म्हैसूर भाग – १

हर एक जीव को, फिर चाहे वह मानव हो या कोई भी अन्य प्राणि हो, उसे जीवित रहने के लिए कुछ न कुछ तो खाना ही पड़ता है। मानव ने अपनी बुद्धि के बल पर एक बहुत बड़ी खाद्यसंस्कृति को विकसित किया है। हमारे भारत में तो विभिन्न प्रदेशों में तरह-तरह के पदार्थ बनाये जाते हैं। कुछ वर्ष पूर्व दक्षिणी पदार्थों में ‘म्हैसूर मसाला डोसा’ यह पदार्थ सभी जगह उपलब्ध होने लगा। बचपन से ‘म्हैसूर पाक’ इस मिठाई का नाम तो हम सबने सुना ही होगा। हालाँकि खाद्यपदार्थों की चर्चा करना यह ‘अवती-भोवती’ का विषय नहीं है, लेकिन इन पदार्थों के नाम में ‘म्हैसूर’ इस शब्द को सुनते ही याद आता है, कर्नाटक का म्हैसूर यह शहर। तो चलिए, आज हम इस म्हैसूर की ही थोड़ी-सी सैर करते हैं।

Mysore- म्हैसूर

किसी भी शहर का विकास होने से पहले वह एक छोटेसे गाँव या देहात के रूप में रहता है। ‘महिशुरु’ ‘महिसुरु’ इस तरह के नामों का प्रवास करते हुए इस शहर का नाम ‘म्हैसुरु’ बन गया। अंग्रे़जों के जमाने में उन्होंने उनकी पद्धति के अनुसार इसका नाम बदलकर ‘मैसोर’ कर दिया।

आज म्हैसूर यह शहर जहाँ पर स्थित है, वह स्थान १५ वी सदी तक ‘पुरगेरे’ इस नाम से जाना जाता था। दरअसल म्हैसूर यह शहर पहले से ही म्हैसूर इस रियासत की राजधानी के तौर पर मशहूर था। म्हैसूर रियासत, म्हैसूर शहर और वोडेयर राजवंश ये सभी आपस में कईं सदियों से जुड़े हुए हैं।

म्हैसूर इस शहर के इतिहास की शुरुआत होती है, ‘गंग’ इस राजवंश से। गंग राजवंश के म्हैसूर पर शासन करने से पहले का म्हैसूर का इतिहास उपलब्ध नहीं होता। २री सदी में म्हैसूर पर गंग राजवंश का शासन था। उनके बाद ‘चोळ’ राजवंश की कुछ सदियों तक म्हैसूर पर हु़कूमत थी। उसके बाद म्हैसूर पर चालुक्यों का राज था। साधारणतः १२वी सदी में म्हैसूर की सत्ता होयसाळ राजवंश के हाथ में थी और फिर १४ वी सदी से वोडेयर राजवंश और म्हैसूर यह मानो एक समीकरण ही बन गया और यह घनिष्टता भारत की आ़जादी तक अबाधित रही।

दक्षिणी भारत के इतिहास में विजयनगर साम्राज्य का नाम अग्रसर है। विजयनगर के इस वैभवशाली और प्रबल साम्राज्य का दक्षिणी भारत पर अधिपत्य था। कुछ समय तक म्हैसूर रियासत और म्हैसूर यह शहर भी विजयनगर साम्राज्य का एक हिस्सा थे।

म्हैसूर पर शासन करनेवाले वोडेयर राजवंश का इतिहास काफी दिलचस्प है। बीच की कुछ समयावधि को छोड़ दें, तो इस वोडेयर राजवंश ने इसवी १३९९ से लेकर इसवी १९४७ तक म्हैसूर पर शासन किया है।

यह राजवंश ‘वोडेयर’ या ‘वडियर’ इन नामों से जाना जाता है। दरअसल ‘ओडेयर’ इस कन्नड शब्द से ये दोनों शब्द बने हैं। ‘ओडेयर’ इस शब्द का अर्थ है, मालिक या राजा।

