राइट बंधु

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बचपन में जब मैंने रामायण की कथा सुनी थी तब उन में से मुझे दो चीजों की जिज्ञासा थी। एक तो जटायु की कथा और दूसरे ‘पुष्पक’ विमान की। उस दौर में यह चीजें कैसी दिखती होंगी और कैसे उडती होंगी इस की मुझे हमेशा जिज्ञासा रहती थी। फिर जब मैंने आस्मान में बडे विमान उडते हुए देखे तब भी यही जिज्ञासा हुआ करती थी। जब विमान का इतिहास पढा तो कुछ हद तक वे बातें मेरी समझ में आने लगीं। आज हम हजार-डेड हजार रुपओं में आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक अल्प समय में पहुंच सकते हैं। मगर इस आसान यात्रा के पीछे बहुतों के अथक प्रयास जुडे हुए हैं और उन में से एक हैं ‘विलबर और ऑर्व्हिल’ यह राईट बंधु।

राइट बंधुओं में से विलबर का जन्म १६ अप्रैल १८६७ को अमेरिका के इंडियाना स्थित मिल्व्हिल गांव में हुआ, तो छोटे भाई ऑर्व्हिल का जन्म ऑहायो स्थित डेटन में १९ अगस्त १८७१ को हुआ। बचपन से दोनों भाईयों को विविध यांत्रिक करामातें करने की चाह थी। आरम्भ में उन्होंने एक मुद्रलानय द्वारा ‘वेस्ट साइड न्युज’ नामक अखबार निकाली।

कुछ अरसे बाद उन्होंने खुद सायकल मरम्मत का दुकान शुरु किया। केवल दो-तीन बरसों में ही अपनी नई सायकलें बनाने लगे। सायकल मरम्मत से प्राप्त ज्ञान का उपयोग राइट बंधुओं ने अपने अगले संशोधन के लिए बडे पैमाने पर किया। अखबार के व्यवसाय के दौरान राइट बंधुओं ने नए नए संशोधन संबंधी बातें पढना और उन्हें जमा करके रखने की चाह थी। उन्हीं के आधार पर वे खुद अनेक प्रयोग भी किया करते थे।

उनके प्रयोगों को दिशा मिली सन १८९६ में घटी दो घटनाओं से। पहली घटना थी निरंतर नए नए संशोधनों को स्थान देनेवाले स्मिथसोनियन संघटना के सचिव सैम्युएल लैंगले द्वारा मई में किया हुआ कामयाब प्रयोग। लैंगले ने बाफ की इंजिन की सहायता से बनाए ग्लायडर की ‘मानवरहित’ उडान कामयाब करके विमान के संशोधन करने की नई उम्मीद निर्माण की थी।

तो दूसरी जो घटना थी वह जर्मनी के एक मशहूर संशोधक ओट्टो लिलिएंथल की मृत्यु की। वास्तव में सन १८९६ में ही लिलिएंथल एक कामयाब ग्लायडर के रूप में मशहूर हुए थे। मगर एक बार ग्लायडर की दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। अचानक बढी हुई हवा की वजह से ग्लायडर पर से उनका नियंत्रण छूटना उनकी मृत्यु का कारण बना।

इन दो घटनाओं के बाद राइट बंधुओं ने अपना ध्यान विमान संशोधन की ओर मोडने की ठानी। उन दिनों विश्‍वभर में अनेक संशोधन आकाश में उडान भरने की कोशिश में किए जा रहे थे। राइट बंधुओं ने पहले उन सभी संशोधकों द्वारा किए गए प्रयोगों की जानकारी हासिल की। इस अध्ययन के बाद उन्होंने अपना ध्यान निश्‍चित किया और पहले उडनेवाले पंछियों का अध्ययन करने लगे। उनका यही अध्ययन अन्य संशोधकों से भिन्न साबित हुआ। विमानसंबंधी संशोधन करनेवाले सारे संशोधकों का झुकाव था अधिक से अधिक सामर्थ्यशाली इंजिन बनाकर ऊंची उडान भरने की ओर। मगर राइट बंधुओं ने अपना ध्यान केंद्रित किया विमान के नियंत्रण पर और अगले तीन सालों में वे अपने संशोधन में कामयाब भी हुए।

सितम्बर १९०० में राइट बंधुओं ने खुद का ग्लायडर बनाने में कामयाबी हासिल की। उसके टेस्ट करने पर उस में कुछ खामियां नजर आईं। इसलिए ऑर्व्हिल ने खुद एक विंड टनेल बनाकर सन १९०२ में एक नया ग्लायडर बनाया। इससे तकरीबन एक हजार उडानें करके इस बात की खात्री कर ली कि वे सही दिशा में जा रहे हैं। नए ग्लायडर की विशेषता यह थी कि दोनों तरफ समतोल करने के लिए विमान के पंखों में बिठाया हुआ ‘एलरॉन’ और उसकी पूंछ के हिस्से में बिठाई हुई पतवार। इसके अलावा विमान का कोन बदलने हेतु एलिव्हेटर नामक दोयम पंखा भी बिठाया था।

१७ सितम्बर १९०३। अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना प्रांत में किटी हॉक नामक खेडा। विल्बर एवं ऑर्व्हिल दोनों भाईयों ने बारी बारी से सुबह से विमान उडाने की कोशिश की, मगर असफल रहे। धीरे धीरे शाम होने लगी, सूरज पश्‍चिम की ओर झुकने लगा था। दिन में विमान उडाने की पहली कोशिश छोटे भाई ऑर्व्हिल ने की थी। अंत में शाम को विल्बर ने अंतिम कोशिश करने की ठानी…. और इसी उडान ने इतिहास रचा। विल्बर ने विश्‍व में पहला कामयाबी से विमान उडाने का सम्मान पाया। विल्बर की यह पहली उडान ५९ पलों की थी जिस में विमान ने २५९ मीटर अंतर पार किया था। यंत्र का इस्तेमाल करके उडने भरने में इन्सान ने पहली बार कामयाबी पाई थी।

इतिहास तो रचा गया मगर उस वक्त किसी ने भी उनकी ओर गौर नहीं किया। मगर राइट बंधुओं ने अपने प्रयास जारी रखे। अंत में सन १९०८ में विल्बर द्वारा बनाया हुआ फ्लायर-३ इस विमान पर अमेरिका और फ्रान्स ने ध्यान दिया। इस के साथ साथ दोनों देशों में राइट कंपनी की स्थापना की गई।

अगले तीन-चार दशकों में विमान बनाने में तथा कुल तकनीक में बडी प्रगति हुई है। मगर सन १९१२ में विल्बर की मृत्यु के बाद भी ऑर्व्हिल राइट ने अपना शेष जीवन विमानविद्या के संशोधन में ही बिताया। जिस स्थान पर ‘राइट बंधुओं’ ने विश्‍व की पहली विमानउडान की आज उसी जगह पर अमेरिका ने अपना ‘राष्ट्रीय स्मारक’ घोषित किया है।

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