इस्रो ने किया ‘इन्सॅट-३डी आर’ का सफल प्रक्षेपण

श्रीहरिकोटा, दि. ८ (वृत्तसंस्था) –  गुरुवार को इस्रो ने अंतरिक्षक्षेत्र में एक और छलांग लगाई| ‘इन्सॅट-३डी आर’ यह भारत का आधुनिक हवामान उपग्रह ‘जीएसएलव्ही-एफ०५’ इस रॉकेट प्रक्षेपण के जरिये सफल रूप में अंतरिक्ष में छोड़ा गया| इस प्रक्षेपण के लिए, ‘जीएसएलव्ही’ के अपर स्टेज में किया गया क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल, भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र के लिए महत्त्वपूर्ण है|

INSAT 3DR - ‘इन्सॅट-३डी आर’

यह क़ामयाबी यानी स्वदेशी बनावट के क्रायोजेनिक इंजिन के लिए भारतीय संशोधक पिछले दो दशकों से जो कड़ी मशक्कत कर रहे हैं, उसका नतीजा है। अगले वर्ष ‘चांद्रयान-२’ मुहिम के लिए ‘जीएसएलव्ही’ में क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया जानेवाला है| इस दृष्टि से भी, यह सफलता काफ़ी महत्त्वपूर्ण मानी जाती है|

‘इन्सॅट-३डी आर’ यह हवामान के बारे में जानकारी देनेवाला भारत का काफ़ी ऍड्वान्स उपग्रह, गुरुवार को शाम ४.५० बजे सफल रूप में अंतरिक्ष में छोड़ा गया| इस उड्डाण के चंद १७ मिनटों में यह उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थिर हुआ, ऐसी घोषणा इस्रो के वैज्ञानिकों ने की|

२ हजार २११ किलो का यह उपग्रह रात के समय में भी और खराब मौसम में भी हवामान की सही जानकारी दे सकता है| इस पर बिठाए गए थर्मल इन्फ्रारेड बँड की वजह से समंदर के तापमान की भी सही जानकारी मिल सकेगी, ऐसा कहा जाता है| इस वजह से, हवामान का सही अंदाज़ा लगाने के साथ तटरक्षक दल, विमान उड्डयन, समुद्री यातायात के लिए भी इस उपग्रह से मिलनेवाली जानकारी उपयोग साबित होगी|

इस्रो ने इस उपग्रह के प्रक्षेपण के लिए ‘जीएसएलव्ही’ रॉकेट प्रक्षेपक का इस्तेमाल किया| भारतीय बनावट के ‘जीएसएलव्ही’ की यह दसवीं उड़ान थी| लेकिन इस प्रक्षेपण में, ‘जीएसएलव्ही’ के अपर स्टेज में किए, भारतर्य बनावट के क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल महत्त्वपूर्ण है| ‘जीएसएलव्ही’ यह तीन स्तर का अंतरिक्षयान है और इस यान के तीसरे और आख़िरी स्तर पर पहली ही बार, भारतीय बनावट के क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया है और यह सफल हुआ है|

भारत के पास क्रायोजेनिक इंजन न होने की वजह से भारत का अंतरिक्षकार्यक्रम पिछड गया था| १९९० के दशक में अमरीका ने, भारत को ‘क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी’ देने पर पाबंदी लगायी थी| सोव्हिएत रशिया के विघटन के बाद दुबले बने रशिया ने उस समय अमरीका के इन निर्बंधों का स्वीकार करते हुए भारत को ‘क्रायोजेनिक टेक्नोलॉजी’ देने से इन्कार किया था| इसके बाद भारतीय अनुसंधानकर्ताओं ने, भारत में ही क्रायोजेनिक इंजन का निर्माण करने की ठान ली| दो दशकों के प्रयासों के बाद, भारतीय संशोधको ने इस इंजन का निर्माण किया है| साथ ही, दो वर्ष पहले इसका सफल परीक्षण भी किया गया और भारत यह टेक्नॉलॉजी हासिल करनेवाले गिनेचुने देशों की श्रेणि में जाकर बैठ गया| इस क्रायोजेनिक इंजन का, अंतरिक्षयान के अपर स्टेज में किया गया इस्तेमाल सफल होना, यह बात इस्रो की आगामी महत्त्वाकांक्षी मुहिमों के लिए अहम साबित होती है| आनेवाले वर्षों में, इस्रो चांद्रयान-२ मुहिम हाथ लेनेवाला है| उस समय, ‘जीएसएलव्ही’ में क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल करने की योजना है|

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