मार्गारेट मीड (१९०१ -१९७८)

‘‘समाज को कैसा होना चाहिए या कैसे चलाना चाहिए, इससे संबंधित मतभेद रखनेवाले समूहों के लिए युद्ध के अलावा अन्य विकल्प भी हैं, इस बात को किस प्रकार से महसूस करना है, यही हमारे समक्ष सबसे बड़ी समस्या है।’’ -मार्गारेट मीड

margaret- मार्गारेट मीडएक शिक्षिका, लेखक, व्याख्याकार, छायाचित्रकार, स्त्री-मुक्ति के लिए संघर्ष करनेवाली, कार्यकर्ता, सलाहगार एवं संशोधक इन विभिन्न प्रकार के रंगों एवं छटाओं में निखरा हुआ व्यक्तित्व था मार्गारेट मीड का, जो मानव शास्त्रज्ञ के रूप में अपनी पहचान रखती हैं।

पिता प्राध्यापक एवं माँ सामाजिक कार्यकर्ता ऐसे परिवार में सोलह दिसंबर १९०१  को मार्गारेट का जन्म हुआ। इनके माता-पिता को एक स्थान पर स्थायिक होना नसीब नहीं हुआ, उनको कभी हॅम्पटन, कभी न्यू जर्सी तो कभी ग्रीन विच इस तरह लगातार अपना ठिकाना बदलते रहना पडा। कहीं पर एक दिन तो दूसरे स्थान पर दो वर्ष भी इस तरह रहने के कारण मार्गारेट पर इसका काफी प्रभाव पड़ा। विभिन्न स्थानों पर रहने के कारण मार्गारेट के पास अनुभवों की गठरी जमा हो गई परन्तु इसके साथ ही उनके व्यक्तित्त्व में पूरे जोश के साथ आगे बढ़ने की, नेतृत्व करने की शुरुआत भी इसी दौरान हुई।

परिवार के साथ भटकते रहने के कारण मार्गारेट की शिक्षा भी विभिन्न स्कूलों में पूरी होती रही। ऐसे में ही कई बार तो स्कूल में प्रवेश भी न मिल पाने के कारण घर पर उनकी पढ़ाई का ध्यान उनकी दादी को रखना पड़ा। इसके पश्‍चात् मात्र मार्गारेट ने बर्नार्ड महाविद्यालय से मानसशास्त्र विषय में उपाधि लेकर, कोलंबिया विश्‍वविद्यालय से डॉक्टरेट की पढ़ाई पूर्ण की। बर्नार्ड महाविद्यालय में ही मार्गारेट फ्रांस बोआस एवं रूथ बेनेडिक्ट नामक संशोधनकर्ता के संपर्क में आयीं और उन्होंने मानववंशशास्त्र की पढ़ाई आरंभ कर दी।

इस अध्ययन काल के दौरान मार्गारेट को प्रशांत (पॅसिफिक) महासागर के ‘अमेरिकन सॅमोआ’ इस बंदरगाह पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ। बंदरगाह पर कार्यरत रहने के दौरान उन्होंने मुख्य तौर पर मूल संस्कृति के घटक रहनेवाले नागरिकों के बर्ताव पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। स्थानिक संस्कृति में पलने-बढ़ने वाली युवतियों पर अपना अध्ययन कार्य करते समय उन्हें कुछ बातों का एहसास विशेष रूप से हुआ। आधुनिक युग में पलने-बढ़ने वाली अमेरिकन युवतियों की अपेक्षा सॅमोअन युवतियाँ युवावस्था में होनेवाले शारिरीक बदलावों का सामना बड़ी ही सहजतापूर्वक कर लेती हैं, इस बात पर भी उन्होंने गौर किया। अगले कुछ महीनों तक मार्गारेट ने अनेक सॅमोअन युवतियों के साथ संभाषण करके इससे संबंधित गहरी जानकारी हासिल की।

सॅमोअन युवतियों के साथ किए गए संभाषण का निष्कर्ष मार्गारेट ने ‘कमिंग ऑफ अ‍ॅज इन सॅमोआ’ नामक पुस्तक के द्वारा प्रसिद्ध किया। इस पुस्तक के माध्यम से मार्गारेट ने ‘केवल अनुवंशिकता (जेनेटिक्स) पर ही व्यक्तित्व निर्भर करता है’ इस बात को पूरे विश्‍वास के साथ साबित किया। ‘व्यक्तित्व-निर्माण में संस्कृति का महत्त्वपूर्ण योगदान रहता है’ यह नया निष्कर्ष मार्गारेट ने प्रस्तुत किया। इस निष्कर्ष से केवल अमेरिका को ही नहीं बल्कि यूरोपीय समाज को भी गहरा झटका लगा।