इस राजवंश के सन्दर्भ में ऐसी कथा प्रचलित है कि इस राजवंश के दो मूलपुरुष थे। उनके नाम थे, ‘यदुराय’ और ‘कृष्णराय’। ये यदुराय और कृष्णराय ये दोनों मथुरा के ‘यादव राजदेव’ नामक राजा के पुत्र थे। इसवी १३९९ में ये दोनों अपनी क़िस्मत आ़जमाने के लिए दक्षिणी भारत में आ गये। विजयनगर के बाद कावेरी नदी को पार करके वे म्हैसूर नामक गाँव के पास पहुँच गये। उस समय म्हैसूर के राजा ‘चामराज’ की मृत्यु हो चुकी थी और ‘मार नायक’ नामक एक व्यक्ति ने वहाँ की हु़कूमत जबरदस्ती से अपने हाथों में ले ली थी। यह मार नायक, चामराज की पत्नी और कन्या को बहुत ही सता रहा था। चामराज की पत्नी को जब यदुराय और कृष्णराय इन राजपुरुषों के आगमन के बारे में पता चला, तब उसने अपने विश्‍वसनीय साथियों को उनके पास भेजकर सहायता करने की बिनती की। चामराज की पत्नी की बिनती को मानकर यदुराय और कृष्णराय ने गिनेचुने सहकर्मियों के साथ नायक पर आक्रमण करके उसका वध कर दिया। इस तरह म्हैसूर नाम के उस छोटे-से गाँव पर अब इस यादव राजवंश के राजपुरुषों की सत्ता स्थापित हो गयी। यदुराय ने चामराज की बेटी के साथ शादी की और वह म्हैसूर का राजा बन गया। यदुराय ने म्हैसूर पर २४ वर्षों तक राज किया और इसके बाद यदुराय के वंशजों ने म्हैसूर की सत्ता की डोर सँभाली। इस तरह यदुराय से म्हैसूर और वोडेयर इनके बीच घनिष्ट सम्बन्ध प्रस्थापित हो गया।

यदुराय के बाद उनके पुत्र, चामराज ने म्हैसूर पर राज किया। चामराज के बाद उनके पुत्र ‘थिम्मराज वोडेयर’ ने इसवी १४५९ से लेकर इसवी १४७८ तक म्हैसूर पर शासन किया। उनके बाद भी कईं वोडेयर राजाओं ने म्हैसूर पर राज किया। लेकिन इसवी १५७८ तक के वोडेयर राजाओं के बारे में, उनकी शासनव्यवस्था के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।

इसवी १५७८ से राजगद्दी पर बैठे ‘राज वोडेयर’ पराक्रमी और दूरंदेशी राजा माने जाते हैं। उनके पास शुरू में सिर्फ ३०० सैनिक और ३३ गाँव थे। इस राजा ने आसपास के इलाक़ों को जीतकर अपनी राज्यसीमा का विस्तार किया।

जब तक विजयनगर का साम्राज्य अस्तित्व में था, तब तक म्हैसूर यह उसका एक हिस्सा था, मग़र विजयनगर के साम्राज्य का अस्त हो जाने के साथ ही, म्हैसूर यह एक अलग रियासत बन गयी।

राज वोडेयर को एक प्रजाहितदक्ष राजा माना जाता है। राज वोडेयर की मृत्यु के बाद उसका पोता १४ वर्षीय चामराज (प्रथम) यह म्हैसूर का शासक बना। मग़र उम्र कम होने की वजह से उसका सेनापति ‘बेट्टड अरसू’ ही शासनव्यवस्था सँभालता था। इसके शासनकाल के दौरान म्हैसूर का विस्तार तो हुआ ही और साथ ही सेना और शस्त्रबल की दृष्टि से म्हैसूर अधिक सक्षम बन गया। म्हैसूर के ये वोडेयर राजा धार्मिक प्रवृत्ति के, विद्वानों को पनाह देनेवाले, कलानिपुण तथा कलाप्रेमी थे। उन्होंने उनके शासनकाल में कईं प्रजाहित के काम किये। कईं देवालयों का निर्माण तथा जीर्णोद्धार करने का कार्य, कईं ग्रन्थों के लेखन का कार्य उनके शासनकाल में हुआ।

