विज्ञान को ही धर्म माननेवाले क्रिस्टीन हेजन्स भाग – २

क्रिस्टीन हेजन्स ने लोलकवाली घड़ी विकसित की। यहीं से समय की गणना करनेवाला नया साधन मनुष्य को प्राप्त हुआ। हेजन्स की संशोधनवृत्ति ने यहीं पर विराम नहीं लिया। लोलकवाली घड़ी संशोधित करने के पश्‍चात् भी हेजन्स की संशोधनवृत्ति और भी अधिक जागृत हो गई। इसी से दुनिया के समक्ष आनेवाले अन्य संशोधन का लाभ आज भी हम ले रहे हैं।

लोलकवाली घड़ी विकसित करनेवाले क्रिस्टीन ने १६५४ में टेलिस्कोप में सुधार लाने के लिए भी कोशिश शुरु कर दी। इसके लिए उन्होंने अपने भाई से सहायता ली। भाई की मदद से हेजन्स ने टेलिस्कोप के लेन्सेस ग्राईंडिंग एवं पॉलिशिंग करने की नयी पद्धति की खोज की। यह पद्धति पहले की तुलना में अधिक सुलभ है यह साबित हुआ। इन दोनों ने मिलकर जो महिमा दिखाई, इससे टेलिस्कोप का विकास करनेवाले नये दालान खुल गए।

इस संशोधन के ही कारण क्रिस्टिन के लिए खगोलशास्र के न जाने कितने ही अनाकलनीय प्रश्‍नों के उत्तर ढूँढ़ निकाल पाना संभव हुआ। इस संशोधन के कारण खगोलशास्त्र विषयक अध्ययन अधिक अच्छी पद्धति से करने का यंत्र उपलब्ध हुआ। इसके पश्‍चात् १६५५-१६५६ के दौरान खगोलीय निरीक्षण करते समय क्रिस्टीन ने शनि के इर्द-गिर्द एक वर्तुल है और वह एक बड़ी चट्टान से बना हुआ है यह दावा किया। शनि के इर्द-गिर्द टायटन नामक शनि का सबसे बड़ा चंद्र होने का भी दावा क्रिस्टीन ने किया।

टेलिस्कोप संशोधन की अपनी कोशिश क्रिस्टीन ने शुरु ही रखी। इसी के आधार पर उन्होंने तीन प्रकार के टेलिस्कोप तैयार किए। इनमें से हर एक टेलिस्कोप की दूर तक निरीक्षण करने की क्षमता भिन्न-भिन्न थी। खगोलीय निरीक्षण के लिए उपयोगी ये तीनों ही टेलिस्कोप क्रिस्टीन ने ‘रॉयल सोसायटी ऑफ लंडन’ के सुपुर्द कर दिये। इस टेलिस्कोप का खगोलशास्त्रज्ञों ने अनेक वर्षों तक उपयोग किया। क्रिस्टीन द्वारा किए गए संशोधन के कारण टेलिस्कोप और साथ ही खगोलशास्त्र इन दोनों क्षेत्रों के अध्ययन हेतु एक नयी दिशा प्राप्त हुई।

इसके अलावा क्रिस्टीन ने एक विशेष पुस्तक भी प्रसिद्ध की और यह पुस्तक क्रिस्टीन के कार्यालय का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव साबित हुई। सन १६७३ में ‘होरोलॉजियम ऑसिलेटोरियम’ यह पुस्तक पॅरिस में प्रकाशित हुई थी। इस में क्रिस्टीन ने घडी के लटकन की हलचल से संबंधित गणित का विस्तारपूर्वक वर्णन किया था। केन्द्रीय बल एवं वर्तुलाकार हलचल का गणितीय सूत्र एवं नियम भी क्रिस्टीन ने अपने लेख के माध्यम से प्रस्तुत किया था।

क्रिस्टीन ने सन १६८० में बंदूक के बारुद पर चलनेवाले इंजन की रचना की, लेकिन इसके लिए पेटंट प्राप्त करने की कोशिश क्रिस्टीन ने कभी नहीं की। इसी लिए क्रिस्टीन की यह संकल्पना कागज़ तक ही मर्यादित रह गयी। मग़र इसके बावजूद भी एक गणितज्ञ इतिहास के पन्नों में अमर हो गया।

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