतर से भी बिजली की निर्मिती की जा सकती है, ऐसा दावा भी डॉ.टेसला ने किया था।

केवल ज़मीन के विविध स्तरों पर होने वाले तापमान के अंतर द्वारा ही नहीं, बल्कि सागरी पृष्ठभाग एवं उसके नीचली सतह के तापमान के अंतर का उपयोग करके भी बिजली की निर्मिती की जा सकती है, ऐसा डॉ.टेसला का मानना था। सागर के विविध स्तरों के तापमान में होनेवाले अंतर के जोर पर चलने वाली पानी की जहाज इस बात का जीता-जागता उदाहरण था। डॉ.टेसला ने समुद्र की लहरों से भी उर्जा निर्मिती करने के प्रकल्प में भी कुछ बदलाव लाने का सुझाव दिया था।

डॉ.टेसला का दावा था कि इन सभी उर्जा निर्मिती प्रकल्पों में से तैयार होने वाली बिजली को जमा करके, केबल्स प्रकल्पों में से तैयार होनेवाली बिजली को जमा करके, केबल्स के माध्यम से अथवा वायरलेस पद्धतिद्वारा सीधे कारखानों में अथवा घरों-घरों में पहुँचाया जा सकता है। उर्जा की निर्मिती करने वाले केन्द्र दुनिया भर में फैले  रहेंगे और वे बिजली की निर्मिती करने के साथ-साथ उसे जमा भी कर के रख सकेंगे। ये सारे केन्द्र एक-दूसरे के साथ योग्य प्रकार से जुड़े रहेंगे तथा वर्ष में किसी भी समय आवश्यकतानुसार बिजली का भार संवाहन कर सकेंगे। इस तरह से दुनिया भर में बिजली का अखंड भार संवाहन हमेशा रखा जा सकता है।

अनेक वर्षों के प्रयोंगो के पश्‍चात डॉ.टेसला ने ‘सूर्य से उर्जा के अतिसूक्ष्म कण सतत उत्सर्जित होते रहते हैं और उनमें बहुत बड़े पैमाने में उर्जा होती है’, इस प्रकार का निष्कर्ष प्रस्तुत किया। दिन के समय तो हमें सूर्य प्रकाश मिलता ही है। परंतु रात्रि के समय सीधे सूर्य प्रकाश हमें नहीं मिलता है फिर भी सूर्य की यह उर्जा एवं अतिसूक्ष्म कणों का उत्सर्जन हम तक निरंतर आते ही रहता है और इसे ही डॉ.टेसला ने ‘कॉस्मिक रेज’ (COSMIC RAYS) अर्थात वैश्‍विक किरण, नाम प्रदान किया है।

डॉ.टेसला ने १० जुलाई, १९३२ के दिन अपने इस संशोधन को ‘ब्रुकलिन इगल’ नामक दैनिक प्रत्रिका में प्रकाशित किया। ‘मैंने वैश्‍विक किरणों का उपयोग करके, इसके माध्यम से चलने वाले यंत्र विकसित किए। वैश्‍विक किरणों की खोज यह मेरे लिए प्राणप्रिय घटना साबित हुई है। मुझे अपने शरीर के प्रति जितना अपनापन, प्रेम महसूस होता है, उतना ही अपनापन इस वैश्‍विक किरणों के प्रति भी महसूस होने लगा है।’ इस प्रकार की जानकारी उन्होंने उस दैनिक पत्रिका में दी थी।

ये वैश्‍विक किरण सतत पृथ्वी पर आते जाते रहते हैं और यह बात अत्यन्त विलक्षण (अद्भुत) होने का दावा भी किया था। वायु, सूर्यप्रकाश अथवा समुद्री लहरों से प्राप्त होनेवाली उर्जा को जमा करने की ज़रूरत होती है। पर यदि सतत हम तक प्रवाहित होने वाली इन किरणों का उपयोग करके बिजली की निर्मिती करने वाले ऐसे किसी प्रकल्प का निर्माण यदि किया जाता है, तब हमें बिजली जमा करने की आवश्यकता भी महसूस नहीं होगी, ऐसा डॉ.टेसला का मानना था।

