श्रीलंका की अर्थव्यवस्था गहरे वित्तीय संकट में

  •  कर्ज़ के भुगतान के लिए नहीं बचे पैसे
  • विदेशी मुद्रा भंड़ार में आई गिरावट
  • कई चीज़ों के आयात पर रोक लगाने की मज़बूरी

वित्तीय संकटकोलंबो – चीन से काफी ज्यादा कर्ज़ उठानेवाला श्रीलंका काफी बड़े आर्थिक संकट से घिर चुका है। श्रीलंका के विदेशी मुद्रा भंड़ार में बड़ी गिरावट आई हैं और मात्र तीन महीनों के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा का भंड़ार शेष बचा है। इस वजह से कई वस्तूओं के आयात पर रोक लगाने के लिए श्रीलंका मज़बूर हुई है। साथ ही कर्ज़ की किश्‍तों का भुगतान करने के लिए भी श्रीलंका के पास पैसें नहीं बचे हैं और अगले पांच वर्षों के दौरान श्रीलंका पर विदेशी कर्ज़ का भार बढ़कर २९ अरब डॉलर्स तक जा पहुँचेगा, यह ड़र भी कुछ रपटों में जताया गया है।

श्रीलंका के पेट्रोलियममंत्री उदया गम्मापिल्ला ने कुछ दिन पहले ही यह बयान किया था कि, देश में आवश्‍यक र्इंधन के पैसे चुकाने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं। साथ ही अंतरराष्ट्रीय पतमानांकन ‘फिंच’ संस्था ने बीते महीने श्रीलंका का पतमानांकन कम करके ‘सीसीसी’ किया था। ‘सीसीसी’ पतमानांकन कर्ज़ का भुगतान करने में श्रीलंका ‘डिफॉल्टर’ होने की संभावना दर्शाता है। श्रीलंका के डिफॉल्ट को लेकर निवेशकों की चिंता कम करने के लिए बीते महीने १ अरब डॉलर्स का इस्तेमाल करने का ऐलान किया गया था। साथ ही देश के विदेशी मुद्रा भंड़ार में ४ अरब डॉलर्स होने की जानकारी भी श्रीलंका की सेंट्रल बैंक ने साझा की थी।

अब श्रीलंका के हाथों में सिर्फ अगले तीन महीनों तक आयात के लिए आवश्‍यक विदेशी मुद्रा होने के वृत्त प्राप्त हो रहे हैं। इस वर्ष चीन के कर्ज़ का भुगतान करन के लिए श्रीलंका को ३.७ अरब डॉलर्स की आवश्‍यकता है। इनमें से १.३ अरब डॉलर्स श्रीलंका ने चुकाए हैं। इसके अलावा, स्थानीय कर्ज का भार भी श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। इसमें श्रीलंका के चलन का मूल्य विश्‍व के अन्य प्रमुख चलनों की तुलना में काफी मात्रा में कम होने से कर्ज़ का भुगतान करना श्रीलंका के लिए महँगा हो गया है। विदेशी मुद्रा भंड़ार में हो रही गिरावट के संकट से संभलने के लिए श्रीलंका अब भारत और चीन से सहायता ले रहा है। बीते वर्ष के अगस्त में श्रीलंका ने भारत के साथ ४० करोड़ डॉलर्स का ‘करन्सी स्वैपिंग’ यानी चलन की अदला-बदली की थी। इसके अलावा मौजूदा वर्ष में श्रीलंका ने चीन के साथ १.५ अरब डॉलर्स का ‘करन्सी स्वैपिंग’ की थी।

इसके बावजूद श्रीलंका के लिए स्थिति प्रति दिन कठिन होती जा रही है। कम होता विदेशी मुद्रा भंड़ार और उस पर कर्ज़ का भार से श्रीलंका की चिंता बढ़ी है। इस वजह से श्रीलंका में विदेशों से आयात हो रहे शक्कर, टूथब्रश, विनेगर समेत करीबन सौ से अधिक वस्तुओं के आयात पर या तो रोक लगाई गई है या आयात करने के लिए लायसन्स प्राप्त करना अनिवार्य किया गया है। साथ ही अलग अलग प्रकार के रासायन, गाड़ियाँ, मसालों के पदार्थों का आयात कम किया गया है। इस वजह से श्रीलंका में कई चीज़ों की सप्लाई कम हुई है। ग्राहकों को कई आवश्‍यक वस्तुओं की किल्लत निर्माण होने से इन वस्तुओं की कीमतों में बड़ी बढ़ोतरी हुई है। इसके विरोध में श्रीलंका में प्रदर्शन भी शुरू होने की खबरें हैं।

इसी में कोरोना की महामारी के संकट से श्रीलंका का पर्यटन क्षेत्र काफी प्रभावित हुआ है। इसी क्षेत्र से श्रीलंका को विदेशी चलन प्राप्त हो रहा था। साथ ही इसी क्षेत्र में ३० लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध होता है। श्रीलंका के कुल ‘जीडीपी’ में पर्यटन क्षेत्र का हिस्सा ५ प्रतिशत है। इस वजह से इस क्षेत्र की मंदी ने श्रीलंका की कमर तोड़ रखी है। वर्ष २०१९ में श्रीलंका में इस्टर संड़े के दिन हुए आतंकी हमले में २५० से अधिक लोग मारे गए थे। इसके बाद पर्यटकों ने श्रीलंका को पीठ दिखाई थी। इसके बाद श्रीलंका का पर्यटन उद्योग अभी तक संभल नहीं सका है। इसी बीच कोरोना की महामारी ने स्थिति और भी बिगाड़ी है।

श्रीलंका पर कर्ज़ के कुल भार का १० प्रतिशत कर्ज़ चीन से प्राप्त किया गया है। इसके अलावा अन्य कर्ज़ अंतरराष्ट्रीय बाज़ार से उठाया गया है। श्रीलंका में राज कर रही गोताबाया राजपक्षे और महिंदा राजपक्षे इन बंधुओं की सरकार अपनी चीन समर्थक नीति के लिए पहचानी जाती है। महिंदा राजपक्षे के राष्ट्राध्यक्ष पद के कार्यकाल के दौरान चीन से महँगे दर पर प्राप्त किए गए कर्ज़ का भुगतान करने के लिए श्रीलंका अपना हंबंटोटा बंदरगाह चीनी कंपनी को ९९ वर्ष के लिए भाड़े पर देने के लिए मज़बूर हुआ था। इसके बाद ही मैत्रिपाला सिरिसेना की सरकार ने भारत के साथ संबंध जोड़ने के लिए अधिक अहमियत दी। इसके बाद फिर से सत्ता स्थापित करनेवाले राजपक्षे ने भारत और चीन के संबंधों में संतुलन बनाने की नीति अपनाई है। फिर भी, राजपक्षे की नीति का झुकाव अभी भी चीन की ओर ही दिखाई दे रहा है।

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