चामराज की मृत्यु के बाद उसका पुत्र राज वोडेयर (द्वितीय) म्हैसूर का शासक बन गया। लेकिन इसके सेनापति और इसके बीच की अनबन के कारण इस राजा पर विषप्रयोग किया गया, जिससे उसकी मृत्यु हो गयी।

इस राज वोडेयर (द्वितीय) की सन्तान न होने के कारण उसी के वंश का ‘रणधीर कंठीरव नरसराज वोडेयर’ को राजा बना दिया गया।

यह रणधीर कंठीरव वोडेयर राजा शस्त्र चलाने में बड़ा ही निपुण था। इसकी शस्त्रनिपुणता एवं सामर्थ्य के बारे में एक कथा कही जाती है। त्रिचनापल्ली के राजा के दरबार में होनेवाला एक पहलवान अपने आप को अजेय (जिसे कोई भी जीत ना सके ऐसा) मानता था। कंठीरव वोडेयार राजा ने भेस बदलकर उस राज्य में जाकर उस पहलवान को कुश्ती करने के लिए ललकारा और उसके राजा के समक्ष ही उसे क़रारी मात दे दी। वापसी यात्रा में उसने उसकी तलवार से एक खम्भे के दो टुकड़ें कर दिये। इस राजा का काफी समय मुहिमों तथा युद्धों में ही बीता।

इन वोडेयर राजाओं में एक और राजा का नाम आदर्श राजा के रूप में लिया जाता है, ‘चिक्कदेवराज वोडेयार’।

इस चिक्कदेवराज ने अपने शासनकाल में म्हैसूर का अच्छा-ख़ासा विकास और विस्तार किया।

इस तरह वोडेयर राजाओं का शासन म्हैसूर पर चल ही रहा था कि अचानक हैदरअली और टिपू सुलतान ने म्हैसूर की हु़कूमत अपने हाथ में ले ली।

म्हैसूर पर वोडेयरों की सत्ता को पुनः स्थापित करने के लिए महारानी लक्षमण्णी ने अथक् प्रयास किये और आखिर फिर एक बार वोडेयर म्हैसूर पर राज करने लगे।
मग़र उस समय तक ब्रिटीश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अपनी जड़ें काफी म़जबूती से जमा चुकी थी और एक के बाद एक करके भारत की रियासतों को, राज्यों को अंग्रे़ज निगलते जा रहे थे। अपनी इरादों को कामयाब बनाने के लिए वे विभिन्न पद्धतियों का अवलम्बन कर रहे थे। रियासत के राजाओं को ‘अकार्यक्षम’ घोषित करने से लेकर दत्तकविधान (गोद लेने के संस्कार) को नामंज़ूर करने तक विभिन्न पद्धतियों को अंग्रे़जों ने अपनाया। तो फिर इतनी बड़ी म्हैसूर की रियासत को क्या वे बक्ष सकते थे? उस समय म्हैसूर पर ‘मुम्मडी कृष्णराज वोडेयर’ का शासन था। उसे अंग्रे़जों ने ‘अकार्यक्षम’ घोषित करके म्हैसूर की शासनव्यवस्था सँभालने के लिए दो अंग्रे़ज अफसरों को नियुक्त किया और मुम्मडी कृष्णराज को इस बात की इत्तिला दे दी। उस राजा ने भी अपने म्हैसूर रियासत की शासनव्यवस्था बिनातक़रार उन दो अंग्रे़ज अफसरों को सौंप दी! इस तरह भारत की एक और रियासत को अंग्रे़जों ने निगल लिया और वोडेयर राजाओं की म्हैसूर पर चल रही राजसत्ता खण्डित हो गयी।

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