‘ग्लोबल साउथ’ के लिए भारत ‘नाम’ को अनदेखा नहीं करेगा – विदेश सचिव की गवाही

नई दिल्ली – भारत द्वारा आयोजित ‘वॉईस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट’ में कुल १२५ देश शामिल हुए। इनमें से ४७ अफ्रीकी, ३१ एशियाई, २९ लैटिन अमरिकी, कैरेबियन और ओशिआनिया के ११ देश एवं ७ देश यूरोप के हैं। इतनी बड़ी संख्या में भी इस परिषद को प्राप्त हुए समर्थन के मद्देनज़र भारत इस गुट को सबसे अधिक प्राथमिकता देगा, ऐसे स्पष्ट संकेत प्राप्त हो रहे हैं। लेकिन, ग्लोबल साउथ को भारत भले ही अहमियत दे रहा है, फिर भी भारत की गुटनिरपेक्ष अभियान (नाम) के प्रति प्रतिबद्धता कम नहीं होगी, ऐसी गवाही विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने दी।

‘नाम’अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रही उथल-पुथल की पृष्ठभूमि पर ग्लोबल साउथ का हिस्सा होने वाले विकसनशील देशों की आवाज़ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने के लिए भारत ने ‘वॉईस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट’ का आयोजन किया था। इसी साल भारत में ‘जी २०’ परिषद का आयोजन होगा और इससे पहले ग्लोबल साउथ की इस वर्चुअल बैठक का आयोजन करके भारत ने विकसनशील देशों की आवाज़ का संज्ञान लेने के लिए भी विकसित देश मज़बूर होते दिख रहे हैं। साथ ही विकासशील देशों ने एकजुट होकर अपने मसले और समस्याएं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रखने की ज़रूरत है, इसका अहसास भारत ने कराया था। साथ ही अंतरराष्ट्रीय कारोबार में प्रभाव बढाना है तो इसके लिए पूरे अहसास से कोशिश करनी पडेगी, संयुक्त राष्ट्रसंघ एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सुधार कराने होंगे, इसका अहसास भी भारत ने ‘ग्लोबल साउथ समिट’ में कराया था।

इस परिषद में भारत ने उठाए मुद्दों को समर्थन प्राप्त होना ध्यान आकर्षित कर रहा है। इस परिषद के दूसरे दिन बोलते हुए भारत के विदेश मंत्री ने संयुक्त राष्ट्रसंघ की आलोचना की थी। संयुक्त राष्ट्रसंघ साल १९४५ में संगठित हुई और जमा बैठा संगठन बना है। यह संगठन अपने ही सदस्य देशों की मांग पर ध्यान देने के लिए तैयार नहीं है, ऐसी आलोचना जयशंकर ने की। ऐसी स्थिति में वैश्वीकरण की नई प्रक्रिया का आरंभ करना पडेगा और इसके लिए पहल भी करनी पडेगी, यह संदेश भारत के विदेश मंत्री ने ‘ग्लोबल साउथ’ को दिया था। इसकी वजह से भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसनसील देशों के मसले और समस्याएं अधिक प्रखरता से रखने की तैयारी में लगा होने के स्पष्ट संकेत प्राप्त हो रहे हैं।

किसी भी गूट या संगठन का हिस्सा बनकर किसी दूसरे देश के खिलाफ गुटबाजी ना करने की भारत की परंपरागत विदेश नीति रही है। इसी वजह से शीतयुद्ध के कारान भारत ने अमरीका और सोवियत रशिया जैसी महासत्ताओं के द्वंद्व में शामिल होने के बजाय गुटनिरपेक्ष रहना स्वीकार किया था। गुटनिरपेक्ष देशों का अभियान ‘नॉन अलायन्स मुवमेंट’ (नाम) के लिए पहल करके भारत ने अन्य देशों को भी इसके लिए प्रेरित किया था। शीतयुद्ध खत्म होने के बाद ‘नाम’ की अहमियत भी खत्म हुई, ऐसी चर्चा शुरू हुई थी। लेकिन, भारत ने फिर से ‘नाम’ को अहमियत देने का ऐलान करके इसकी अहमियत कायम होने के संदेश दिए हैं। लेकिन, ग्लोबल सोलर अलायन्स और ग्लोबल साउथ जैसा नया संगठन स्थापित करके भारत वैश्विक स्तर पर इनका नेतृत्व करने के लिए तैयार दिखाई दे रहा है। इसका असर आनेवाले दौर में दिखाई देगा, यह विश्लेषकों का कहना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.