‘लगभग २५  वर्ष पूर्व ही मैंने इन वैश्‍विक किरणों का उपयोग किस तरह से किया जा सकता है,  इस बात पर अपना संशोधन कार्य शुरु किया। और अब मैंने इन किरणों की सहायता स ही यंत्र चलाने में भी सफलता  प्राप्त कर लीहै, यह बात पूरे आत्मविश्‍वास के साथ कह सकता हूँ। इन किरणों का उपयोग करने वाली बड़ी यंत्रणा का निर्माण करने में भी मुझे सफलता  ज़रूर प्राप्त होगी, ऐसी मुझे उम्मीद है। परन्तु आज की परिस्थिती मेरी इस योजना के लिए अनुकूल नहीं है।’ यह भी डॉ.टेसला ने अपने लेख में लिखा है।

इसी लेख में डॉ.टेसला का अगला वक्तव्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ‘अखिल विश्‍व में संचलित करनेवाली वैश्‍विक उर्जा द्वारा दुनिया भर के सारे यंत्र चलाये जा सकते हैं। इस उर्जा का मूल स्रोत सूर्य है और उसकी उर्जा, अमर्यादित रूप में सर्वत्र हमेशा ही उपलब्ध होती है।’

डॉ. टेसला ने इस यांत्रिक ज्ञान का पेटंट ही लिया था। सूर्य उसी प्रकार से वैश्‍विक किरणों की तरह ही तेजस्वी रहने वाले उर्जा का स्रोत; इस नाम से यह पेटंट लिया गया था। लेकिन डॉ.टेसला के अन्य पेटंट के समान ही इस पेटंट की जानकारी भी दुनिया के सामने आने ही नहीं दी गयी।पृथ्वी पर आने वाले सूर्य किरणों का कम मात्रा में भी यदि सुयोग्य उपयोग किया जाता है तब भी संपूर्ण पृथ्वी को लगने वाली उर्जा की ज़रूरत पूरी की जा सकती है, ऐसा दावा भी डॉ.टेसला ने किया था।

वैश्‍विक उर्जा से संबंधित डॉ.टेसला का संशोधन समय से कितना आगे पहुँच चुका था, इस बात का पता हमें आगे दी गई घटना से सहज ही चल जायेगा।

गाड़ियों की तेज़ी से निर्मिति होते समय, ईंधनों का बढ़ता हुआ दर और प्रदूषण इनके कारण बिजली पर चलने वाली मोटर-गाड़ियाँ बनाने की कल्पना अस्तित्व में आ रही थी। लेकिन बैटरी का बड़ा आकार, उसे रिचार्ज करने में आने वाली अड़चने और रफ़्तार को बढाने में आने वाले अवरोध इन कारणों से वह हमारे बस के बाहर की बात थी।

गाड़ियाँ बनानेवाली एक कंपनी ने जॉर्ज वेस्टिंग हाऊस के आर्थिक सहायता के बल पर गॅसोलिन (पेट्रोल, डिज़ल) इंजन पर चलने वाली गाड़ियों में सुधार करके उसी में इलेक्ट्रिक पर चलने वाले इंजन बिठाने का निश्‍चय किया। इसके लिए आर्थिक सहायता करने वाली कंपनियों ने डॉ.टेसला  से मदद लेने का निश्‍चय किया। गॅसोलिन इंजन के स्थान पर ‘हाय पॉवर एसी’ (Alternating Current) ‘इलेक्ट्रिक इंजन’ बिठाया गया। परन्तु इस इंजन को उर्जा का स्त्रोत नहीं दिया गया था।

