रानील विक्रमसिंघे ने श्रीलंका के प्रधानमंत्रीपद की शपथ ग्रहण की

कोलंबो – श्रीलंका भयंकर आर्थिक, राजकीय संकट में होते समय, रानील विक्रमसिंघे ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण की है। 73 वर्षीय विक्रमसिंघे फिर एक बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री पद पर आये होकर, उनके सामने देश की पूरी तरह बिगड़ी हुई व्यावस्था को फिर से पटरी पर लाने की चुनौती है। श्रीलंका में बनी दारूण परिस्थिति को मद्देनज़र करते हुए. इस देश के कुछ राजनीतिक दलों ने विक्रमसिंघे को समर्थन घोषित किया। इस कारण, संसद के प्रतिनिधि न होते हुए भी रानील विक्रमसिंघे प्रधानमंत्रीपद पर विराजमान हुए हैं।

रानील विक्रमसिंघे ने श्रीलंका के प्रधानमंत्रीपद की शपथ ग्रहण कीराष्ट्रपति गोताबाया राजपक्षे ने विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई। 7३ वर्षीय रानील विक्रमसिंघे की युनायटेड नॅशनल पार्टी(युएनपी) को सन 2020 के चुनावों में दारूण असफलता मिली थी। लेकिन विद्यमान हालातों को देखते हुए, बहुत बड़ा अनुभव रहनेवाले विक्रमसिंघे के हाथ में प्रधानमंत्री पद ली बागड़ोर सौंप दी गयी है। उनके नेतृत्त्व में श्रीलंका को अपेक्षित विदेशी सहायता प्राप्त होगी और उसके बल पर इस देश का अर्थकारण तथा अंतर्गत व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाया जा सकता है, ऐसी उम्मीद ज़ाहिर की जा रही है।

इसी बीच, श्रीलंका स्थित भारतीय उच्चायुक्तालय ने प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे की नियुक्ति का स्वागत किया है। भारत श्रीलंका की नयी सरकार की हरसंभव सहायता करेगा, ऐसा भारतीय उच्चायुक्तालय ने कहा है। चाहे जो कुछ भी हो, श्रीलंका का राजकीय संकट अभी भी टला नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के बंधु होनेवाले राष्ट्रपति गोताबाया राजपक्षे पर श्रीलंका की संसद में 17 मई को अविश्वासदर्शक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जानेवाला है। इससे नये प्रधानमंत्री के पीछे-पीछे श्रीलंका में शायद नये राष्ट्रपति भी पदभार सँभालेंगे, ऐसी गहरी संभावना जताई जा रही है।

श्रीलंका के उच्च न्यायालय ने पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे समेत उनके 15 सहयोगियों को देश छोड़कर ना जाने के आदेश दिये हैं। अनाज की किल्लत, क़ीमतों में वृद्धि, ईंधन की समस्या, बिजली की समस्या इनसे परेशान हुई श्रीलंका की जनता ने सड़कों पर उतरकर राजपक्षे को इस्तीफ़ा देने पर मजबूर किया था। उनके घर को भी ग़ुस्साए आंदोलकों ने आग लगाई थी। इस कारण महिंदा राजपक्षे को अपने परिवार सहित हेलिकॉप्टर से सुरक्षित स्थान पर ले जाना पड़ा था। फिलहाल वे श्रीलंकन नौसेना की सुरक्षा में हैं, ऐसा बताया जाता है।

आनेवाले समय में राजपक्षे को भ्रष्टाचार और गैरव्यवहार की जाँच का सामना करना पड़ेगा, ऐसा दिख रहा है। इसी लिए श्रीलंका के सर्वोच्च न्यायालय ने राजपक्षे को उनके सहयोगियों समेत देश छोड़कर न जाने के आदेश दिये हैं। राजपक्षे के कार्यकाल में ही श्रीलंका की अधोगति शुरू हुई थी। ख़ासकर चीन से बड़े ब्याजदरों पर राजपक्षे ने कर्ज़ लेकर श्रीलंका को चिनी कर्ज के ट्रैप में फँसाया था। उनके कारण श्रीलंका को अपना हंबंटोटा यह अहम बंदरगाह 99 सालों के लिए चीन के हवाले करना पड़ा। कोरोना की महामारी और उसके पश्चात् युक्रेन के युद्ध के कारण श्रीलंकन अर्थव्यवस्था पर का संकट अधिक ही तीव्र हुआ और राजपक्षे ने इससे पहले किया यह सारा गैरव्यवहार देश की जनता के सामने आया। उसी की गूँजे इन दिनों श्रीलंका में सुनाई देने की बात दिख रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.