कोरोना की पृष्ठभूमि पर गरीब देशों को दिए गए कर्ज चीन रद करे – विश्व बैंक की माँग

वॉशिंग्टन/बीजिंग – विश्‍वभर के देशों को सबसे अधिक कर्ज देनेवाला देश, यह पहचान प्राप्त करनेवाले चीन ने कोरोना की महामारी की पृष्ठभूमि पर गरीब देशों को प्रदान किए गए कर्ज रद करे, यह माँग वर्ल्ड बैंक ने की है। अप्रैल में ‘जी-२०’ गुट की बैठक में इस मुद्दे पर सदस्य देशों की सहमति हुई थी। लेकिन, चीन ने सरकारी नियंत्रण के बैंकों को भी निजी वित्तसंस्थाएं बताकर कर्ज माफ करना टाल दिया है। इससे वर्ल्ड बैंक के साथ कुछ सदस्य देशों ने आक्रामक भूमिका अपनाने की बात सामने आ रही है।

कोरोना की महामारी की वजह से विश्‍व के अधिकांश देशों की अर्थव्यवस्थाओं को बड़ा झटका लगा है। प्रमुख देशों ने इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए बड़ी मात्रा में आर्थिक सहायता का ऐलान किया है। लेकिन, विश्‍व दे अमीर देशों की सहायता पर निर्भर रहनेवाले देशों की स्थिति काफ़ी चिंताजनक है। इस पृष्ठभूमि पर अप्रैल महीने में हुई बैठक के दौरान ‘जी-२०’ के देशों ने ‘डेट सर्विस सस्पेन्शन इनिशिएटिव’ (डीएसएसआय) नामक योजना मंजूर की थी। इसके अनुसार मई महीने से २०२० के अन्त तक कर्ज का भुगतान करने से संबंधित जो कुछ बकाया राशी थी उसकी पुनर्ररचना करने का तय हुआ था। इसमें कर्ज मांफ करना, एवं ब्याज चुकाने के लिए अधिक समय प्रदान करने जैसे मुद्दों का समावेश था। अफ्रीकी एवं एशिया के ७७ गरीब देशों का इसमें समावेश किया गया था।

इस दौरान ७७ देशों द्वारा करीबन १२ अरब डॉलर्स का भुगतान किए जाने की उम्मीद है और इसमें से ७० प्रतिशत भुगतान चीन से संबंधित है। इसी कारण चीन ही पहल करके कर्ज का भुगतान माफ करे, यह माँग वर्ल्ड बैंक के प्रमुख डेविड मालपास ने की है। चीन की ओर से कई देशों को कर्ज प्रदान करनेवाली बैंक डीएसएसआय में शामिल नहीं हो रही है, यह आरोप भी उन्होंने किया। चीन की हुकूमत ने कर्ज प्रदान करने के लिए अलग अलग बैंकों का इस्तेमाल किया है और इनमें से कुछ निजी वित्तसंस्था होने की बात दिखाने की कोशिश की है। इस वजह से वर्ल्ड बैंक और कुछ प्रमुख सदस्य देशों ने नाराज़गी व्यक्त की है। इसमें ‘जी-७’ गुट के देशों का समावेश है।

चीन ने इससे पहले ‘बेल्ट ऐण्ड रोड़ इनिशिएटिव’ योजना के तहत कई देशों को कर्ज के शिकंजे में फंसाया है, यह आरोप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे हैं। साथ ही कोरोना की महामारी भी चीन से ही फैलाई गई है, यह विश्‍वास व्यक्त किया जा रहा है। इन बातों की वजह से विश्व स्तर पर चीन के विरोध में काफी असंतोष है। ऐसी स्थिति में चीन ने अफ्रीका और एशियाई महाद्विप के गरीब देशों से कर्ज वसूल करने की भूमिका अपनाई तो चीन के विरोध में बनी भावना अधिक तीव्र होगी और उसकी प्रतिमा मिट्टी में मिल सकती है, यह दावा किया जा रहा है।

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