डॉ.टेसला ने न्यूयॉर्क में जाकर मोटर गाड़ियों का निरीक्षण किया। इसके पश्‍चात् उन्होंने पास ही के एक स्टोर में से कुछ इलेक्ट्रिक उपकरणों को खरीदा। उन्हें जोड़ने के लिए एक बॉक्स भी लिया। इस पोर्टेबल बॉक्स में ही उन्होंने अपनी सर्किट भी लिया। यह सर्किट उन्होंने वहीं पर तैयार किया, इस बात पर हमें गौर करना चाहिए।

इसके पश्‍चात डॉ.टेसला ने उस बॉक्स को गाड़ी के अगली सीट पर रख दिया और उसे मोटर के ‘एसी इंजन’ से जोड़ दिया। इसके पश्‍चात् डॉ.टेसला स्वयं ड्रायविंग सीट पर बैठ गए। ‘मेरे पास अब  मोटर चलाने के लिए लगने वाली उर्जा का इंतजाम हो चुका है।’ ऐसा कहकर उन्होंने गाड़ी गिअर में ड़ाल दी और उन्होंने उस मोटर को चलाकर दिखलाया।

यह गाड़ी प्रति घंटे ९० मील दौड़ने की दूरी तक अर्थात १४५ घंटे किलो मिटर की गति से दौड़ने लगी और उस समय के अन्य पेट्रोल, ड़िजल के इंजन की अपेक्षा इस गाड़ी की कार्यक्षमता अधिक थी, ऐसा कहा जाता है। बिलकुल एव सप्ताह तक इस गाड़ी का परीक्षण चलता रहा।

यह उर्जा आयी कहाँ से ऐसा प्रश्‍न पुछने पर, डॉ.टेसला ने बिलकुल शांतिपूर्वक उत्तर दिया, ‘हमारे आसपास होनेवाली वैश्‍विक उर्जा से!’

मात्र  उस समय व्यावसायिक क्षेत्र में कुछ गिनेचुने शक्तिशाली लोगों का दबदबा होने के कारण डॉ.टेसला के इस यांत्रिक ज्ञान का स्वीकार भी उस समय में नहीं स्वीकारा गया। मात्र आज के समय में कुछ कंपनियाँ इलेक्ट्रिक पर चलनेवाली अधिक कार्यक्षम गाड़ियाँ बनाने का लक्ष्य सामने रखकर अपनी ओर से कोशिशें कर रही हैं।

अपने जीवनकाल के अंतिम ३०-४० वर्षों के कालावधि में, डॉ.टेसला ‘फ्री  एनर्जी’ अर्थात मुक्त एवं अखंड भार संवाहन कर सकनेवाले उर्जा के संकल्पना पर काम करते रहे। अपने इस ध्येय को  साध्य करने के लिए वे दिनरात परिश्रम करते रहे। ज़मीन से मिलने वाले इंधन, उनका अनिर्बंध उपयोग एवं उसके दुष्परिणाम का अहसास भी डॉ.टेसला को था। इस इंधन के कारण मानवजाति को क्या कीमत चुकानी पड़ेगी, इस बात की जानकारी होने के कारण ही डॉ.टेसला ऊर्जा के अन्य स्त्रोत भी विकसित करने की कोशिश कर रहे थे।

उन्होंने बिजली के निर्माण के लिए और उसे संग्रहित करके रखने के लिए निरंतर वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का निर्माण एवं प्रचार किया। ज़मीन में होनेवाले इंधन से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को पारंपारिक ऊर्जा स्रोत कहा जाता है। परन्तु प्रत्यक्ष रूप में ये ऊर्जा के अपारंपारिक स्रोत हैं, ऐसा डॉ.टेसला का मानना था। क्योंकि नैसर्गिक रूप में हमें सूर्यप्रकाश, वायु, समुद्री लहरें और वैश्‍विक उर्जा के स्वरूप में, जो कुछ भी मुक्त रूप में एवं अमर्यादित प्रमाण में मिलता है, वही ऊर्जा का पारंपारिक स्रोत है, यह उनका दृढ़ विश्‍वास था।

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