नेताजी-१०१

११ फरवरी १९३८ को सुभाषबाबू बाँबे मेल से हरिपुरा जाने निकले। सुभाषबाबू इस रेलगाड़ी में स़फर कर रहे हैं, यह ख़बर आगे फैल चुकी थी। अतः वे जहाँ भी जाते, वहाँ लोग अपने इस नवनिर्वाचित ‘राष्ट्रपति’ को देखने के लिए बड़े प्यार से इकट्ठा होते, मार्गदर्शन के तौर पर चार लब्ज़ बोलने का आग्रह उनसे करते थे। तब तक रेलगाड़ी को निकलने नहीं देते थे। फिर लोगों की ज़िद के कारण सुभाषबाबू को छोटासा ही सही, लेकिन भाषण देना पड़ता था। जहाँ जहाँ भी गाड़ी रुकती थी, वहाँ का माहौल ‘वन्दे मातरम्’, ‘महात्मा गाँधी की जय’, ‘सुभाषबाबू की जय’ ऐसी घोषणाओं से गूँज उठता था। कुल मिलाकर इस हरिपुरा अधिवेशन के कारण पूरे देश में ही ऐसी नवचेतना फैल गयी थी कि मानो किसी ने जादू की छड़ी घुमायी हो।

….और जनसागर का यही उत्साह अंग्रे़ज सरकार के पेटदर्द का नया कारण साबित हुआ था। इसलिए इस सारे उत्साह के माहौल पर एक विचित्र गूढ़तापूर्वक पुलीस नज़र जमाये हुए थी। उसीमें जापान से अग्रसर स्वतन्त्रतासेनानी राशबिहारी बोसजी ने हाल ही में सुभाषबाबू को भेजे एक ख़त को पकड़ने में पुलीस कामयाब हुई थी। (वैसे ख़त पकड़ भी लिया, तब भी उससे कुछ ख़ास फर्क़ नहीं पड़नेवाला था, क्योंकि उस समय ‘हमारे पत्रव्यवहार पर पुलीस नज़र बनाये रखे हैं’ यह मानकर ही स्वतन्त्रतासैनिक अपने ख़त चार-पाँच अलग अलग नामों से अलग अलग पते पर एवं सांकेतिक सन्देश के रूप में लिखकर भेजते थे। अत एव इसमें से एकाद ख़त तो इच्छित व्यक्ति तक पहुँच ही जाता था। ख़ैर!) तो सन १९१२ में दिल्ली के चाँदनी चौक में व्हाईसरॉय हार्डिंग्ज पर बम फेंकनेवाले जाँबाज़ राशबिहारीजी उस घटना के बाद पुलीस को चकमा देकर देश के बाहर निकलने में क़ामयाब हो गये थे और आगे चलकर जापान में बसकर भारतीय स्वतन्त्रतासंग्राम में सशस्त्र क्रान्ति करना चाहनेवाले क्रान्तिकारियों की बाहर से हर तरह की मदद कर रहे थे। ऐसे राशबिहारीजी ने सुभाषबाबू को भेजा हुआ ख़त पकड़कर उसे पढ़ने के बाद, उसमें लिखे हुए – ग़ुलामी की ज़ंजीरों को तोड़ने के लिए सशस्त्र क्रान्ति का कदम उठाने के सन्दर्भ में रहनेवाले ‘ज्वालाग्राही’ सन्देश को पढ़कर पुलीस के पैरों तले की ज़मीन ही खिसक गयी। अँग्रेज़ हुकूमत का भारत स्थित पहले नंबर का दुश्मन रहनेवाला ‘सुभाषचंद्र बोस’ यह डेंजरस आदमी कुछ भी कर सकता है, इसलिए उसपर कड़ी नज़र रखी जाये, यह सूचना दिल्ली पुलीस से लगातार सभी प्रान्तों की पुलीस को दी जा रही थी। गाँधीजी द्वारा अध्यक्षपद के लिए सुभाषबाबू के नाम का ज़िक्र किया जाना, यह बात उन दोनों के बीच के घटते हुए फासले को स्पष्ट कर रही थी और यही बात सरकार की आँखों में चुभ रही थी। इस फासले को पुनः बढ़ाने की हर संभव कोशिश करते रहिए, यह सूचना भी दिल्ली पुलीस ने मुंबई पुलीस को दी थी। साथ ही सुभाषबाबू के अध्यक्षीय भाषण पर पुलीस की नज़र रहनेवाली थी और भावना भड़कानेवाले भाषण के आरोप में उन्हें गिऱफ़्तार करने के लिए सभी प्रकार की क़ानूनी तैयारी करना भी पुलीस ने शुरू कर दिया था।

