श्‍वसनसंस्था- ६

पिछले लेख में हमने मुख्य श्‍वसननलिका की रचना का अध्ययन किया। आज हम इसके अगले भाग की जानकारी प्राप्त करेंगे।

छाती और रीढ़ की पाँचवीं हड्डी के स्तर पर मुख्य श्‍वसन नलिका दो विभागों में विभाजित हो जाती है। इन विभागों को ब्रोंकस कहते हैं।

ऊपर दी हुयी आकृती में श्‍वसन नलिका की अगली रचना स्पष्ट समझ में आती है। मुख्य श्‍वसननलिका के दो-दो भाग होते हैं। दाहिनी ओर की मुख्य ब्रोंकस से तीन उपशाखायें निकलती हैं तथा बायीं ओर की मुख्य ब्रोंकस से दो उपशाखायें निकलती हैं।

बायीं मुख्य ब्रोंकस से दाहिनी मुख्य ब्रोंकस ज्यादा चौड़ी होती है। यह ब्रोंकस श्‍वसन नलिका से लगभग सीधी नीचे जाती है (Verticaly down)। फ़लस्वरूप श्‍वसननलिका में गयी हुई कोई वस्तु प्राय: दाहिनी ब्रोंकस में जाकर अटकती है।

आगे चलकर दाहिनी मुख्य ब्रोंकस तीन भागों में विभाजित हो जाती है। १)दाहिनी ऊपरी अथवा superior ब्रोंकस २) दाहिनी मध्यवर्ती अथवा middle ब्रोंकस और ३)दाहिनी निचली अथवा inferior। दाहिने फ़ेफ़ड़ें के इसी तरह तीन लोब्ज होते हैं, जिनके नाम ऊपरी, मध्यवर्ती और निचला लोब्ज ये हैं। उपरोक्त तीनों ब्रोंकस अपने-अपने नामों के अनुसार अपने-अपने लोब्ज में प्रवेश करती हैं और वहाँ पर हवा की आपूर्ति करती हैं।

बायीं मुख्य ब्रोंकस से दो उपशाखायें निकलती हैं। १)बायीं ऊपरी ब्रोंकस और २)बायीं निचलीं ब्रोंकस। बायें फ़ेफ़ड़ें में दो ही लोब्ज होते हैं। और उसके अनुसार ही यहाँ पर ब्रोंकस की उपशाखायें प्रवेश करती हैं।

दाहिनी मुख्य ब्रोंकस की तरह बायीं मुख्य ब्रोंकस सीधे नीचे नहीं जाती। यह थोड़ी तिरछी बायीं ओर मुड़ती है। इस ब्रोंकस की लम्बाई साधारणत: ५ सेंमी होती है।

श्‍वसन क्रिया की दृष्टी से प्रत्येक फ़ेफ़ड़ें को दस-दस भागों में बांटा गया है। इन प्रत्येक भागों के लिए अलग-अलग ब्रोंकस होती है। इन्हें सेगमेंटल ब्रोंकस कहा जाता है। दाहिनी ऊपरी ब्रोंकस में से तीन सेगमेंटल ब्रोंकाय निकलते हैं। मध्यवर्ती शाखा से तीन सेगामेंटल ब्रोंकाय निकलते हैं और निचली शाखा से पाँच सेगमेंटल ब्रोंकास निकलते हैं। बायीं ओर की निचली और ऊपरी दोनों ब्रोंकाय में से पाँच-पाँच सेगमेंटल ब्रोंकाय निकलते हैं। प्रत्येक सेगमेंटल ब्रोंकस फ़ेफ़ड़ें के निश्‍चित भाग को हवा की आपूर्ति करते हैं और श्‍वसन के कार्यों में मदत करते हैं। सेगमेंटल ब्रोंकस और उससे संबंधित फ़ेफ़ड़ें के भाग से मिलकर ‘ब्रोंकोपलमनरी’ सेगमेंट कहते हैं। प्रत्येक फ़ेफ़ड़ें में दस ब्रोंकोपलमनरी सेगमेंट होते हैं। इनमें से प्रत्येक सेगमेंट श्‍वसन का स्वतंत्र युनिट होता हैं। तात्पर्य यह है कि फ़ेफ़ड़ें के दूसरे भाग की सहायता के बिना यह प्रत्येक युनिट श्‍वसन का कार्य पूरा कर सकती है। इन सभी जानकारियों का उपयोग बीमारी को समझने और उसका योग्य उपचार करने के लिये होता है।

न्युमोनिया, अन्यु जीवाणु बाधा, ब्रोंकिआक् टेसिस इत्यादि बीमारियाँ एक-दूसरी सेगमेंटस् तक ही सीमित रहती हैं। संपूर्ण फ़ेफ़ड़ें में नहीं फ़ैलती हैं। क्षयरोग, कर्करोग जैसी बीमारियाँ अनेकों सेगमेंट्स को ग्रसित कर सकती हैं। इतना ही नहीं बल्कि एक फ़ेफ़ड़ें से दूसरे फ़ेफ़ड़ें में भी फ़ैल जाती हैं। इन जानकारियों के फ़लस्वरूप रोग का योग्य निदान करना और उसपर योग्य उपचार करना संभव होता है। यदि कोई रोग किसी एक ही सेगमेंट तक ही सीमित होता है और दवाईयों से अच्छा नहीं हो रहा होता है तो उसका ऑपरेशन करना पड़ता है। ऑपरेशन के दौरान रोग ग्रसित सेगमेंट को निकाल दिया जाता हैं। फ़लस्वरूप फ़ेफ़ड़ें का शेष भाग बचाया जा सकता है।

श्‍वसननलिका की रचना के बारे में हमनें जानकारी प्राप्त की। अब हम श्‍वसननलिका पर की जानेवाली दो छोटी क्रियाओं का अध्ययन करेंगें।

१)ट्रॅकिओस्टोमी (Tracheostomy) :
इसका शाब्दिक अर्थ है – श्‍वसननलिका में छेद करना। यदि किसी की साँस बंद हो जाये अथवा श्‍वसननलिका में कोई बाधा निर्माण हो जायें तो तात्कालिक उपचार के लिए छेद किया जाता है। इस क्रिया में श्‍वसन नलिका पर खड़ा अथवा आड़ा छेद किया जाता है। श्‍वसननलिका में किये गये छेद में से नली ड़ालकर उससे फ़ेफ़ड़ों में हवा पहुँचायी जाती है। इस नली को श्‍वसनयंत्र (Ventilator) से जोड़कर मरीज को कृत्रिम साँस दी जा सकती है।

२) ब्रोंकोस्कोपी :
फ़ेफ़ड़ें की प्रत्येक ब्रोंकोपलमनरी सेगमेंट और संपूर्ण श्‍वासनलिका को दूरबीन की सहायता से जाँचने की क्रिया को ‘ब्रोंकोस्कोपी’ कहते हैं। ‘ब्रोंकोस्कोप’ नाम की एक पतली नली होती है। इस नली को मुख मार्ग से श्‍वसननलिका में नीचे खिसकाया जाता है और संपूर्ण श्‍वसननलिका और ब्रोंकोपलमनरी सेगमेंट्स की दूरबीन से जाँच की जाती है। इस क्रिया में ब्रोंकस में फ़ंसी हुई कोई भी वस्तु (foreign body) निकाली जा सकती है। यदि फ़ेफ़डे में पस जम गया होगा तो वह निकाला जा सकता है। साथ ही जाँच के लिए फ़ेफ़डे का एकाद हिस्सा भी निकाल सकते हैं। इसे (biopsy) कहते हैं।(क्रमश:) 

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