चीन की बढ़ती चुनौतियों की पृष्ठभूमि पर ब्रिटेन ने किया इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के व्यापारी समझौते का हिस्सा होने का ऐलान

लंदन – ब्रिटेन ने जापान, कनाड़ा और ऑस्ट्रेलिया ने किए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र से संबंधित महत्वाकांक्षी समझौते का हिस्सा होने का ऐलान किया है। रविवार को न्यूजीलैण्ड में आयोजित बैठक में ब्रिटेन के व्यापार मंत्री केमी बैडेनोक ने संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता ब्रिटेन के व्यापार के लिए अहम चरण साबित होगा, ऐसा बयान व्यापार मंत्री बैडेनॉक ने इस दौरान किया। 

व्यापारी समझौते का हिस्सापिछले दशक में चीन के एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में बढ़े वर्चस्व को चुनौती देने के लिए अमरीका ने ‘ट्रान्स पैसिफिक पार्टनरशिप’ नामक महत्वाकांक्षी और व्यापक समझौते का प्रस्ताव आगे लाया था। लेकिन, पूर्व राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प इस समझौते से पीछे हटे थे। इसके बाद वर्ष २०१८ में ११ देशों ने मिलकर ‘कॉम्प्रेहेन्सिव ॲण्ड प्रोग्रेसिव एग्रिमेंट फॉर ट्रान्स पैसिफिक पार्टनरशिप’ (सीपीटीपीपी) का ऐलान किया था। इन ११ संस्थापक सदस्य देशों में जापान, कनाड़ा, ऑस्ट्रेलिया, मेक्सिको, चिली, ब्रुनेई, मलेशिया, पेरु, सिंगापूर, वियतनाम और न्यूजीलैण्ड का समावेश हैं। 

व्यापारी समझौते का हिस्साअमरीका के पीछे हटने के बाद चीन ने भी इस समझौते का हिस्सा होने की गतिविधियां शुरू की थी। लेकिन, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे प्रमुख सदस्य देशों ने इसका तीव्र विरोध किया था। इस वजह से वर्णित गुट में चीन का समावेश होने की संभावना खत्म होने की बात समझी जा रही है। दूसरी ओर ‘ब्रेक्ज़िट’ की वजह से यूरोपिय महासंघ की व्यापारी प्राथमिकता खोने वाले ब्रिटेन को अपनी अर्थव्यवस्था संभालने के लिए प्रमुख देशों के साथ व्यापर बढ़ाना ज़रूरी बना है। चीन की बढ़ती चुनौतियों के कारण इस देश के साथ आर्थिक और व्यापारी सहयोग बढ़ाने पर मर्यादा होने से ब्रिटेन ने ‘इंडो-पैसिफिक’ क्षेत्र में व्यापार बढ़ाने के लिए ‘सीपीटीपीपी’ का चयन किया है।

‘सीपीटीपीपी’ के सदस्य देशों का अंतरराष्ट्रीय व्यापार में १० प्रतिशत से अधिक हिस्सा होने की बात कही जा रही है। इनमें से कई देशों के साथ ब्रिटेन ने स्वतंत्र व्यापारी समझौते किए हैं। लेकिन, फिर भी यूरोप और चीन के साथ जारी व्यापारी सहयोग मे गिरावट होने से ब्रिटेन को अन्य देशों की ज़रूरत महसूस हो रही हैं और इसी कारण से ‘सीपीटीपीपी’ पर हस्ताक्षर करता दिख रहा है। ‘सीपीटीपीपी’ पर हस्ताक्षर करना ब्रिटेन की ‘इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी’ का हिस्सा होने का दावा भी कुछ विश्लेषकों ने किया है।

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