सहयोग के खातिर क्या इस्रायल ने सौदी के नागरी परमाणु प्रकल्प को अनदेखा करना चाहिये? – इस्रायल में बड़ी चर्चा शुरू

तेल अवीव – सौदी अरब को इस्रायल के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित करने हैं तो यह ज्यो बायडेन अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष होते हुए ही मुमकीन होगा। उनका कार्यकाल खत्म होने के बाद मुमकीन हो डोनाल्ड ट्रम्प फिर से अमरीका के राष्ट्राध्यक्ष बन जाएंगे। उन्हें सौदी-इस्रायल सहयोग के लिए आवश्यक अमरीका के विपक्ष का सहयोग प्राप्त नहीं होगा, यह संदेश इस्रायल से सौदी अरब को दिया जा रहा है। इस्रायली माध्यमों ने इससे संबंधित खबरे जारी की हैं। लेकिन, इस्रायल के सहयोग के लिए सौदी अरब ने नागरी परमाणु ऊर्जा प्रकल्प की मांग सामने रखी हैं। इस मुद्दे पर इस्रायल में बड़े तीव्र मतभेद होने की जानकारी सामने आ रही हैं।

अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने अपने सौदी अरब दौरे के बाद अमरीका में माध्यमों से बोलते हुए सौदी और इस्रायल में सहयोग स्थापीत होगा, ऐसे संकेत दिए थे। लेकिन, इसके लिए सौदी अरब ने अमरीका के सामने तीन शर्ते रखी हैं। ऐसे में सौदी पर हमला हुआ तो अमरीका के सैन्यकी दखलअंदाज़ी की मांग का भी समावेश है। साथ ही सौदी को अमरीका से उन्नत ‘थाड’ हवाई सुरक्षा यंत्रणा प्राप्त करनी है। वहीं, नागरी परमाणु ऊर्जा प्रकल्प सौदी की सबसे अहम मांग हैं और इससे इस्रायल की चिंता बढ़ती दिख रही हैं।

इस्रायल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार झाकी हनेग्बी ने यह दावा किया कि, सौदी के संभावित परमाणु ऊर्जा प्रकल्प का इस्रायल की सुरक्षा पर परिणाम नहीं होगा। कई देशों में नागरी परमाणु ऊर्जा प्रकल्प मौजूद हैं। उनके पड़ोसी देशों को इससे खतरा होने की संभावना नहीं। उसी तरह सौदी के नागरी परमाणु ऊर्जा प्रकल्प से इस्रायली सुरक्षा को खतरा नहीं होगा, ऐसा इस्रायल के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने कहा है। लेकिन, उनका यह दावा इस्रायल के सामरिक विश्लेषकों ने ठुकराया है। वर्ष १९८६ में यूक्रेन में स्थित रशियन चेर्नोबिल और वर्ष २०११ में जापान के फुकूशिमा परमाणु प्रकल्प में हुए परमाणु हादसे का दाखिला इन सामरिक विश्लेषकों ने दिया है।

सौदी अरब का नागरी परमाणु प्रकल्प शुरू हुआ तो वह ‘रेड सी’ के क्षेत्र में होगा। क्यों कि, परमाणु प्रकल्प के लिए प्रचंड़ मात्रा में पानी की ज़रूरत होती हैं। वहां परमाणु हादसा हुआ या आतंकी हमला हुआ तो इससे इस्रायल की सुरक्षा पर असर हुए बिना नहीं रहेगा। इस वजह से सौदी अरब के परमाणु प्रकल्प से इस्रायल को धोखा नहीं होगा, यह दावा गलत होगा, ऐसा इन सामरिक विश्लेषकों का कहना हैं। साथ ही सौदी अरब को वह जब चाहेगा, तब इस नागरी परमाणु प्रकल्प का इस्तेमाल सैन्यकी उद्देश्य के लिए कर सकेगा। इस वजह से अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा आयोग की गारंटी पर निर्भर रहकर इस्रायल अपनी सुरक्षा को खतरे में धकेल नहीं सकता, इसका अहसास भी इन विश्लेषकों ने कराया है।

लेकिन, अमरीका ने ही सौदी अरब को नागरी परमाणु प्रकल्प का निर्माण करने के लिए सहयोग करना तय किया तो इस्रायल के विरोध का कोई मतलब नहीं रहेगा, ऐसा इस्रायल के कुछ विश्लेषकों का कहना हैं। इस्लामी जगत के बड़े अहम देश बने सौदी अरब के सहयोग से इस्रायल को विभिन्न लाभ प्राप्त हो सकते हैं। लेकिन, इसके लिए सौदी को आवश्यक नागरी परमाणु प्रकल्प का विरोध न करने का खतरा उठाना है क्या, इसपर इस्रायल में तीव्र मतभेद होने की बात माध्यमों की खबरों से स्पष्ट हो रही है।

ऐसा होने के बावजूद इस्रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेत्यान्याहू बड़े आत्मविश्वास से यही कह रहे है कि, इस्रायल-सौदी सहयोग हुए बिना नहीं रहेगा। साथ ही अमरीका के दबाव में आकर सौदी अरब पैलेस्टिनियों को अनदेखा करके इस्रायल से सहयोग स्थापित ना करें, ऐसा आवाहन बड़ी तीव्रता से पैलेस्टिनी कर रहे हैं। ऐसे में इस्रायल-सौदी अरब सहयोग की राह इन दोनों देशों के लिए आसान नहीं होगी, यही दिख रहा है।

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