मेरी किंग्जले (१८६२-१९००)

mary kingsleyसच में कौन थी यह ‘मेरी किंग्जले’? एक नाविक स्त्री, संशोधक, निसर्गशास्त्रज्ञ, परिचारिका, लेखिका, कर्तव्यनिष्ठ लड़की, अफ्रीका खंड की कॅम्पेनर थी अथवा इन सभी का मिलाजुला व्यक्तित्व रखने वाली जाँबाज़ लड़की। एक-दूसरे से पूरी तरह भिन्न-भिन्न, उलझी हुई विरोधाभासी भूमिकाएँ मेरी किंग्जले ने अपने हिम्मत-हौसले के बलबूते पर भली भाँति निभायी।

एक जाँबाज़ संशोधक के रूप में पहचानी जानेवाली मेरी किंग्जले का जन्म १३ अक्तूबर, १८६२ के दिन ब्रिटन के एजलिंग्टन में हुआ था। मेरी के पिता डॉ. जॉर्ज किंग्जले को वैद्यकीय व्यवसाय के साथ-साथ भ्रमण करने का काफी शौक था। बचपन से ही मेरी को अपने पिता से उनके द्वारा किए जानेवाले भ्रमण की कहानियाँ सुनने का बहुत शौक था।

डॉ. जॉर्ज ने अपने भ्रमण के अनुभवों को शब्दबद्ध भी करके रखा था। इन शब्दों को शब्दबद्ध करने का काम मेरी बड़े ही चाव से करती थी। मेरी की स्कूली शिक्षा कोई बहुत अधिक नहीं हुई थी। परन्तु अपने पिता के भ्रमणकालीन अनुभवों को दर्ज करते समय किया गया अध्ययन भविष्य में मेरी के लिए काफी सहायक साबित हुआ।

मेरी तीस साल की थी, उस समय उसके माता-पिता का एक के बाद एक करके बीमारी के कारण निधन हो गया। माता-पिता के निधन होने के पश्‍चात् घर की पूरी की पूरी जिम्मेदारी वैसे तो मेरी पर नहीं आन पड़ी थी। उसी प्रकार वंशपरंपरानुसार वर्ष में ५००  पौंड की आमदानी मेरी के हिस्से में आती थी। ऐसे में मेरी ने अपनी स्वयं की इच्छा एवं अपने स्वर्गीय पिता का सपना पूरा करने का निश्‍चय किया।

मेरी ने १८९३  में अफ्रीका जाने का निश्‍चय किया। उस समय में किसी भी स्त्री का स्वतंत्ररूप में इस प्रकार से प्रवास के लिए निकल पड़ना कोई मामूली बात नहीं थी। शुरू से ही मेरी को इन विरोधों का काफी सामना करना पड़ा था। परन्तु पिता के छत्रछाया में पली-बढ़ी मेरी ने जाने का पक्का निश्‍चिय कर लिया था। पिता के द्वारा लिखकर रखी गई जानकारी, उनके कुछ डॉक्टर मित्रों से प्राप्त नक्शों, मिसनरियों के द्वारा प्राप्त जानकारी आदि के बल पर मेरी ने अंगोला के लुआंडा बदंरगाह की ओर अपने कदम बढ़ा दिए।

अपने पहले सफ़र में मेरी ने कांगो नदी के उत्तरभाग में भ्रमण किया। वहाँ के स्थानिकों के साथ मिलजुलकर अफ्रीकन  जंगल में जाने हेतु आवश्यक लगने वाली विविध बातों का ज्ञान प्राप्त कर लिया।  इसके पश्‍चात् उसने अफ्रीका के मॅन ग्रोव्हज़ के जंगल में अध्ययन किया। इसी समय के दौरान उस पर एक मादा मगरमच्छ ने हमला भी कर दिया था, परन्तु खुशकिस्मती से वह उस दुर्घटना में बच गयी थी।

पहली अफ्रीका की सफर  करके लौटते समय ही मेरी ने पुन: पूर्ण तैयारी के साथ अफ्रीका खंड में जाने का निश्‍चय कर लिया था। इसी के अनुसार एक वर्ष में ही अफ्रीका के जंगली आदिवासी मानी जानेवालीं जाति-जनजातियों के जीवन से संबंधित अध्ययन करने के लिए मेरी ने पुन: अफ्रीका में प्रस्थान किया। दूसरे सफर  में मेरी ने ओगोवे नदी के पर्यावरण में काफी बड़े पैमाने पर प्रवास किया। उस विभाग के जंगलों में प्रवास करनेवाली मेरी किंग्जले यह प्रथम यूरोपीय महिला थी।

