भारत का रक्षा उद्योग विकसित करने के लिए अमरीका सहायता करेगी – पेंटॅगॉन के वरिष्ठ अधिकारी का दावा

वॉशिंग्टन – केवल शस्त्रास्त्र और रक्षा सामग्री की सप्लाई करके अमरीका को भारत के साथ लष्करी और तंत्रज्ञान विषयक सहयोग विकसित नहीं करना है। बल्कि रक्षा विषयक उद्योग विकसित करने हेतु अमरीका भारत की सहायता करने के लिए उत्सुक है। इसका इस्तेमाल करके भारत अमरीका तथा इस क्षेत्र के अन्य देशों के साथ सहयोग बढ़ा सकता है, ऐसा दावा अमरीका के पेंटागन के वरिष्ठ अधिकारी डेव्हिड हॅल्वे ने किया है।

लद्दाख की एलएसी पर हुईं गतिविधियों के कारण भारत की आँखें खुलीं हैं। इस कारण भारत अपनी तटस्थ नीति छोड़कर क्वाड के साथ अधिक सहयोग करेगा, ऐसा दावा अमरीका के इंडो-पैसिफिक कमांड के प्रमुख अ‍ॅडमिरल फिलिप डेव्हिडसन ने किया था। उसके बाद अमरीका के इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की सुरक्षाविषयक नीतियों के उपमंत्री होनेवाले डेव्हिड हॅल्वे ने बायडेन प्रशासन की भारत विषयक नीति स्पष्ट की। भारत की उभरती सत्ता होकर अमरीका का वास्तविक साझेदार देश है, ऐसा हॅल्वे ने कहा। अमरिकी संसद की ‘आर्म्ड सर्व्हिसेस कमिटी’ के सामने बात करते हुए हॅल्वे ने ये दावे किए हैं।

भारत के साथ अपना रक्षा विषयक सहयोग अधिक से अधिक दृढ़ करने को अमरीका अहमियत दे रही है। इसी कारण भारत की औद्योगिक नींव मजबूत हो, इसके लिए अमरीका भारत के साथ सहयोग कर रही है। अमरीका ने भारत को ‘मेजर डिफेन्स पार्टनर’ ऐसा विशेष दर्जा इससे पहले ही दिया है, इस पर हॅल्वे ने गौर फरमाया। आनेवाले दौर में भारत के साथ गोपनीय जानकारी के आदान-प्रदान के संदर्भ में सहयोग बढ़ाने के लिए अमरीका कोशिश करेगी, ऐसा हॅल्वे ने स्पष्ट किया। चीन को नियंत्रण में रखने के लिए भारत की सहायता करने के मामले में बायडेन का प्रशासन क्या कर रहा है? ऐसा सवाल अमेरिकन सिनेटर डॉह् लॅम्बॉन ने किया था। उसके जवाब में हॅल्वे ने ये सारे दावे किए हैं।

शुक्रवार को भारत-अमरीका-जापान-ऑस्ट्रेलिया इन क्वाड देशों के नेताओं की वर्चुअल बैठक संपन्न होगी। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन की मगरूरी भारी पैमाने पर बढ़ी है। म्यानमार में लष्करी बगावत चीन ने ही करवाई। यह केवल शुरुआत होकर, आनेवाले समय में चीन अधिक आक्रामक बनेगा, ऐसी चेतावनी जापान के नेताओं ने दी थी। ईस्ट चाइना सी क्षेत्र में जापान की सीमा में चीन के जहाज और लड़ाकू विमान बार-बार घुसपैठ कर रहे हैं। इसी समय, ताइवान की हवाई सीमा में चीन के विमानों की घुसपैठ की मात्रा चिंताजनक रूप में बढ़ी है। इतना ही नहीं, बल्कि साउथ चाइना सी क्षेत्र के देश, चीन की आक्रामकता के कारण आत्यंतिक असुरक्षित बने हैं।

ऐसे हालातों में चीन को रोकने के लिए क्वाड ने सक्रीय भूमिका अपनाने की आवश्यकता सामने आ रही है। भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया भी इसके लिए आग्रही होने की बात सामने आ रही है। लेकिन चीन के विरोध में बायडेन प्रशासन ठोस भूमिका अपनाने के लिए तैयार नहीं है, ऐसे आरोप शुरू हुए हैं। इन आरोपों की तीव्रता बढ़ने के बाद बायडेन प्रशासन की नींद खुली दिख रही है। क्योंकि पिछले कुछ दिनों से अपना प्रशासन चीन के विरोध में आक्रामक बना है, ऐसा राष्ट्राध्यक्ष बायडेन के सहकर्मी दिखा रहे हैं। इस पृष्ठभूमि पर, डेव्हिड हॅल्वे ने भारत के साथ लष्करी सहयोग के संदर्भ में दावे किए दिख रहे हैं।

भारत और अमरीका का लष्करी सहयोग केवल शस्त्रास्त्रों की खरीद और बिक्री तक सीमित नहीं रखा जा सकता, यह भारतीय विशेषक बहुत पहले से ही अमरीका को जताते आए हैं। उसी समय, रशिया जैसे अपनी पारंपरिक मित्र देश के साथ सहयोग भारत छोड़ दें, यह अमरीका की गैरवाजिब उम्मीद भारत को मान्य नहीं है, यह भी भारत ने समय-समय पर स्पष्ट किया था। क्या बायडेन का प्रशासन भारत की इस भूमिका को मानने के लिए तैयार है, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। इस कारण भारत के साथ रक्षा विषयक सहयोग के बारे में बायडेन के प्रशासन द्वारा किए जाने वाले बड़े-बड़े दावे सच होंगे अथवा नहीं, इस बारे में भारतीय विश्लेषक अभी भी शंकित हैं।

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