रशिया-युक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर युरोप एवं चीन में दरी बढ़ी

बीजिंग/ब्रुसेल्स – रशिया-युक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि पर युरोपिय महासंघ एवं चीन के संबंधों में निर्माण दरी अधिकाधिक चौडी होती जा रही है, ऐसा दावा माध्यम तथा विश्लेषक कर रहे हैं। पिछले महीने आघाडी के युरोपिय राष्ट्रों के समावेश वाले दोनों प्रमुख बैठकों में चीन के खिलाफ स्वीकारी गई कठोर भूमिका इस बात की द्योतक होने की ओर माध्यमों ने ध्यान आकर्षित किया। जी-7 एवं नाटो दोनों गुटों द्वारा प्रसिद्ध किए गए निवेदन में चीन की चुनौतियों का स्पष्ट उल्लेख किया गया। चीन पश्चिमी राष्टों के प्रभाव वाली व्यवस्था के लिए खत्रा होने का इशारा भी दिया गया था।

मंगलवार को युरोपिय महासंथ एवं चीन के बीच ’हाय लेवल इकॉनॉमिक व ट्रेड डायलॉग’ शुरु हो रहा है। इस वर्चुअल बैठक के बारे में युरोपिय महासंघ द्वारा सकारात्मक संकेत नहीं दिए गए हैं। इससे पहले अप्रैल में हुई उच्चस्तरीय द्विपक्षिय बैठक भी असफल रही थी। रशिया एवं व्यापार के मुद्दे पर ठोस अश्वासन देने से चीन ने इन्कार किया था। महासंघ के विदेश प्रमुख जोसेप बॉरेल ने इस पर कहते हुए ’बहरों की चर्चा’ पूरी हुई, ऐसी कटु प्रतिक्रिया दी थी।

वैश्विक महासत्ता बनने की महत्वकांक्षा में अमेरिका के साथ संघर्ष के मद्देनजर चीन ने युरोप के साथ नज़्दीकियां बढ़ाने की शुरुआत की थी। इसलिए पिछले दो दशकों में चीन ने युरोपिय महासंघ के साथ अपने संबंध मजबूत करने के लिए जोरदार कोशिश की। सन 2014 में चीन के राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने युरोप का दौरा करके युरोप एवं चीन की भागीदारी नई ऊंचाईयों पर ले जाने के संकेत दिए थे। महासंघ के आघाडी के सदस्य राष्ट्रों के साथ व्यापार बढाकर उन्हें अपनी तरफ करने में चीन सफल रहा था। इसलिए चीन द्वारा की जानेवाली दादागिरी तथा मानवाधिकारों के उल्लंघन को युरोपिय राष्ट्र नज़रअंदाज़ कर रहे थे।

पर अमेरिका में हुकूमत बदलने के बाद सबकुछ बदलने लगा। अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष डोनाल्ड ट्रम्प की चीन के खिलाफ आक्रामक भूमिका की वजह से युरोप में भी बदलाव होने लगे थे। टिबेट, हॉंगकॉंग, ज़िंजियांग, तैवान जैसे मुद्दों पर महासंघ चीन की टीका करने लगा। तथा, व्यापार एवं निवेश के बारे में युरोपिय कंपनियों पर लगाए गए प्रतिबंधों के मुद्दों पर भी विरोधि सुर सुनाई देने लगे।

कोरोना संक्रमण के पीछे चीन की संदेहजनक भूमिका और रशिया-युक्रेन युद्ध में रशिया का किए हुए समर्थन की वजह से युरोप में नाराज़गी अधिक बढ़ी। एक के पीछे दूसरी घटनेवाली इन घटनाओं ने युरोपिय राष्ट्रों को चीन के खिलाफ दृढ नीति अपनाने पर मजबूर कर दिया, ऐसा दावा पश्चिमी विश्लेषकों ने किया। इसलिए युरोपियन संसद में चीन एक खत्रा है, ऐसा आगाह किया जाने लगा। इसके साथ ही साथ युरोपिय राष्ट्रों के समावेश वाले जी-7 तथा नाटो में भी इशारा दिया जाने लगा कि, चीन एक खत्रा है।

भविष्य में अमेरिका के खिलाफ संघर्ष में चीन को युरोपिय राष्ट्रों का साथ नहीं मिलेगा, यह बात रशिया-युक्रेन युद्ध से स्पष्टरूप से उजागर हुई है। तथा, युरोपिय राष्ट्रों में आए बदलाव चीन द्वारा वैश्विक प्रभाव के लिए तैयार की गई योजना को भी झटका देनेवाला होने का मत विश्लेषक व्यकत कर रहे हैं। 

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