हॅरी जेनिंग्ज

कुर्सी का मोह! पुन: उस कुर्सी को प्राप्त करने के लिए, उसे बनाये रखने के लिए अथवा किसी दूसरे को उस कुर्सी से उतारने के लिए, उसे वहाँ से उठाने के लिए भी क्यों न हो, परन्तु कुर्सी का मोह किससे टाला गया है। वैसे ही जमीन की बजाय (भारतीय बैठक) सादी कुर्सी पर बैठने की ज़रूरतें एवं कारणों का प्रमाण भी बढ़ता ही चला जा रहा है।  परन्तु सादी कुर्सी की बजाय पहिएवाली कुर्सी का उपयोग करने की नौबत आ गई तो ऐसे में उस व्यक्ति की प्रतिक्रिया क्या हो सकती है!

कुर्सीपहियों वाली कुर्सी यह दिव्यांग जीव की जीवनसाथी होती है, उसके प्रयत्नशील जीवन का आधार कहलानेवाली होती है। दिव्यांग जीवन का स्वनियंत्रित विहार करने का साधन है पहियोंवाली कुर्सी अर्थात् ‘व्हिल चेअर’। प्राप्त परिस्थिति का स्वीकार करते हुए जीने की एवं जीवन देने की कोशिशें और हँसते-हँसते किया जानेवाला पुर्नवसन है व्हिल चेअर।

आज बाजार में व्हिल चेअर के विविध प्रकार उपलब्ध हैं। उनमें से तह करके (folding) रखी जा सकने वालीं कुर्सियाँ के निर्माता हैं हॅरी जेनिंग्ज। व्यवसाय से मॅकेनिकल इंजिनीयर होनेवाले हॅरी के हर्बट एवरेस्ट नामक मित्र १९१९ में खान में होनेवाली दुर्घटना में घायल हो गए थे। इस दुर्घटना में उनकी रीढ़ की हड्डी पर चोट लगने के कारण इनके जीवन में दिव्यांगता आ गयी। इसी कारण वे लकड़ी की व्हिलचेअर लेकर ही अपना कार्य पूरा करते रहे। मग़र इसी दौरान इस व्हिल चेअर में होनेवाली त्रुटियों का उन्होंने पता लगा लिया। अपने मित्र की परेशानी देखकर हॅरी भी त्रस्त हुए। स्वयं के सन्तोष के लिए ही इस समस्या पर मात करने के लिए हॅरी ने मोटर-गाड़ी में डालकर कहीं भी ले जाया जा सके इस प्रकार की व्हिलचेअर बनाने का संकल्प किया। इसके पश्‍चात् हॅरी जेनिंग्ज ने हर्बट की सहायता से तह करके रखी जा सके इस प्रकार की हलके वजन वाली, आसानी से कहीं पर भी ले जायी सकने वाली इस प्रकार की व्हिलचेअर बनायी। इस पहिएवाली कुर्सी की उपयुक्तता देखकर का़ङ्गी बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन करने की ज़रूरत महसूस हुई। इस ज़रूरत को जानकर हॅरी जेनिंग्ज एवं हर्बट एवरेस्ट ने साथ मिलकर भागीदारी में व्यावसायिक तौर पर व्हिलचेअर का उत्पादन करना आरंभ कर दिया। इसके पश्‍चात् व्यावसायिक तौर पर इलेक्ट्रिक मोटर लगी हुई व्हिलचेअर की निर्मिति करने का सम्मान भी इन दोनों महानुभवों ने ही प्राप्त किया। १९७३ में इस एवरेस्ट अ‍ॅण्ड जेनिंग्ज कंपनी ने १,००,००० व्हिलचेअर की निर्मिति की।

ईसा पूर्व ४००० वर्ष में मानवों ने लकड़ी की वस्तुएँ बनाना आरंभ कर दिया। गोलाकार पहियों की खोज के कारण मानव प्रगतिपथ पर तेज़ी से आगे बढने लगा। ईसा पूर्व १३०० के दौरान रथों में आरी होनेवाले पहिये जोड़े जाने लगे। इजिप्त में चल न सकनेवाले नागरिकों को हाथ गाड़ी में डालकर लाया जाता था। कुर्सी को सन १५९५ में राजाश्रय प्राप्त हुआ। स्पेन के राजा फिलीप ये दूसरे अपंग थे। इनके सम्मान में एक विशेष व्हिलचेअर की निर्मिति की गयी। पैर रखने के लिए फूटरेस्ट बोर्ड की सुविधा होनेवाली शाही कुर्सी का आविष्कारण हुआ। महायुद्ध के पश्‍चात् के काल में युद्ध के कारण दिव्यांग बन जानेवाले सैनिकों के लिए एवं नागरिकों के लिए, साथ ही सड़कों पर होनेवाली दुर्घटनाओं में घायल होनेवालों के लिए व्हिलचेअर्स की माँग अधिक बढ़ने लगी। दिव्यांगों का पुनर्वसन, उनका स्वतंत्र व्यवहार इन सब से संबंधित सुधार भी व्हिलचेअर में होते गए। सहज, सुगम तरीके से चल सकनेवाली, न पलटनेवाली, वजन में हलकी परन्तु दमदार, रुग्णों को कम से कम शक्ति लगाते हुए अधिक से अधिक यांत्रिकी लाभ देनेवाली ऐसी कुर्सियों की खोज शुरू हो गयी। पहियों के अ‍ॅक्सल में स्प्रिंग का उपयोग किया गया। झटके कम लगें इसके लिए शॉक अ‍ॅब्सॉर्बर्स का उपयोग किया जाने लगा। स्टेनलेस स्टील, टीटॅनियम, क्रोम, अ‍ॅलॉय, कार्बन फायबर इस प्रकार के विविध पर्यायों का उपयोग किया गया। भौतिकशास्त्र के पुली की सामग्री एवं संगणक का उपयोग करके व्हिलचेअर के नवनीवन मॉडलों की निर्मिति हो रही है। इतना सब कुछ करने के पीछे उनका मुख्य उद्देश्य केवल यही था कि दिव्यांगों का जीवन स्वतंत्र, आत्मनिर्भर, सुरक्षित एवं सुखमय हो, बस्।

व्हिल चेअर यह दिव्यांगत्व एवं कमज़ोरी को सूचित नहीं करती, बल्कि उसमें बैठनेवाले का बलस्थान ही साबित होती है। इस व्हिल चेअर का उपयोग यह आज दुनिया भर के लाखों जीवों के संचार का साधन बन चुका है। इस सुविधाजन साधन के निर्माण का श्रेय हॅरी जेनिंग्ज को ही दिया जाता है।

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