‘जीएसटी’ के संविधान सुधार बिल पर राष्ट्रपती के हस्ताक्षर

नवी दिल्ली, दि. ८ (वृत्तसंस्था) – लोकसभा और राज्यसभा के साथ साथ देश के १६ राज्यो ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को मंज़ुरी देने के बाद गुरुवार को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी ‘जीएसटी’ के संवैधानिक सुधार बिल पर हस्ताक्षर किए| अगले वित्तीय वर्ष से ‘जीएसटी’ लागू करने के लिए सरकार कोशिश कर रही है| इस वजह से, नियमों के अनुसार, राष्ट्रपति ने मंज़ुरी देने के बाद अगले ६० दिनों में करनिर्धारण, उपकर आदि निश्‍चित करने के लिए ‘जीएसटी’ परिषद का गठन करना होगा|

‘जीएसटी’जून महीने के मॉन्सून सत्र में, संसद के दोनो सभागृह में, ‘जीएसटी’ के लिए संवैधानिक प्रावधान निश्चित करनेवाले विधेयक को मंज़ुरी मिली है| इस मंज़ुरी के तीन महीने के अंदर, देश के ३२ में से १६ राज्यों ने इस विधेयक को मंजुरी देना आवश्यक था| ‘जीएसटी’ को सभी पार्टियों का समर्थन रहने के कारण यह मंज़ुरी आसानी से मिल सकी| अब तक १६ से अधिक राज्यों ने ‘जीएसटी’ को मंज़ुरी दी है|

इसके बाद यह विधेयक राष्ट्रपति के पास मंज़ुरी के लिए भेजा गया था| राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने ‘जीएसटी’ संदर्भ में संवैधानिक सुधार को मंज़ुरी दी है| राष्ट्रपति मुखर्जी ने इस संदर्भ के विधेयक पर हस्ताक्षर किए हैं| इस वजह से ‘जीएसटी’ अब क़ानून में परिवर्तित हो चुका है| इस कारण, अब दो महीनों में ‘जीएसटी’ परिषद की स्थापना करते हुए कररचना तैयार करनी पडेगी| इस कररचना पर राज्यसभा में चर्चा होगी और उसको मंज़ुरी मिलने के बाद ‘जीएसटी’ लागू करने का रास्ता साफ़ होगा|

इससे पहले केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (सीजीएसटी), एकात्मिक वस्तू एवं सेवा कर (आयजीसीएसटी) क़ानूनों के अलावा सभी राज्यों को स्वतंत्र ‘सीजीएसटी’ क़ानून बनाना होगा| इन तीन क़ानूनों को देश के २९ राज्यों से मंजुरी मिलने के बाद यह कानून लागू होगा|

‘जीएसटी’ की वजह से कररचना सुलभ होगी और इसका लाभ देश को होगा| इस वजह से निवेश बढेगा, साथ ही कुछ वस्तुओं के दाम कम होंगे, ऐसा दावा किया जा रहा है| केंद्र सरकार ने, १ अप्रैल से जीएसटी लागू करने की घोषणा की थी|

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