अस्थिसंस्था भाग – ३३

घुटने की क्रियायें

हमने घुटने की रचना देखी। अब हम घुटने की क्रियायें (movement)देखेंगे।
हमेशा की तरह यदि विचार करें तो घुटने में चार प्रकार की क्रियाएँ होती हैं। वे हैं फ्लेक्शन, एक्सटेंशन, मिडिअल रोटेशन और लेटरल रोटेशन। यह बिजागरी श्रेणी का जोड़ है, यह हमने पहले देखा है। परन्तु यह पूरी तरह (true) बिजागरी जोड़ नहीं है। इसका आर्टिक्युलर सरफ़ेस के कोंडायलर होने से इसका फ्लेक्शन एक्सटेंशन का अक्ष (axis) पूर्ण आड़ा व स्थिर नहीं रहता। पैर को पूरी तरह सीधा करते समय यह अक्ष ऊपर के व सामने की ओर सरकता है। पैर को घुटने पर मोड़ते समय ठीक इसके विपरित अक्ष नीचे व पीछे की ओर सरकता है। फलस्वरूप हम अब यह देखेंगे कि हमारी हमेशा की क्रियाओं में कैसे घटित होता है।

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हम देखेंगे कि कुर्सी पर बैठने की और कुर्सी से उठने की क्रियाओं के दौरान क्या होता है। कुर्सी पर बैठते समय हमारे पैर जमीन पर स्थिर होते हैं व घुटनों का मुड़ना (flexion) जांघों में होता है। इस समय जाघों की हड्डी बाहर की ओर घूमती है (लॅटरल रोटेशन) / इसके विपरीत कुर्सी से उठते समय पैर पुन: स्थिर होते हैं व जांघों से पैर सीधा होता है। इसमें फीमर अंदर की ओर घूमती है।

यदि घुटने पर मोड़ते समय पैर अधांतरी होगा तो टिबिया का रोटेशन होता है। इस दौरान टिबिया अंदर की ओर घूमती है (medial rotation) तथा घुटने से पैर को सीधा करते समय यदि पैर अधांतरी होगा तो टिबिया बाहर की ओर घूमती है।

फीमर व टिबिया के बीच से जाने वाली यदि एक काल्पनिक खड़ी रेखा खींचे तो घुटने पर पैर सीधा होते समय ज्यादा से ज्यादा १०००-२०० अंश का कोण इस रेखा के साथ बनता है। वही पैर घुटने पर मोड़ते समय यह कोण १२०० अंश का होता है कमर से पैर सीधा होता है। कमर से पैर को मोड़ने पर यह कोण १४०० अंश का होता है। ताप्तर्य यह है कि घुटनों का मोड़ बढ़ जाता है। जब हम दोनों पैरों पर नीचे बैठते हैं (squaiting) तब यह कोण १६०० अंश का होता है।

हमने पहले यह देखा है कि जब हम घुटने से पैर पूरी तरह सीधा करत हैं तो फीमर की कोंडाइल्स अंदर की ओर मुड़ती है। इस क्रिया के दौरान जोड़ के सभी लिंगामेंटस् पूरी तरह ताने जाते हैं व जोड़ एक तरह से लॉक हो जाता है। यह लॉकींग मेकॅनिझम काफी महत्त्वपूर्ण है। इस तरह एक्सटेंशन की स्थिती में जोड़ लॉक होने के कारण ज्यादा से ज्यादा तान-तनाव सहन करने की क्षमता बढ़ती है। जोड़ का निकलना मेनिसक्स को चोट लगना, अस्थिभंग होना इत्यादि घटनायें अचानक नहीं होती। घुटने की फीमर और टिविया के ऊपर की आर्टिक्युलर सरफ़ेसेस अधिकतर समय एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़ी हुयी, एकरुप (non-congruent) नहीं होती हैं। जब यह जोड़ ऊपर बताये ढ़ंग से लॉक तभी फीमर के ऊपर की बर्हिगोल कुर्चा टिबिया के अंतर्वक्र मेनिसकस से पूरीतरह एकरुप (congruent) होती हैं।