‘वन्दे मातरम्’रास्ते में कई स्टेशनों में स्वागत एवं मुबारक़बाद का स्वीकार करते हुए सुभाषबाबू की गाड़ी दादर पहुँच गयी। दादर में ‘न भूतो न भविष्यति’ इस तरह अध्यक्षजी का भव्य स्वागत काँग्रेसजन एवं जनता की तऱफ से किया गया। काँग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्षजी को ले जाने के लिए दादर से गुजरात के लिए एक ख़ास रेलगाड़ी का इन्तज़ाम किया गया था। सेनापति बापटजी, बॅ. नरिमन इन जैसे सुभाषबाबू के मुंबईस्थित समर्थक भी इस गाड़ी में उनके साथ सवार हुए। देर से ही सही, लेकिन सुभाषबाबू को यह सर्वोच्च बहुमान मिलने के कारण खुशी से झूम उठे उनके समर्थकों के लिए मानो आसमान ही झुक गया था।

नवसारी स्टेशन में सुभाषबाबू उतर गये और वहाँ दिखायी दे रहे दृश्य को देखकर वे दंग ही रह गये। उनका स्वागत करने के लिए इकट्ठा जमाव बड़े उत्साह के साथ नारे लगा रहा था। आज तक सुभाषबाबू कई अधिवेशनों में उपस्थित रह चुके थे, लेकिन साधारण ग़रीब देहाती जनता का ऐसा अभूतपूर्व उत्साह आज तक उन्होंने कहीं नहीं देखा था। सारा माहौल जयकार के नारों से गुँज उठा था। सुभाषबाबू बड़ी खुशी एवं थोड़ेबहुत विस्मय के साथ उस स्वागत को देख रहे थे। अध्यक्षजी के चेहरे पर झलक रही खुशी देखकर सभी का श्रमपरिहार हो चुका था। सरदार पटेल और स्वागताध्यक्ष दरबार गोकुळदासजी ने सुभाषबाबू का स्वागत किया। पिछली कड़वाहट भूलकर सरदार पटेल ने अध्यक्षजी को दृढ़ आलिंगन दिया।

काँग्रेस का यह इक्यावनवाँ अधिवेशन था। इसीलिए स्टेशन से लेकर अधिवेशनस्थल तक इक्यावन भव्य सुशोभित कमानों को बनाया गया था। सुभाषबाबू की इक्यावन बैलों के रथ में से शोभायात्रा निकाली गयी थी। बार्डोली सत्याग्रह में सक्रिय सम्मीलित रह चुका एक किसान सुभाषबाबू के रथ का सारथ्य कर रहा था। पूरी शोभायात्रा में ढोल-ताशे बजाते हुए, लेझीम, पटा इनका प्रदर्शन करनेवाले स्वयंसेवक बड़े उत्साह के साथ शामिल हुए थे। शोभायात्रा के आगे इक्यावन बँडपथक एक ही लय में देशभक्तिपर गीत बजा रहे थे। जगह जगह शोभायात्रा में सुभाषबाबू को औक्षण किया जा रहा था।

मृदुला साराभाई के मार्गदर्शन में महिलाओं का पथक भी संचलन कर रहा था। अधिवेशन के दौरान रात को जिन स्वयंसेवकों को गश्त के लिए नियुक्त किया गया था, उनमें लाठियाँ चलाना सीखी हुईं महिलाएँ भी निर्भयतापूर्वक हाथ में लाठियाँ लेकर गश्त कर रही थीं।

अधिवेशनस्थल पहुँचते ही, चन्द कुछ महिनों पूर्व यह वीरान बंजर ज़मीन थी, इस बात पर किसी को भी विश्‍वास ही नहीं हो रहा था, इस तरह से उस जगह का नक़्शा ही बदल दिया गया था। प्रतिनिधियों के लिए बांस से बनीं शानदार झोपड़ियाँ, पाँच सौ गायों की डेअरी, एकसाथ दस हज़ार लोग जहाँ खाना खाने बैठ सकते हैं, ऐसे पाँच-छः अतिभव्य भोजनालय, चार-पाँच सौ दुकानोंवाले तीन बाज़ार, आनेवाले किसानों की बैलगाड़ियाँ ‘पार्क’ करने के लिए बनाये गये बड़े बड़े ‘पार्किंग लॉट्स’ इस तरह एक छोटा-सा शानदार शहर ही वहाँ पर बसाया गया था। इतना ही नहीं, बल्कि चुनावों में बुलन्द क़ामयाबी हासिल कर चुकी काँग्रेस ही अब धीरे धीरे भविष्य में सत्ताधारी बननेवाली है यह जानकर फोर्ड कंपनी ने, उस समय बज़ार में हाल ही में आयी हुईं शानदार नयी-नवेली ‘व्ही-९’ गाड़ियाँ अधिवेशन अध्यक्ष एवं अन्य नेताओं की ख़ातिरदारी करने के लिए पेश की थीं। अब देश में काँग्रेस का राज आने ही वाला है, इस मानसिकता का लोगों के द्वारा स्वीकार किये जाने का ही यह संकेत था।

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