इसके पश्‍चात् मार्गारेट ने न्यू गिनिआ वाली इस्ट इंडिज जैसे अनेक स्थलों का दौरा करके वहाँ के स्थानीय लोगों के साथ मुलाकात की। इन सभी स्थानों की स्थानिक संस्कृति एवं वहाँ के जनजीवन का मार्गारेट ने बड़ी बारीकी से अध्ययन किया। यह अध्ययन करते समय स्थानिक जनजीवन का चित्र प्रस्तुत करनेवाले छायाचित्र भी मार्गारेट ने निकाले। इसी कारण मार्गारेट द्वार प्रस्तुत किये गए निरीक्षणों को एवं निष्कर्षों को एक अलग ही महत्त्व प्राप्त हुआ। इससे पूर्व मानववंशशास्त्र के अध्ययन की दृष्टि से इस प्रकार से कोशिश किसी ने भी नहीं की थी। अध्ययनकाल में मार्गारेट ने नियम एवं मुद्दों पर ही निर्भर न रहकर, इससे बाहर निकलकर पोषणशास्त्र, मानसशास्त्र, निसर्गशास्त्र इन सभी का समावेश उन्होंने अपने अध्यनन के अन्तर्गत किया।

मानववंशशास्त्र यह विस्तृत एवं मानव-सापेक्ष होने के कारण उस विज्ञान की रूढ़ चौखट में नहीं बिठाया जा सकता है। उनका यह इरादा भी दृढ़ था और दुनिया को भी उन्होंने यही समझाने की कोशिश की। दुनिया की हर एक संस्कृति, वंश मानव के सभी विभिन्न परिस्थितियों में एवं वातावरणों में निर्मित हुए हैं और अब भी उनकी निर्मिति इसी प्रकार से हो रही है, इसीलिए कोई एक नियम दूसरे के लिए जैसे का तैसा लागू नहीं हो सकता है, ऐसा मार्गारेट का मानना था। इस बात को साबित करते समय स्त्री-पुरुषों की समाज में होनेवाली भूमिका, बच्चों का पालन-पोषण करने का तरीका लोकसंख्या-वृद्धि इस प्रकार के अनेक विषयों पर मार्गारेट ने लिखना एवं व्याख्यान देना आरंभ कर दिया। उनके विभिन्न विषयों से संबंधित अध्ययन के कारण अमेरिका के तत्कालीन राजकीय नेतृत्व ने भी इन सामाजिक समस्याओं पर मार्गारेट से सलाह लेना आरंभ कर दिया।

आरंभिक काल में लिखे गए ‘कमिंग ऑफ अ‍ॅज इन सॅमोआ’ इस पुस्तक के पश्‍चात् मार्गारेट ने ‘अ ह्युमन सायन्स’ एवं ‘मेल अ‍ॅण्ड फीमेल’ इस पुस्तक के माध्यम से अपना मानववंशशास्त्र का निष्कर्ष प्रकाशित किया। दुनिया भर की विभिन्न मानवी संस्कृतियों का इतिहास पश्‍चिमी राष्ट्रों में सच्चे स्वरूप में प्रस्तुत करने में मार्गारेट ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन में से कुछ बातें कालांतर में विवादस्पद बनकर रह गयींअथवा इसके प्रति मार्गारेट पर की इलज़ाम भी लगाये गए। लेकिन मार्गारेट अपने निष्कर्ष के प्रति कभी भी विचलित नहीं हुईं।

आज इक्कीसवी सदी में बढ़ते हुए व्यापारीकरण के कारण अनेक पुरानी संस्कृतियों का द्रुतगति के साथ विलय होता जा रहा है अथवा उनके नष्ट होने का भी भय निर्माण हो चुका है। इन संस्कृतियों के साथ साथ उन्हें जीवित रखने के लिए आवश्यक होने वाले कुछ अच्छे मूल्य भी अनदेखा कर उलझते चले जा रहे हैं। इसी कारण सही मायने में इन संस्कृतियों को और उनके मूल्यों को सजोकर रखने की आवश्यकता निर्माण हो चुकी है। इन परिस्थितियों में हमारे बहुमूल्य संशोधकों ने समाज को योग्य मार्गदर्शन करनेवाले प्रसंग और इनके लिए संघर्ष करनेवाली मार्गारेट मीड के समान व्यक्तित्त्व की कमी महसूस होती है।

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