अपने इस प्रवास में मेरी ने पश्‍चिम अफ्रीका की आदिम मानी जाने वाली ‘फेंग ’ जमात की संस्कृति एवं परंपरा का अध्ययन किया। इसके साथ ही उस विभाग के सबसे उच्च माने जाने वाले कॅमेरून पर्वत पर चढ़ाई करने में भी मेरी ने सफलता  प्राप्त की। इस जाति-जनजाति के अध्ययन के साथ-साथ अफ्रीका के जानवर, पंछी, मछलियाँ एवं विविध प्रकार की वनस्पतियों का नमूना भी मेरी ने इकठ्ठा कर लिया।

इस भ्रमणकाल की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह थी कि मेरी का एक ‘गोरिला’ नामक जानवर से सामना हुआ। इससे पूर्व यूरोपीय व्यक्तियों को गोरिला इस प्राणि के बारे में केवल सुनी-सुनाई जानकारी ही प्राप्त थी। मेरी ने अपनी पुस्तक में उसका वर्णन ‘मोस्ट हॉरिबल वाईल्ड अ‍ॅनिमल आय हॅव सीन’ इस प्रकार किया है।

अपनी दूसरे अफ्रीकन  सफर  से ब्रिटन में लौटने वाली मेरी की कीर्ति ब्रिटन में पहले ही पहुँच चुकी थी। जब वह लौटी तब उसके स्वागत हेतु प्रचंड पैमाने पर लोग इकट्ठा हुए थे। अपनी लोकप्रियता का उपयोग मेरी ने अफ्रीका खंडे के व्याख्यानों हेतु किया। उस समय यूरोपीय लोगों के मन में अफ्रीका खंड के प्रति होने वाली गलतफ़हमी को दूर करने के लिए मेरी ने विविध स्थानों पर व्याख्यान देना आरंभ कर दिया।

अपने व्याख्यान के माध्यम से मेरी ने अफ्रीका में कुछ समूहों के द्वारा किए जाने वाले अत्याचारों की भी आलोचना की। इस आलोचना के कारण मेरी को कई तकलीफों   का सामना करना पड़ा। अफ्रीका के प्रति अपनापन निर्माण होनेवाली मेरी ने बगैर डगमगाये उन संकटों का सामना किया। इसी समय मेरी ने अफ्रीका से प्राप्त अनुभवों एवं अध्ययन के आधार पर किताबें भी लिखना आरंभ कर दिया था। पूरे दो वर्षों के अंतरकाल में मेरी द्वारा लिखी गई ‘ट्रॅव्हल्स इन वेस्ट अफ्रीका’ और ‘वेस्ट अफ्रीकन स्टडिज’ ये दो किताबें प्रसिद्ध हुई।

यूरोपीयन लोगों के लिए उस समय तक अज्ञात रहने वाले अफ्रीका खंड का रास्ता खुला करने वाली मेरी के इन दोनों किताबों ने अपार लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी। केवल लोकप्रियता ही प्राप्त की इतना नहीं बल्कि उन किताबों से प्रेरणा लेकर आने वाले काल में अनेक यूरोपीन संशोधक प्रवासियों ने अफ्रीका में सफर  का आयोजन भी किया।

दो सफर  में अधूरा रह गया अपना कार्य पूरा करने हेतु मेरी १८९९ में पुन: अफ्रीका जाने के लिए निकल पड़ी। परन्तु इस दौरान ब्रिटन एवं दक्षिण अफ्रीका के बीच बोअर युद्ध आरंभ हो गया था। मेरी ने उस समय अपने संशोधन हेतु अपना लक्ष दक्षिण अफ्रीका की ओर केंद्रित किया। उस दौरान सच पूछा जाए तो वहाँ की स्थिति संशोधन करने लायक नहीं थी। परन्तु मेरी ने निराश न होते हुए युद्ध में सैनिकों की सेवा सुश्रुषा हेतु परिचारिका का कार्य स्वीकार कर लिया। दुर्भाग्यवश जख्मी सैनिकों की सेवा करते-करते मेरी स्वयं टायफॉइड ग्रस्त हो गई और ३ जून, १९००  के दिन केवल ३८  वर्षीय मेरी मृत्यु का शिकार बन गई।

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