यदि रचना की दृष्टि से देखा जाये तो घुटने का जोड़ असुरक्षित जोड़ है। जोड़ के दोनो ओर की हड्डियां लंब अस्थि हैं। आर्टिक्युलर सरफ़ेस नहीं। इसकी गतियां भी ज्यादा व तनाव भी ज्यादा होने के बावजूद भी यह सबसे मजबूत जोड़ हैं। इसके मजबूत लिंगामेंट्स व जोड़ के आजू-बाजू के शक्तिशाली स्नायु इस जोड़ की सहायता करते हैं।

यह जोड़ यदा-कदा ही निकलता है। परन्तु मेनिसकस के ऊपर होनेवाले आघात सबसे ज्यादा होते हैं। यदि जोड़ जोर से घूम जाये तो मेनिसकस में दरार पड जाती हैंअथवा वह फट जाती हैं। अंदर की अथवा मिडिअल मेनिसकस के फटने की संभावना ज्यादा होती है।

समतोल भूमी पर चलते समय ((level walking) घुटनों पर आने वाला वजन शरीर के वजन से पाँच गुना बढ़ सकता है। साधारणतया यह भार दो से चार गुना होता है (फीमर व टिबिया में) इसी दौरान फीमर व पटेला के जोड़ पर यह भार वजन का आधा होता है।

जब हम सीढ़ी चढ़ते या उतरते हैं तब फीमर व टिबिया के जोड़ पर कुछ भी असर नहीं होता परन्तु फीमर व पटेला के जोड़ पर भार बढ़ता है। चढ़ते समय यह शरीर के वजन का दो गुना होता है तथा उतरते समय तीन गुना होता है। इस भार को सहन करने के लिये पटेला में दो चीजें होती हैं। पहली यह कि इसके रोटेशन का जो अक्ष होता है, उसका कोण बदलता है व दूसरी यह कि पटेला का फीमर के साथ का संपर्क तीन गुना बढ़ जाता है। इससे हमें यह जान सकते हैं कि ज्यादा चढ़ने-उतरने पर घुटनें क्यों दर्द करने लगते हैं।

घुटने के नीचे की ओर पैर में दो अस्थियां होती हैं। उनकी जानकारी हम इससे पहले चुके है। इन दोनों अस्थियों के बीच में दो जोड़ होते हैं। इन्हें टिबिओफिब्यूलर जोड़ कहते हैं। ऊपर का टिबिओफिब्यूलर जोड़ घुटने के पास तथा नीचे का टिबिओफिब्यूलर जोड़ एड़ी के पास होता है।

ऊपर का टिबिओफिब्यूलर जोड़ एक अत्यंत सादा जोड़ है। टिबिया के लॅटरल कोंडाइल्स के साथ फिब्यूला के सिर के मिलने पर यह जोड़ बनता है। दोनों अस्थियों पर हायलाईन कुर्चा होती है। जोड़ के बाहर फ़ायब्रस कॅपसूल का आवरण होता है तथा अंदर सायनोवियल मेंब्रेन होती हैं। दस प्रतिशत लोगों में इस जोड़ का सायनोवियल आवरण से जुड़ा होता है।

नीचे का टिबिओफिब्यूलर जोड़ दोनों अस्थियों के निचले सिरों के बीच बनता है। इसके अलावा दोनो अस्थियों के बीच में इंटरऑसिअस परदा होता है।
इन सभी जोड़ों की गतिविधियां बिल्कुल मामूली होती हैं। अब तक कमर से लेकर पैरों तक के प्रदेश की अस्थियों के बारे में हमने जान लिया। इसके बाद हम एड़ी और पंजों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

(क्रमश:)

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